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पहाड़ों के पवित्र स्थलों का ‘मायावी रक्षक’, काले भेड़िए से जुड़े रहस्यों ने वैज्ञानिकों और भक्तों को किया हैरान

पहाड़ों के पवित्र स्थलों का ‘मायावी रक्षक’, काले भेड़िए से जुड़े रहस्यों ने वैज्ञानिकों और भक्तों को किया हैरान

लद्दाख में जंगली जानवरों का जीवन बेहद अनोखा है। खासकर यहां पाए जाने वाले काले भेड़िये। दरअसल, यहां लद्दाख के ठंडे रेगिस्तान में फैले विशाल मैदानों और ऊंचे पहाड़ों के बीच भेड़ियों की दो प्रजातियां पाई जाती हैं। पहली- सामान्य रंग के भेड़िये और दूसरी- मेलेनिस्टिक भेड़िये, जिन्हें काले भेड़िये भी कहते हैं। काले भेड़ियों को अक्सर सामान्य रंग के भेड़ियों के समूह द्वारा खदेड़ दिया जाता है या उन पर हमला कर दिया जाता है। इस वजह से वे अकेले या छोटे समूहों में रहने को मजबूर होते हैं। लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश के सबसे ऊंचे इलाकों में रहने वाले इस काले भेड़िये को अक्सर मायावी भेड़िया भी कहा जाता है। यह एक ऐसा शिकारी जानवर है जिसके बारे में लोग बहुत कम जानते हैं। अपने मैदानी भाइयों के विपरीत, भेड़िये की इस प्रजाति ने ठंडी हवाओं, ठंडे तापमान और कम शिकार वाली परिस्थितियों में जीवित रहने के लिए खुद को ढाल लिया है। अपने नुकीले कान, मजबूत जबड़े और तीखी आंखों की वजह से इसे तेज गति से चलने वाले शिकारी जानवरों में गिना जाता है। वेबसाइट मोंगाबे के अनुसार, एक वयस्क काला भेड़िया पांच फीट से ज्यादा ऊंची बाड़ को आसानी से कूद सकता है। क्रीम, काले और भूरे रंग के मिश्रण से बना इसका घना फर इसे एक भयानक रूप देता है। यह जंगल में दूर से ही अपने शिकार को भाँप लेता है।

काले भेड़िये 17 के समूह में निकलते हैं

जब काले भेड़िये जंगल में निकलते हैं, तो उनके समूह में सदस्यों की संख्या 17 तक होती है। कई बार तो जंगल के बड़े और हिंसक जानवर भी इन्हें देखकर डर जाते हैं। शिकार करते समय इनके बीच का तालमेल और गति अद्भुत होती है। काले भेड़िये को मायावी भेड़िया भी कहा जाता है और इसके पीछे लोगों की अलग-अलग मान्यताएँ और लोककथाएँ हैं।

भेड़ियों का गरजना बदलाव का संकेत है

लद्दाख के स्थानीय लोगों ने अपनी मान्यताओं और लोककथाओं के माध्यम से भेड़ियों के बारे में अपनी अलग धारणाएँ बनाई हैं। ये अपनी ताकत, गति और चालाकी के लिए जाने जाते हैं, लेकिन इनके बारे में कुछ और भी दिलचस्प बातें हैं। लद्दाख में भेड़ियों को शांगकू के नाम से जाना जाता है और माना जाता है कि इनका गरजना आने वाले बदलाव का संकेत है।

शिकारियों से 'गायब' होने की क्षमता

कुछ लोग इन भेड़ियों को पवित्र पर्वतीय स्थलों का रक्षक और आध्यात्मिक द्वारों का रक्षक मानते हैं। वहीं, कुछ दूरदराज के गाँवों में यह माना जाता है कि भेड़ियों में अपने परिवेश में घुल-मिलकर शिकारियों से 'गायब' हो जाने की अनोखी क्षमता होती है। एक मान्यता यह है कि जब भेड़िये किसी गाँव के पास एक साथ गरजते हैं, तो इसे अपशकुन माना जाता है, जो प्राकृतिक आपदा या बीमारी जैसी समस्याओं का संकेत होता है।

अलौकिक शक्तियों से जुड़ाव की मान्यता

स्थानीय लोगों का मानना है कि काले भेड़िये न केवल खतरनाक होते हैं, बल्कि अलौकिक शक्तियों से भी जुड़े होते हैं। एक मान्यता यह भी है कि अगर भेड़िये के बच्चे का रंग या बनावट उसके भाई-बहनों से अलग हो, तो वह बहुत चालाक और खतरनाक शिकारी बन जाता है। कहा जाता है कि इन भेड़ियों में एक अनोखी शक्ति होती है जिससे चरवाहे खास तौर पर डरते हैं।

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