इस मंदिर में रोज सुबह देखने को मिलता है चमत्कार, यहां रात को चौसर खेलते हैं महादेव और माता पार्वती

भारत में कई रहस्यमय और चमत्कारी मंदिर हैं। लोग इनके रहस्य जानकर आश्चर्यचकित हो जाते हैं। ऐसा ही एक चमत्कारी मंदिर है, जिसके बारे में मान्यता है कि भगवान शिव और माता पार्वती तीनों लोक प्रतिदिन भ्रमण करने के बाद यहां विश्राम करने आते हैं और चौसर भी खेलते हैं। यह मंदिर खंडवा का ओंकारेश्वर मंदिर है। भगवान शिव का यह मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से चौथा ज्योतिर्लिंग है। ओंकारेश्वर मंदिर मध्य प्रदेश के इंदौर शहर के पास स्थित है। नर्मदा नदी के मध्य ओंकार पर्वत पर स्थित ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर हिंदुओं की आस्था का केंद्र है।
आपको बता दें कि भगवान शिव का यह चमत्कारी मंदिर मध्य प्रदेश के निमाड़ में है। यह खंडवा जिले में नर्मदा नदी के मध्य ओंकार पर्वत पर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि यहां ओम शब्द की उत्पत्ति ब्रह्मा जी के मुख से हुई थी। इसलिए प्रत्येक धार्मिक ग्रंथ या वेद का पाठ ॐ शब्द के साथ किया जाता है। ओंकारेश्वर की महिमा का वर्णन स्कंद पुराण, शिव पुराण और वायु पुराण जैसे पुराणों में भी मिलता है। इसके अलावा यहां शिवलिंग का आकार ॐ के आकार का है। इसी कारण इस ज्योतिर्लिंग को ओंकारेश्वर के नाम से जाना जाता है।
मान्यता है कि यह एकमात्र ज्योतिर्लिंग है, जहां भगवान भोलेनाथ तीनों लोकों का भ्रमण करने के बाद रात्रि में विश्राम करने आते हैं। यहां देवी पार्वती भी विराजमान हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव और देवी पार्वती रात को सोने से पहले यहां चौसर खेलते हैं। इसी कारण यहां शयन आरती भी की जाती है। प्रतिदिन शयन आरती के बाद ज्योतिर्लिंग के सामने शतरंज और पासों की बिसात सजाई जाती है।
इस मंदिर में रात्रि आरती के बाद कोई भी गर्भगृह में नहीं जाता। शयन आरती के बाद प्रतिदिन रात्रि में भगवान शिव के सामने शतरंज और पासे रखे जाते हैं। सुबह जब मंदिर के दरवाजे खोले जाते हैं तो पासे उल्टे पाए जाते हैं। ओंकारेश्वर मंदिर में भगवान शिव की गुप्त आरती की जाती है, जहां पुजारी के अलावा कोई भी गर्भगृह में प्रवेश नहीं कर सकता। पुजारी भगवान शिव की विशेष पूजा और अभिषेक करते हैं।
मान्यता है कि हिंदुओं में सभी तीर्थों के दर्शन के बाद ओंकारेश्वर के दर्शन और पूजन का विशेष महत्व है। शिव भक्त सभी तीर्थों से जल लाकर ओंकारेश्वर में चढ़ाते हैं, तभी सभी तीर्थ पूरे माने जाते हैं। ओंकारेश्वर और अमलेश्वर दोनों शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंग माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि पर्वतराज विंध्य ने यहां घोर तपस्या की थी। तपस्या के बाद उन्होंने भगवान शिव से प्रार्थना की और उनसे विंध्य क्षेत्र में स्थायी रूप से निवास करने का अनुरोध किया, जिसके बाद भगवान शिव ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली। वहाँ वही ओंकार लिंग दो रूपों में विभाजित है। इसी प्रकार पार्थिव मूर्ति में जो ज्योति स्थापित की गई है, उसे भगवान या अमलेश्वर ज्योतिर्लिंग कहते हैं।