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अपराधी के कान में ऐसी बात बोलता है जल्लाद, जानकर नहीं होगा यकीन

अजब: फांसी पर लटकाने से पहले अपराधी के कान में ऐसी बात बोलता है जल्लाद, जानकर नहीं होगा यकीन

दुनिया भर में फांसी की सजा को सबसे कठोर और अंतिम दंड माना जाता है। यह सजा केवल उन्हीं अपराधियों को दी जाती है, जिनके अपराध इतने जघन्य होते हैं कि समाज और कानून उन्हें माफ नहीं कर सकते। भारत समेत कई देशों में जब किसी व्यक्ति को फांसी दी जाती है, तो वह चर्चा का विषय बन जाता है। फांसी देना केवल एक सजा नहीं, बल्कि एक कठिन और सटीक प्रक्रिया होती है, जिसमें कानून, संवेदना और परंपरा का संतुलन साधा जाता है।आज हम आपको फांसी की प्रक्रिया से जुड़े उन गहरे रहस्यों और परंपराओं के बारे में बताएंगे, जिनके बारे में आमतौर पर लोग नहीं जानते। खासकर, उस पल के बारे में जब जल्लाद अपराधी के कान में कुछ कहता है, वो आखिरी शब्द जो फांसी से ठीक पहले बोले जाते हैं। आइए जानते हैं, उस मौन क्षण की कहानी

फांसी की प्रक्रिया: कदम-दर-कदम

भारत में मृत्युदंड (Death Penalty) की प्रक्रिया बेहद सख्त और कानूनी प्रावधानों के तहत संचालित होती है। किसी अपराधी को फांसी देने से पहले निम्नलिखित बातें सुनिश्चित की जाती हैं:

  1. जेल अधीक्षक (Superintendent)

  2. जल्लाद (Executioner)

  3. कार्यकारी मजिस्ट्रेट (Executive Magistrate)

  4. चिकित्सक (Doctor)

इन चारों का वहां मौजूद होना अनिवार्य होता है। अगर इन चार में से कोई एक भी नहीं होता, तो फांसी की प्रक्रिया रोक दी जाती है। फांसी का समय, तिथि और स्थान पहले से निर्धारित होते हैं। सबसे अधिक ध्यान रखा जाता है कि यह कार्य सुरक्षित और विधिवत तरीके से संपन्न हो।

जल्लाद की भूमिका: आखिरी सफर का साथी

किसी भी फांसी के दौरान जल्लाद की भूमिका सबसे अहम होती है। वह न सिर्फ फांसी की तकनीकी प्रक्रिया को अंजाम देता है, बल्कि मानसिक रूप से भी अपराधी को उस पल के लिए तैयार करता है।
जब फांसी का समय आता है, तो जल्लाद धीरे से कैदी के पास जाता है। यह एक ऐसा क्षण होता है जब दोनों की आंखें मिलती हैं, और दोनों ही इंसानी संवेदनाओं से भरे होते हैं। जल्लाद भले ही सरकारी आदेश का पालन कर रहा हो, लेकिन वह भी इंसान होता है।

यही वजह है कि जल्लाद अपराधी के कान में कई अहम बातें कहता है, जो उस पल को और भी गंभीर और मार्मिक बना देती हैं।

जल्लाद के कान में फुसफुसाने के शब्द: "मुझे माफ कर दो"

फांसी से ठीक पहले जल्लाद अपराधी के पास जाकर धीरे से कान में कहता है,
➡️ "मुझे माफ कर दो।"
➡️ अगर अपराधी हिंदू है, तो वह उसके कान में "राम-राम" का जाप करता है।
➡️ अगर अपराधी मुसलमान है, तो वह "सलाम" कहता है।

इसके पीछे मान्यता है कि जल्लाद आदेश का पालन कर रहा होता है, लेकिन एक मानवीय संवेदना से वह अपराधी से क्षमा मांगता है। वह कहता है,
➡️ "हम हुक्म के गुलाम हैं।"
यानी, यह मेरा व्यक्तिगत निर्णय नहीं, बल्कि सरकार और अदालत का आदेश है। इसके बाद ही वह लीवर खींचता है, जिससे अपराधी का जीवन समाप्त हो जाता है।

फांसी की रस्सी: अलग से तैयार होती है

फांसी में उपयोग होने वाली रस्सी भी खास होती है। इसे
➡️ बिहार के बक्सर जेल में तैयार किया जाता है।
➡️ यह रस्सी बेहद मजबूत होती है और इसकी लंबाई, मोटाई और मजबूती का विशेष ध्यान रखा जाता है।
फांसी देने से पहले जल्लाद उस रस्सी को कई बार परीक्षण करता है कि कहीं कोई कमी तो नहीं।
यदि रस्सी में कोई खामी मिलती है, तो फांसी की प्रक्रिया टाल दी जाती है

डॉक्टर की अंतिम पुष्टि

जैसे ही फांसी दी जाती है, डॉक्टर अपराधी के पास जाता है और उसकी धड़कन, सांस और नाड़ी की जांच करता है।
फिर वह आधिकारिक रूप से घोषित करता है कि
➡️ "यह व्यक्ति अब मृत है।"
इसके बाद मृत शरीर को फंदे से उतार कर पोस्टमॉर्टम के लिए भेजा जाता है या फिर परिवार को सौंप दिया जाता है।
यदि परिवार शव को लेने से इनकार कर दे, तो जेल प्रशासन ही अंतिम संस्कार कराता है।

फांसी देना जल्लाद के लिए भी आसान नहीं

भले ही जल्लाद का काम सिर्फ आदेश का पालन करना है, लेकिन यह काम करना नैतिक और मानसिक रूप से बेहद कठिन होता है।
कई बार जल्लाद को रातों की नींद नहीं आती
कई जल्लादों ने माना है कि
➡️ "हमारी आत्मा भी कांपती है, लेकिन हम मजबूरी में आदेश मानते हैं।"
भारत में जल्लाद की संख्या बहुत कम है।
पवन जल्लाद जैसे नाम चर्चित हुए हैं, जिन्होंने कई बार यह काम किया, लेकिन उन्होंने भी माना कि
➡️ "हर बार फांसी देना पहले से ज्यादा कठिन होता है।"

निष्कर्ष: एक सख्त सजा, लेकिन इंसानी संवेदना के साथ

फांसी की सजा अपने आप में कठोरतम दंड है, लेकिन इसकी प्रक्रिया के हर पहलू में मानवीय भावनाएं और संवेदनाएं झलकती हैं।
जल्लाद का माफीनामा,
डॉक्टर की पुष्टि,
और पूरे प्रशासन का नियमों के पालन में विश्वास दिखाता है कि
➡️ "मृत्युदंड सिर्फ एक प्रक्रिया नहीं, बल्कि इंसानी व्यवस्था का सबसे गंभीर और विचारशील फैसला है।"

कानून और व्यवस्था के तहत किसी भी अपराधी को सजा देना आवश्यक होता है, लेकिन इसके साथ-साथ इंसानियत को नहीं छोड़ा जाता।
यही वजह है कि जब जल्लाद अपराधी के कान में कहता है -
➡️ "मुझे माफ कर दो",
तो वह क्षण केवल सजा का नहीं, बल्कि दो इंसानों के बीच अंतिम संवाद का प्रतीक बन जाता है।

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