यहां दुल्हा नहीं बल्कि दुल्हन लाती है बारात, होती हैं दुल्हे की विदाई

आम तौर पर शादियों में क्या होता है कि लड़का बारात लेकर लड़की के घर जाता है, वहां, पर सात फेरे होते हैं. शादी की सारी रस्में अदा होती हैं और फिर दुल्हन की विदाई होती है. लेकिन यहां पर उलट है. लड़की बारात लेकर दूल्हे के घर पर जाती है और फिर वहीं पर शादी होती है. कहानी हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले की है. यहां पर दूल्हन दूल्हे के घर बारात लेकर पहुंचती है, जिसे जाजड़ा परंपरा कहते हैं. सदियों से यह परंपरा चल रही है.दरअसल, सिरमौर के गिरिपार इलाके में हाटी कम्युनिटी रहती है. यह इलाका जनजातीय क्षेत्र कहलाता है.
हाल ही में केंद्र सरकार ने इस कम्युनिटी को एसटी का दर्जा भी दिया है. इसी हाटी समुदाय में यह पंरपरा चली आ रही है. हालांकि, परंपरा के पीछे कोई खास कारण नहीं है.सिरमौर के पावंटा के पत्रकार जय प्रकाश तोमर बताते हैं कि सदियों से परपंरा चल रही है. इसके पीछे कोई ठोस वजह तो पता नहीं है. लेकिन माना जाता है कि पहले के समय में गरीबी अधिक होती थी. साथ ही परिवार में बच्चों की संख्या भी अधिक होती थी. ऐसे में ज्यादा धूमधाम से शादी नहीं कर पाते थे. सीमित संसाधन होते थे. इसलिए दूल्हे के घर पर ही एक साथ सारी चीजें हो जाती थी. हालांकि, अब यह परंपरा एक तरह से विलुप्त हो चुकी है.
जनवरी महीने में इसी तरह की एक शादी सिरमौर जिले में हुई थी, जिसमें 100 बारातियों से एक दुल्हन उत्तराखंड के चकराता से बारात लेकर सिरमौर पहुंची थी. सुमन की शादी राजेंद्र के साथ हुई थी. शादी की सारी रस्में राजेंद्र के घर पर हुई थी. उत्तराखंड के जौनसार बावर क्षेत्र और हिमाचल के सिरमौर के गिरीपार इलाके में एक सी परंपपराएं खान-पान और रहन सहन है. यह दोनों इलाके एक दूसरे के नजदीक भी हैं. बता दें कि सिरमौर में हाटी समुदाय की आबादी डेढ़ से दो लाख के करीब है. इस परंपरा का जिक्र हाटी समुदाय की एथनोग्राफिक रिपोर्ट में भी किया गया है. केंद्रीय हाटी कमिटी के सदस्य डॉक्टर रमेश सिंगटा ने बताया कि हां, सिरमौर में ऐसी परंपरा है. यह शादी से जुड़ी परंपरा है.
बताया जाता है कि जनजातीय क्षेत्र गिरिपार में पुरानी परंपराएं हैं. उनके अनुसार चार तरह से शादियां होती हैं. पहली परंपरा के अनुसार, बाला ब्याह परंपरा में पहले ही लड़की की शादी की बात पक्की हो जाती थी. कई बार तो बच्चे के जन्म से पूर्व भी रिश्ता तय किया जाता था. दूसरी परंपरा झाजड़ा परंपरा है, जिसमें दूल्हा बारात लेकर दुल्हन के घर नहीं जाता. तीसरी परपंरा को विवाह खिताइयूं कहते हैं. इसमें एक से अधिक शादियां करने वाली लड़की की शादी विवाह को खिताइयूं कहते हैं. चौथे प्रकार है हार प्रथा. इसमें लड़की या कोई महिला अपनी इच्छा से किसी व्यक्ति के साथ भाग जाती है तो उसे हार विवाह कहते हैं. लड़की को भगाने वाले शख्स पर जुर्माना लगाया जाता है., जिसे हरोंग कहते हैं. लेकिन अब ये सभी परंपराएं लगभग खत्म हो गई है.