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देश का ऐसा अनोखा मंदिर, जहां न कोई पुजारी और न ही कोई देवता, लेकिन फिर भी हर दिन लगा रहता है लोगों का जमावड़ा

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भारत भूमि पर आस्था और आस्तिकता की हजारों कहानियाँ बिखरी पड़ी हैं, लेकिन कुछ धार्मिक स्थल ऐसे होते हैं जो अपने अनोखे स्वरूप और रहस्यमयी इतिहास के कारण विशेष आकर्षण का केंद्र बन जाते हैं। ऐसा ही एक मंदिर है राजस्थान के पाली जिले के रोहट कस्बे में स्थित "Bullet Baba Temple" यानी बुलेट बाबा का मंदिर, जिसे "ओम बन्ना मंदिर" के नाम से भी जाना जाता है।

यह मंदिर न केवल भारत में बल्कि दुनियाभर में अपनी अनोखी परंपरा और चमत्कारी कथाओं के कारण प्रसिद्ध है। यहां न कोई पुजारी पूजा करता है, न ही यहां किसी देवी-देवता की मूर्ति है — फिर भी यहां हर दिन सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं और अपनी आस्था व्यक्त करते हैं।

कौन हैं 'बुलेट बाबा'?

इस मंदिर की कहानी शुरू होती है ओम सिंह राठौड़ नामक युवक से, जिन्हें लोग ओम बन्ना के नाम से जानते हैं। 1991 में ओम बन्ना की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। वह राजस्थान की सड़कों पर अपनी रॉयल एनफील्ड बुलेट से सफर कर रहे थे। दुर्घटना के बाद उनकी बाइक को पुलिस थाने ले जाया गया, लेकिन अगली सुबह बाइक रहस्यमयी तरीके से थाने से गायब होकर वापस दुर्घटनास्थल पर मिल गई।

कई बार पुलिस ने बाइक को लॉक करके, चेन से बांधकर, यहां तक कि खाली टैंक के साथ थाने में रखा, लेकिन हर बार बाइक किसी चमत्कारिक तरीके से उसी स्थान पर लौट आती थी जहां ओम बन्ना का निधन हुआ था। आखिरकार लोगों ने इसे चमत्कार मान लिया और उस स्थान पर एक छोटा सा मंदिर बना दिया, जिसमें ओम बन्ना की तस्वीर और उनकी वही बुलेट बाइक रखी गई।

क्या होता है यहां?

इस मंदिर में लोग रुककर ओम बन्ना को श्रद्धांजलि देते हैं, माथा टेकते हैं और यात्रा की सुरक्षा के लिए प्रार्थना करते हैं। यहां आने वाले ज़्यादातर लोग यात्री, ट्रक ड्राइवर, बाइक राइडर होते हैं जो मानते हैं कि बुलेट बाबा उनका मार्ग सुरक्षित करते हैं और दुर्घटनाओं से बचाते हैं।

लोग यहां शराब की बोतलें भी चढ़ाते हैं, क्योंकि मान्यता है कि ओम बन्ना जीवन में खुले दिल और मस्तमौला स्वभाव के थे। यही कारण है कि यहां चढ़ावे में फूल-माला के साथ-साथ शराब की बोतलें भी देखी जाती हैं।

क्या है प्रशासन का नजरिया?

हालांकि यह स्थान एक पारंपरिक मंदिर की परिभाषा में नहीं आता — न पुजारी, न आरती, न मूर्ति — लेकिन यह श्रद्धा का केंद्र बन चुका है। पुलिस और प्रशासन भी अब इस स्थान को श्रद्धालुओं की भावना के अनुरूप संरक्षित करता है।

निष्कर्ष

बुलेट बाबा का यह मंदिर यह बताता है कि आस्था किसी सीमित रूप में नहीं बंधी होती। यह न मंदिर की दीवारों में होती है, न मूर्तियों में, बल्कि लोगों के विश्वास में बसती है। बिना पुजारी और बिना मूर्ति वाला यह मंदिर इस बात का प्रमाण है कि श्रद्धा सिर्फ रीति-रिवाजों की मोहताज नहीं होती।

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