अजीबोगरीब परपंरा! आखिर क्यों यहां शादी के बाद खुद पति ही बिगाड़ देता है पत्नी का चेहरा, कारण जान चौंक जाएंगे आप

दुनिया भर के हर देश और संप्रदाय में लोग अलग-अलग तरह के रीति-रिवाजों और परंपराओं का पालन करते आ रहे हैं। जो सदियों से अपने समाज से जुड़ा हुआ है। कुछ रीति-रिवाज और परंपराएं ऐसी हैं जिनके बारे में जानकर कोई भी आश्चर्यचकित हो जाएगा। आदिवासियों और जनजातियों के बीच सबसे विचित्र अनुष्ठान किए जाते हैं जो निश्चित रूप से किसी को भी सोचने पर मजबूर कर देंगे। वैसे तो पूरी दुनिया में महिलाएं सजने-संवरने का शौक रखती हैं, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे समुदाय के बारे में बताने जा रहे हैं जहां महिलाओं को बदसूरत बनाया जाता है। इतना ही नहीं, महिलाओं को कुरूप बनाने में उनके अपने पतियों का भी हाथ होता है।
महिलाओं को कुरूप बनाने की यह परंपरा म्यांमार में रहने वाली चिन और मुन जनजाति के लोगों द्वारा निभाई जाती है। यहां पुरुष अपनी पत्नियों को बदसूरत रखते हैं। इसके लिए वे कोई कसर नहीं छोड़ते। इनके चेहरे इस तरह से बने हैं कि अगर आप भी इन्हें देखेंगे तो हैरान रह जाएंगे।
दरअसल, इस जनजाति के पुरुष अपनी पत्नियों के चेहरे पर भद्दे टैटू बनवाते हैं। इससे भी अधिक आश्चर्य की बात यह है कि ये टैटू सूअर और गाय की चर्बी से बने हैं। जिससे उनके प्रति नफरत बढ़ती है। इसके अलावा, ये टैटू किसी रंग से नहीं बल्कि जंगली पौधों से बनाए गए हैं। इनसे संक्रमण का भी खतरा रहता है। टैटू बनवाने के बाद भी उनसे खून निकलता रहता है।
दुनियाभर में मौजूद अलग-अलग जनजातियों के लोग सदियों से अपनी परंपराओं का पालन करते आ रहे हैं, जिनमें से कुछ तो ऐसी हैं जिन्हें जानकर कोई भी हैरान हो जाएगा। आधुनिक युग में जहां मानव चांद पर पहुंच रहा है, वहीं आदिवासी लोग अपनी सदियों पुरानी परंपरा को निभा रहे हैं। म्यांमार में रहने वाली चिन और मुन जनजाति के लोग भी अपनी परंपराओं को बखूबी निभाते आ रहे हैं, क्योंकि ये जातियां अपनी सुरक्षा को लेकर हमेशा चिंतित रहती हैं।
ये लोग ऐसा केवल असुरक्षा के कारण करते हैं क्योंकि म्यांमार में सालों पहले राजशाही थी और निर्दयी राजा अपने क्षेत्र की खूबसूरत महिलाओं पर गंदी नज़र रखता था। शारीरिक शोषण के अलावा, वह उन्हें यौन दास के रूप में भी रखता था। इस समस्या से निपटने के लिए आदिवासी लोगों ने अपनी महिलाओं की सुंदरता को बिगाड़ना शुरू कर दिया। उसके बाद से ये लोग आज भी इस परंपरा का पालन कर रहे हैं।