
जब जज़्बा हो बुलंद और दिल में कुछ कर दिखाने की आग हो, तो कोई भी मुश्किल रास्ता आसान बन जाता है। कुछ ऐसी ही कहानी है हिमाचल प्रदेश की 95 वर्षीय शारदा देवी की, जिन्होंने बिना कभी स्कूल गए तीन किताबें लिख डालीं!
🏡 साधारण गांव, असाधारण सोच
धर्मशाला हलके के सुक्कड़ गांव की रहने वाली शारदा देवी का जन्म प्रोफेसर पंडित बद्रीदत्त के घर हुआ था। उस दौर में लड़कियों को स्कूल भेजने का चलन नहीं था, लेकिन शारदा देवी की पढ़ाई में गहरी रुचि देखकर उनके पिता ने उन्हें तख्ती पर लिखना सिखाया।
यहीं से शुरू हुआ उनके शब्दों का सफर, जिसने उन्हें एक लोकप्रिय कवयित्री बना दिया।
🖋️ बिना स्कूल गए कैसे बनीं लेखिका?
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शारदा देवी ने कभी स्कूल की चौखट नहीं देखी।
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पिता की सिखाई अक्षरज्ञान से उन्होंने खुद पढ़ना-लिखना सीखा।
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धीरे-धीरे वह अपनी भावनाओं को कविता का रूप देने लगीं।
📚 तीन किताबों की रचनाकार
शारदा देवी ने 1970 के दशक में तीन कविता संग्रह लिखे:
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‘माता का कवच’
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‘पहाड़ी दुर्गा सप्तशती’
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‘पंखुड़ी’
इन किताबों को 1984 में शिक्षा मंत्री पंडित संतराम द्वारा मान्यता मिली।
भाषा एवं संस्कृति विभाग ने इन संग्रहों को जिला पुस्तकालयों में शामिल किया, ताकि लोग उनकी लेखनी से प्रेरणा ले सकें।
🎤 कविता के अलावा भी रही खास पहचान
शारदा देवी सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं रहीं।
वो शादी और अन्य धार्मिक कार्यक्रमों के लिए श्लोक व शिक्षाएं भी लिखा करती थीं।
उनकी लेखनी में लोक संस्कृति, नारी शक्ति और धार्मिक आस्था का गहरा मेल नजर आता है।
🌟 आज भी मिसाल हैं शारदा देवी
शारदा देवी की कहानी हमें सिखाती है कि सीखने की कोई उम्र और शिक्षा की कोई सीमा नहीं होती।
जहां चाह वहां राह – और शारदा देवी इस बात का जीता-जागता उदाहरण हैं।
🗣️ क्या आपको शारदा देवी की कहानी प्रेरणादायक लगी?
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