मां दुर्गा के इस मंदिर में जाने से दूर भागते हैं लोग, जो भी गया अंदर उसके लिए जीवन पर मंडराया खतरा

नवरात्रि के पावन अवसर पर देशभर में मां दुर्गा के नौ रूपों की आराधना की जाती है। मंदिरों और पंडालों में भक्तों की भीड़ उमड़ती है, श्रद्धा और भक्ति का माहौल चारों ओर व्याप्त रहता है। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे दुर्गा मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां लोग दर्शन करने नहीं, डर के कारण पास भी नहीं फटकते।
यह मंदिर मध्य प्रदेश के देवास जिले में स्थित है, और इसे आम बोलचाल में "शापित माता का मंदिर" कहा जाता है। इस मंदिर से जुड़ी कहानियां और मान्यताएं इतनी भयावह हैं कि स्थानीय लोग यहां जाना अशुभ मानते हैं।
क्यों माना जाता है मंदिर को ‘शापित’?
देवास के इस मंदिर को लेकर स्थानीय लोगों में यह धारणा है कि जो भी व्यक्ति इस मंदिर में रुकता है या रात बिताता है, वह कभी लौटकर नहीं आता। कहा जाता है कि यहां अशुभ शक्तियों का वास है, और मंदिर के अंदर एक औरत की आत्मा भी भटकती है।
भले ही यह मंदिर मां दुर्गा को समर्पित है, लेकिन इसे लेकर भक्ति से ज्यादा भय का माहौल बना रहता है।
मंदिर से जुड़ी प्राचीन कहानी
इस मंदिर का निर्माण देवास के एक महाराजा ने करवाया था। शुरुआत में यह मंदिर राजमहल की धार्मिक गतिविधियों का केंद्र था। लेकिन कुछ ही समय बाद राजघराने में अशुभ घटनाएं होने लगीं, जिसने सभी को चौंका दिया।
सबसे बड़ा झटका तब लगा जब यह पता चला कि राजा की राजकुमारी और सेनापति के बीच प्रेम संबंध चल रहा था। यह बात राजा को कतई मंजूर नहीं थी। राजा ने राजकुमारी को बंधक बना लिया। कुछ ही समय में राजकुमारी की मौत संदिग्ध परिस्थितियों में हो गई। कहा जाता है कि उसे मार दिया गया या फिर उसने आत्महत्या कर ली।
इस घटना की खबर जब सेनापति को मिली, तो उसने भी अपनी जान दे दी।
मंदिर के अपवित्र होने की मान्यता
राजमहल में इन घटनाओं के बाद राजपुरोहित ने राजा को बताया कि यह मंदिर अब अपवित्र हो चुका है।
पुरोहित ने सलाह दी कि मां दुर्गा की मूर्ति को मंदिर से हटाकर कहीं और स्थापित कर दिया जाए।
राजा ने उज्जैन के गणेश मंदिर में दुर्गा माता की मूर्ति को स्थापित करवा दिया। लेकिन इससे भी राजघराने को शांति नहीं मिली। अजीब और डरावनी घटनाएं लगातार होती रहीं। अंततः पुरोहित ने इसे शापित मंदिर घोषित कर दिया और लोगों को वहां जाने से मना कर दिया गया।
बलि और आत्मा की कहानियां
कुछ ग्रामीणों का मानना है कि इस मंदिर में पूजा तभी फलदायक होती है जब बलि दी जाती है। हालांकि अब बलि प्रथा लगभग बंद हो चुकी है, लेकिन भूतकाल की यह मान्यता आज भी लोगों को डरा देती है।
इसके अलावा कई लोगों ने यह दावा भी किया है कि मंदिर के पास एक महिला की आत्मा अक्सर रात में दिखाई देती है—जिसे कुछ लोग राजकुमारी की आत्मा मानते हैं।
मंदिर में क्यों नहीं होती अब पूजा?
पुजारी वर्ग और स्थानीय श्रद्धालु अब इस मंदिर में कोई विधिवत पूजा नहीं करते। नवरात्रि जैसे पावन अवसरों पर भी यह मंदिर सूना पड़ा रहता है, जबकि पास के अन्य मंदिरों में भक्तों की भीड़ लगी रहती है।
राजपुरोहित द्वारा दिए गए दिशा-निर्देश आज भी लोगों की स्मृति में हैं। मंदिर को देखकर साफ पता चलता है कि इसे सालों से बिना किसी धार्मिक गतिविधि के छोड़ दिया गया है।
इतिहास, मान्यता या अंधविश्वास?
अब सवाल ये उठता है—क्या यह सब सच है, या केवल एक मनगढ़ंत कहानी?
कई इतिहासकार इस तरह की कहानियों को सामाजिक मनोविज्ञान का हिस्सा मानते हैं। उनका कहना है कि एक घटना के पीछे के डर को बढ़ा-चढ़ाकर बताया जाता है, और वह एक सामाजिक आस्था का रूप ले लेती है।
लेकिन दूसरी ओर, स्थानीय लोगों के अनुभव, कथाएं और मंदिर का वर्तमान हाल देखकर यह मानना भी मुश्किल नहीं है कि कुछ न कुछ असाधारण जरूर है।
निष्कर्ष: श्रद्धा बनाम डर
देवास का यह दुर्गा मंदिर अपने आप में एक रहस्यमयी धार्मिक स्थल है। एक ओर जहां मां दुर्गा को शक्ति, रक्षा और कल्याण की देवी माना जाता है, वहीं उनका यह मंदिर भय, आत्मा और शाप का पर्याय बन चुका है।
नवरात्रि जैसे पर्व पर जहां देश भर में भक्ति की लहर चलती है, वहीं देवास का यह मंदिर एक अलग ही कहानी कहता है—एक ऐसी कहानी जो श्रद्धा और डर के बीच झूलती है।