Samachar Nama
×

शरीर के इन अंगों पर पड़ता है शनि दोष का अधिक प्रभाव, जरूर रखें इनका ध्यान

fds

हिंदू धर्म में नवग्रहों का विशेष महत्व है, और इनमें से सबसे रहस्यमयी और प्रभावशाली ग्रह माने जाते हैं शनिदेव। शनिदेव को कर्मों का दंडदाता, न्याय का प्रतीक और तप का प्रतिफल देने वाला ग्रह माना जाता है। यह मान्यता सिर्फ बाहरी जीवन या ग्रह-नक्षत्रों तक सीमित नहीं है, बल्कि शास्त्रों और योगशास्त्र के अनुसार, मनुष्य के शरीर में भी शनिदेव का विशिष्ट स्थान और प्रभाव होता है।

शरीर में शनिदेव का स्थान

भारतीय ज्योतिष और तंत्र शास्त्र के अनुसार, मानव शरीर में प्रत्येक ग्रह का एक विशिष्ट केंद्र (चक्र या अंग) होता है। शनिदेव को शरीर में मुख्य रूप से पैरों और रीढ़ की हड्डी के निचले भाग (मूलाधार चक्र) से जोड़ा जाता है। यह स्थान स्थिरता, सहनशीलता, श्रम और जीवन की नींव का प्रतीक माना जाता है।

  • मूलाधार चक्र: यह चक्र शरीर के सबसे निचले हिस्से, गुदा और जननेंद्रिय के बीच होता है। शनि ग्रह यहीं स्थित होता है। यही चक्र मनुष्य के भीतर स्थायित्व, जीवन शक्ति और आत्मनियंत्रण को नियंत्रित करता है।

  • पैरों से जुड़ाव: शनि को शरीर के पैरों, हड्डियों, जोड़ों, घुटनों, त्वचा और स्नायुतंत्र से भी जोड़ा गया है। यदि शनि मजबूत हो, तो व्यक्ति में परिश्रम, सहनशीलता और आत्मसंयम अधिक होता है। वहीं कमजोर शनि पैर और हड्डियों से संबंधित रोग उत्पन्न कर सकता है।

शरीर पर शनि के प्रभाव

  1. फिजिकल लेवल पर:

    • मजबूत शनि: शरीर में संतुलन, लंबी उम्र, कठोर परिश्रम करने की क्षमता, मजबूत हड्डियां।

    • कमजोर शनि: जोड़ों का दर्द, गठिया, लकवा, त्वचा रोग, पैर टूटने जैसी समस्याएं।

  2. मानसिक और भावनात्मक स्तर पर:

    • शनि मस्तिष्क पर भी प्रभाव डालता है। यह व्यक्ति को गंभीर, चिंतनशील और जिम्मेदार बनाता है।

    • कमजोर शनि डिप्रेशन, अकेलापन, डर, आत्मविश्वास की कमी और निराशा का कारण बन सकता है।

  3. कर्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से:

    • शनि ग्रह हमारे पूर्व और वर्तमान कर्मों का न्याय करता है।

    • जीवन में जो संघर्ष, देरी या असफलताएं आती हैं, वे शनि की शिक्षा होती हैं – कि व्यक्ति आत्मनिरीक्षण करे और अपने कर्म सुधारे।

शनि को संतुलित करने के उपाय

  • योग और प्राणायाम: मूलाधार चक्र को जाग्रत करने वाले आसन और प्राणायाम करें, जैसे मलासन, शवासन, भस्त्रिका आदि।

  • दान और सेवा: काले तिल, काली उड़द, लोहा और चप्पल का दान करना शनि को प्रसन्न करता है।

  • हनुमान पूजा: शनि के प्रभाव को संतुलित करने के लिए हनुमानजी की आराधना अति फलदायी मानी जाती है।

  • मंत्र जाप: “ॐ शं शनैश्चराय नमः” का जाप करने से शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है।

शनि सिर्फ एक ग्रह नहीं, बल्कि हमारे जीवन और शरीर में स्थिरता, संतुलन और कर्म का सूचक है। इसका प्रभाव हमारे पैर, हड्डियों और मूलाधार चक्र के माध्यम से पूरे जीवन को संचालित करता है। यदि हम अपने जीवन में अनुशासन, सेवा और संयम को अपनाएं, तो शनिदेव का प्रभाव सकारात्मक रूप से हमें मजबूती, सफलता और आत्मज्ञान की ओर ले जाता है।

Share this story

Tags