Mahabharat Places: जहां आज भी मौजूद हैं कुरुक्षेत्र के युद्ध से जुड़े प्रमाण और ऐतिहासिक साक्ष्य, जो बयाँ करते है उस खूनी संग्राम की कहानी
महाभारत की कथा (Mahabharat Katha) आज भी मनुष्य को प्रेरणा देती है। जहाँ अधिकांश हिंदू धर्मग्रंथ हमें सिखाते हैं कि हमें क्या करना चाहिए, वहीं महाभारत हमें बताती है कि जीवन में किन गलतियों से बचना चाहिए। महाभारत से जुड़े कई तथ्य आज भी धरती पर मौजूद हैं, जिनके बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं।
खाटू श्याम की कथा
खाटू-श्याम की मान्यता आज भी दूर-दूर तक फैली हुई है, जिसकी कथा महाभारत के युद्ध से भी जुड़ी है। खाटू-श्याम, जो वास्तव में घटोत्कच के पुत्र यानी बर्बरीक थे, महाभारत के युद्ध में भाग लेने पहुँचे। भगवान कृष्ण जानते थे कि बर्बरीक कुछ ही मिनटों में इस युद्ध को समाप्त कर सकते हैं। तब भगवान कृष्ण ने ब्राह्मण का वेश धारण किया और बर्बरीक से उसका शीश दान में मांग लिया। साथ ही उन्होंने बर्बरीक को यह वरदान भी दिया कि कलियुग में तुम स्वयं श्री कृष्ण के नाम से पूजे जाओगे। तब बर्बरीक ने श्री कृष्ण से इच्छा व्यक्त की कि वह इस युद्ध का परिणाम देखना चाहते हैं, तब उनका सिर युद्धभूमि से कुछ दूरी पर रख दिया गया, जहाँ आज खाटू श्याम जी का मंदिर स्थापित है।
ये अवशेष मिलते हैं
महाभारत का महायुद्ध कौरवों और पांडवों के बीच हरियाणा में स्थित कुरुक्षेत्र में लड़ा गया था। इस स्थान पर भी पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को महाभारत काल के कई अवशेष जैसे युद्ध में प्रयुक्त तीर, भाले आदि मिले हैं। साथ ही, कुरुक्षेत्र की धरती पर एक प्राचीन कुआँ भी मौजूद है, जहाँ अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु को छल से चक्रव्यूह रचकर मारा गया था।
ऐसे हुई भीम और हनुमान जी की मुलाकात
महाभारत में एक कथा है, जिसके अनुसार, जब भीम किसी काम से गंधमादन पर्वत पर गए थे, तो रास्ते में हनुमान जी लेटे हुए थे, जिन्हें वे पहचान नहीं पाए। जब भीम ने हनुमान जी से अपनी पूंछ हटाने को कहा, तो हनुमान जी कहने लगे कि आप स्वयं ही इस पूंछ को हटा लीजिए। लेकिन जब भीम ने ऐसा करने की कोशिश की, तो वे पूंछ को हिला भी नहीं पाए। आज यह स्थान हनुमान चट्टी के नाम से जाना जाता है, जो उत्तराखंड के जोशीमठ से लगभग 25 किलोमीटर दूर स्थित है।
सातवाँ ऐतिहासिक स्थल
महाभारत ग्रंथ की रचना ऋषि वेद-व्यास ने की है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाभारत की कथा को महर्षि वेद-व्यास ने मौखिक रूप दिया था, जिसे गणेश जी ने लिपिबद्ध किया था। ऐसे में उत्तराखंड में वह स्थान है, जहाँ आज भी महाभारत के रचयिता महर्षि वेद व्यास जी की गुफा स्थित है। इसके पास ही गणेश जी की गुफा भी स्थित है। कहा जाता है कि गणेश जी ने वेद-व्यास की महाभारत इसी स्थान पर लिखी थी। इस स्थान को व्यास पोथी के नाम से जाना जाता है।
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