दुनिया के ऐसे देश जहां नहीं होता रावण का दहन, मनाया जाता है शोक, वीडियो में देखें और जानें सबकुछ

अजब गजब न्यूज डेस्क !! दशहरा या विजयादशमी का त्यौहार पूरे भारत में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन लोग बुराई के प्रतीक के रूप में रावण का पुतला जलाते हैं। लोग दशहरा को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक मानते हैं। इस साल दशहरा 12 अक्टूबर 2024 को मनाया जाएगा. इस दिन भगवान राम ने रावण का वध किया था। इसलिए इस दिन रावण का पुतला जलाना एक प्रमुख अनुष्ठान है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में कुछ जगहें ऐसी भी हैं जहां रावण का पुतला नहीं जलाया जाता है। इसके पीछे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक कारण हैं, हर जगह के अपने अलग-अलग रीति-रिवाज और मान्यताएं हैं। जानिए उनके बारे में.कांकेर में रावण को 'मामा' कहा जाता है और यहां का आदिवासी समुदाय रावण का सम्मान करता है। वे उन्हें बुद्धिमान और शक्तिशाली मानते हैं और उन पर विश्वास करते हैं, इसलिए यहां दशहरे पर पुत नहीं जलाए जाते।
राजस्थान के मंडोर के लोगों का मानना है कि यह स्थान रावण की पत्नी मंदोदरी के पिता राक्षस मय की राजधानी थी। यह भी माना जाता है कि रावण ने यहीं मंदोदरी से विवाह किया था। इस कारण मंडोर के लोग रावण को अपना दामाद मानते हैं और उसका सम्मान करते हैं। इसी कारण से यहां विजयादशमी के दिन रावण का पुतला नहीं जलाया जाता है। इसके बजाय, रावण के सम्मान में उसकी मृत्यु पर शोक मनाया जाता है। यह परंपरा स्थानीय मान्यताओं और रिश्तों के आधार पर पीढ़ियों से चली आ रही है।गोंड जनजाति के लोग रावण को अपने पूर्वज के रूप में भी पूजते हैं। वे रावण का सम्मान करते हैं और उसके वध का जश्न नहीं मनाते। उनके अनुसार रावण एक वीर योद्धा और महान ऋषि था।
बस्तर दशहरा भारत के सबसे अनोखे दशहरा उत्सवों में से एक है, जहाँ रावण का पुतला जलाने की कोई परंपरा नहीं है। यहां देवी दुर्गा की पूजा की जाती है और इसे शक्ति के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस त्यौहार में रावण को जलाने की बजाय देवी-देवताओं का जुलूस निकाला जाता है।एमपी के मंदसौर में एक अनोखी परंपरा है, जहां रावण का पुतला नहीं जलाया जाता. इसका कारण यह माना जाता है कि मंदसौर रावण की पत्नी मंदोदरी का जन्मस्थान है। इस वजह से यहां के लोग रावण को अपना दामाद मानते हैं और उसकी मौत पर जश्न नहीं बल्कि मातम मनाते हैं। दशहरे पर रावण को जलाने की बजाय उसकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की जाती है। मंदसौर में रावण की 35 फीट ऊंची मूर्ति भी स्थापित है, जो इसी परंपरा और आस्था का प्रतीक है।
बिसरख, उत्तर प्रदेश:उत्तर प्रदेश के बिसरख गांव की एक अनोखी और दिलचस्प मान्यता है, जिसके अनुसार यह स्थान रावण का जन्मस्थान है। यहां के लोग रावण को अपना पूर्वज मानते हैं और दशहरे पर रावण का पुतला नहीं जलाते, बल्कि उसकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। रावण के पिता ऋषि विश्रवा और माता कैकसी थीं, जो राक्षस कुल से थीं। कहा जाता है कि ऋषि विश्रवा ने बिसरख में एक शिवलिंग की स्थापना की थी और उनके सम्मान में इस स्थान का नाम "बिसरख" रखा गया। यहां के निवासी रावण को एक महान विद्वान और वेद-शास्त्रों का ज्ञाता महान ब्राह्मण मानते हैं।
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में एक विशेष मान्यता है कि लंकापति रावण ने इसी स्थान पर भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी और उन्हें प्रसन्न कर आशीर्वाद प्राप्त किया था। रावण को महादेव का सबसे बड़ा भक्त माना जाता है, इसलिए यहां के लोगों में रावण के प्रति गहरी श्रद्धा है। इसी धार्मिक मान्यता के कारण कांगड़ा में दशहरे के अवसर पर रावण का दहन नहीं किया जाता है। यहां के लोग रावण को एक महान तपस्वी और भगवान शिव के प्रिय भक्त के रूप में सम्मान देते हैं और यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है।
गढ़चिरौली में रहने वाली गोंड जनजाति खुद को रावण का वंशज मानती है और रावण की पूजा करती है। उनके अनुसार, केवल तुलसीदास द्वारा रचित रामायण में ही रावण को दुष्ट के रूप में चित्रित किया गया है, जबकि वह उनके लिए एक महान और सम्माननीय व्यक्ति था। इसी मान्यता के आधार पर इस क्षेत्र में दशहरे के दिन रावण का पुतला नहीं जलाया जाता, बल्कि उसकी पूजा की जाती है।यहां भी रावण का पुतला नहीं जलाया जाता है. स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, रावण एक महान विद्वान और शिव भक्त था, जिसे जलाना अनैतिक माना जाता है। यहां के लोगों का मानना है कि रावण एक बुद्धिमान और शक्तिशाली राजा था, जिसे वे सम्मान और श्रद्धा की दृष्टि से देखते हैं।