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कुंभलगढ़ किले में दफन है मानव बलियों का खौफनाक इतिहास! रात को गूंजती हैं रहस्यमयी चीखें, वीडियो में जानिए दहला देने वाला रहस्य

कुंभलगढ़ किले में दफन है मानव बलियों का खौफनाक इतिहास! रात को गूंजती हैं रहस्यमयी चीखें, वीडियो में जानिए दहला देने वाला रहस्य

राजस्थान के राजसमंद जिले में अरावली की पहाड़ियों के बीच स्थित कुंभलगढ़ किला अपने भव्य स्थापत्य और ऐतिहासिक महत्व के लिए विश्व प्रसिद्ध है। महाराणा कुंभा द्वारा 15वीं सदी में निर्मित यह किला केवल एक युद्धगाथा नहीं है, बल्कि इसमें छुपे हैं ऐसे रहस्य जो रोंगटे खड़े कर देते हैं। सुंदरता, पराक्रम और वास्तुकला के साथ-साथ यह किला एक ऐसे खौफनाक अध्याय को भी समेटे हुए है, जिसे सुनकर आज भी लोगों के रूह कांप उठते हैं। कहा जाता है कि इस किले की नींव मानव बलि के ऊपर रखी गई थी, और रात के अंधेरे में आज भी वहां दर्दभरी चीखें सुनाई देती हैं।


मानव बलि के पीछे की कथा
इतिहासकारों और लोककथाओं के अनुसार, जब कुंभलगढ़ किले का निर्माण प्रारंभ हुआ था, तो बार-बार दीवारें गिर जाती थीं। महाराणा कुंभा इस समस्या से अत्यंत चिंतित हो उठे। तब एक तपस्वी साधु ने उन्हें सुझाव दिया कि यदि कोई स्वयं बलिदान देने को तैयार हो जाए और उसकी बलि दी जाए, तो किला स्थिर हो सकता है। एक संत, जिसका नाम "बैरवा" बताया जाता है, स्वयं आगे आए और बलिदान के लिए राज़ी हो गए। उनकी शर्त थी कि जहां उनका सिर गिरेगा, वहां मुख्य द्वार बनेगा, और जहां उनका शरीर गिरेगा, वहीं दीवार की नींव रखी जाएगी।यह भी माना जाता है कि बलिदान के बाद ही किले की नींव मजबूती से रखी जा सकी। लेकिन मानव बलि का यह क्रूर अध्याय कुंभलगढ़ को रहस्यमय बना गया। आज भी कई लोग मानते हैं कि रात के समय किले के परिसर में किसी के रोने, चीखने और कदमों की आवाजें सुनाई देती हैं, जैसे कोई अधूरी आत्मा वहां भटक रही हो।

रात को क्यों नहीं रुकते लोग?
कुंभलगढ़ किले का परिसर दिन में पर्यटकों से भरा रहता है, लेकिन जैसे ही सूरज ढलता है, पूरा क्षेत्र वीरान हो जाता है। स्थानीय गाइड और सुरक्षा कर्मियों के अनुसार, रात को कोई भी किले में नहीं रुकता। कई लोगों का मानना है कि रात के समय वहां अलौकिक शक्तियां सक्रिय हो जाती हैं। पर्यटकों ने कई बार शिकायत की है कि उन्होंने किसी अनजानी छाया को चलते हुए देखा, या किसी महिला के रोने की आवाजें सुनीं, जबकि आस-पास कोई नहीं था।

दीवार जो चीन की दीवार के बाद दूसरी सबसे बड़ी
इतिहास से इतर, कुंभलगढ़ की सबसे बड़ी खासियत इसकी विशाल दीवार है, जिसे "भारत की ग्रेट वॉल" भी कहा जाता है। यह दीवार करीब 36 किलोमीटर लंबी है और इसे चीन की दीवार के बाद विश्व की दूसरी सबसे लंबी दीवार माना जाता है। लेकिन इसी दीवार के पीछे दफन हैं कई अनजाने और खौफनाक किस्से, जो वहां के पत्थरों में समाए हुए हैं।

किले की स्थापत्य और काली शक्तियों का संबंध
कुंभलगढ़ किले में 360 से अधिक मंदिर हैं – जिनमें हिन्दू और जैन मंदिर दोनों शामिल हैं। लेकिन कुछ मंदिर ऐसे भी हैं जो अब खंडहर में बदल चुके हैं और स्थानीय लोगों के अनुसार, वहां कुछ अजीब घटनाएं होती हैं। रात को वहां दीपक अपने आप जलते-बुझते हैं, और वहां की हवा में एक अजीब-सी ठंडक महसूस की जाती है, जो सामान्य तापमान से अलग होती है।कुछ विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि किले के भीतर अब भी कई ऐसे तहखाने और सुरंगें हैं, जिन्हें आज तक नहीं खोला गया है। ये स्थान शायद उन रहस्यों को छिपाए हुए हैं जो सदियों पहले हुए कृत्यों और बलिदानों से जुड़े हैं।

क्या यह सब केवल कल्पना है?
इतिहास, लोककथाएं और परंपराएं – तीनों ही अपने-अपने दृष्टिकोण से कुंभलगढ़ को परिभाषित करते हैं। जहां एक ओर इतिहास इसे मेवाड़ की सैन्य शक्ति का गढ़ मानता है, वहीं दूसरी ओर स्थानीय जनश्रुतियां इसे आत्माओं का स्थायी निवास मानती हैं।पर्यटक चाहे यहां भूत-प्रेतों की कहानियों में विश्वास करें या न करें, लेकिन यह तय है कि कुंभलगढ़ किला सिर्फ एक ऐतिहासिक धरोहर नहीं, बल्कि रहस्यमय ऊर्जा का भी केंद्र है।

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