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100 रुपये का दही चोरी होने पर थाने पहुंची छात्रा, चोर को पकड़ने के लिए पुलिस ने खर्च किए 42,000

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कभी-कभी अपराधी को पकड़ने के लिए पुलिस को न सिर्फ अपनी मेहनत बल्कि खर्च भी करना पड़ता है, और कभी यह खर्च इतनी बड़ी राशि में बदल जाता है कि लोग हैरान रह जाते हैं। ताइवान की राजधानी ताइपे में कुछ ऐसा ही हुआ, जहां पुलिस ने सिर्फ 100 रुपये (लगभग 141 रुपये) की योगर्ट की चोरी के मामले में चोर को पकड़ने के लिए 42,000 रुपये खर्च कर दिए। यह मामला इसलिए चर्चा का विषय बना, क्योंकि इस छोटी सी चोरी के पीछे पुलिस ने डीएनए जांच और अन्य फॉरेंसिक कदम उठाए, जिससे एक मामूली मामले में भी बड़ी रकम खर्च हो गई।

चोरी का मामला और छात्रा की शिकायत

ताइपे में चाइनीज कल्चर यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करने वाली एक छात्रा अपने पांच अन्य फ्लैटमेट्स के साथ एक किराए के फ्लैट में रह रही थी। एक दिन उसने अपने फ्रिज में रखी हुई योगर्ट की बॉटल गायब पाई। यह बॉटल आमतौर पर साझा फ्रिज में रखी जाती थी, जिसे फ्लैट के सभी सदस्य इस्तेमाल करते थे। छात्रा ने सबसे पहले अपनी फ्लैटमेट्स से इस बारे में पूछा, लेकिन किसी ने भी चोरी के बारे में कुछ नहीं बताया। इसके बाद छात्रा ने चोर को पकड़ने का फैसला किया और पुलिस स्टेशन जाकर चोरी की शिकायत दर्ज करा दी।

पुलिस ने शुरू की जांच

मामला इतना बड़ा नहीं था, लेकिन छात्रा की ठान ली थी कि वह चोर को पकड़ेगी। पुलिस ने इस मामूली चोरी की जांच शुरू की, और इस जांच में उन्होंने ऐसा कदम उठाया, जो शायद किसी और देश में कम ही देखने को मिलता। पुलिस ने सबसे पहले सभी फ्लैटमेट्स से पूछताछ की, लेकिन कोई भी ठोस जानकारी नहीं मिली। इसके बाद पुलिस ने मामले की गंभीरता को समझते हुए फॉरेंसिक टीम की मदद लेने का निर्णय लिया।

डीएनए जांच की गई

पुलिस ने मामले की तह तक पहुंचने के लिए सभी पांच फ्लैटमेट्स का डीएनए टेस्ट कराया। यह कदम न केवल हैरान करने वाला था, बल्कि यह भी दिखाता है कि ताइपे पुलिस ने कितनी गंभीरता से इस मामूली चोरी के मामले को लिया। डीएनए टेस्ट में लगभग 41,500 रुपये खर्च हुए, जो एक छोटी सी चोरी के मामले में खर्च की गई बड़ी राशि थी। इस पूरी जांच के दौरान पुलिस ने कई और संसाधन भी लगाए, जैसे की टेस्टिंग किट और फॉरेंसिक सुविधाएं, जिनकी कीमत जोड़ने पर यह मामला और भी महंगा हो गया।

सोशल मीडिया पर मजाक

हालांकि, सोशल मीडिया पर ताइपे पुलिस के इस कदम का जमकर मजाक उड़ाया गया। कुछ लोगों ने पुलिस पर जनता का पैसा बर्बाद करने का आरोप भी लगाया। उन्हें यह नहीं समझ में आ रहा था कि एक मामूली 141 रुपये की बॉटल के लिए 42,000 रुपये खर्च करना कितना सही था। इस मामले ने लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या पुलिस को इतने संसाधनों का उपयोग किसी और बड़े मामले में नहीं करना चाहिए था, जो कि ज्यादा महत्वपूर्ण होता।

पुलिस का बचाव

हालांकि इस कदम को लेकर सोशल मीडिया पर आलोचनाएं हुईं, लेकिन पुलिस ने इसे सही ठहराया। उनका कहना था कि यह मामला किसी बड़ी घटना का हिस्सा नहीं था, लेकिन उन्होंने आरोपी को पकड़ने के लिए पूरी तरह से कानूनी और पेशेवर तरीके से जांच की। पुलिस का यह मानना था कि भले ही यह चोरी छोटी थी, लेकिन कानून का पालन करना और न्याय दिलवाना उनकी प्राथमिकता थी।

अंतिम निष्कर्ष

यह मामला भले ही मजाक का कारण बना हो, लेकिन यह यह भी दिखाता है कि कैसे पुलिस किसी भी अपराध को गंभीरता से लेती है, चाहे वह कितना भी छोटा क्यों न हो। इस तरह के कदम कभी-कभी लोगों को हंसी का कारण बनते हैं, लेकिन पुलिस के काम को सही तरीके से समझा जाना चाहिए। एक साधारण से मामले में भी जांच के दौरान किए गए प्रयास और खर्च को सही ठहराया जा सकता है, यदि इसका उद्देश्य केवल न्याय की प्राप्ति हो।

इस घटना ने एक महत्वपूर्ण सवाल भी उठाया है कि क्या पुलिस को अपने संसाधनों का उपयोग और बेहतर तरीके से करना चाहिए, ताकि बड़ी और गंभीर घटनाओं पर ज्यादा ध्यान दिया जा सके। बावजूद इसके, यह मामला इस बात को साबित करता है कि हर अपराध, चाहे वह छोटा हो या बड़ा, पुलिस के लिए महत्वपूर्ण होता है।

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