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दुनिया की इकलौता शिव मंदिर जहां साल में एक बार खुद आते हैं ​बाबा भोले नाथ और माता पार्वती,करते हैं अनोखी पूजा

हमारे देश में कई रहस्यमयी और चमत्कारी मंदिर हैं। इन मंदिरों में भक्तों को ऐसे-ऐसे चमत्कार देखने को मिलते हैं, जिनके बारे में जानकर हर कोई हैरान रह जाता है। ऐसा ही एक प्राचीन शिव मंदिर कर्नाटक में भी है। दरअसल....
500 साल पुरानें इस मंदिर में इस दिन खुद आते हैं भगवान शिव और मां पार्वती, करते हैं अनोखी पूजा, जानकर आप भी हो जाएंगे हैरान

अजब गजब न्यूज डेस्क !! हमारे देश में कई रहस्यमयी और चमत्कारी मंदिर हैं। इन मंदिरों में भक्तों को ऐसे-ऐसे चमत्कार देखने को मिलते हैं, जिनके बारे में जानकर हर कोई हैरान रह जाता है। ऐसा ही एक प्राचीन शिव मंदिर कर्नाटक में भी है। दरअसल, राजधानी बेंगलुरु में गवी गंगाधरेश्वर मंदिर है, जहां हर साल एक खास दिन पर भक्तों को अद्भुत चमत्कार देखने को मिलते हैं। यह अद्भुत घटना हर साल मकर संक्रांति के दिन घटित होती है। इस अद्भुत घटना को देखने के लिए लोग दूर-दूर से यहां आते हैं।

स्वयं निर्मित शिवलिंग

इस अनोखे मंदिर का निर्माण 9वीं शताब्दी में केम्पे गौड़ा ने करवाया था। इसके बाद 16वीं शताब्दी में मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया। इस मंदिर की खास बात यह है कि यहां मौजूद शिवलिंग स्वयंभू है यानी इसे किसी ने नहीं बनाया है। मान्यता है कि यह शिवलिंग स्वयंभू है। ऐसा माना जाता है कि ऋषि गौतम ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए इस मंदिर में तपस्या की थी।

मकर संक्रांति पर होता है चमत्कार!

हर साल मकर संक्रांति के मौके पर इस मंदिर में एक अद्भुत घटना देखने को मिलती है। दरअसल, इस दिन सूर्य भगवान अपनी किरणों से इस शिवलिंग का अभिषेक करते हैं। जबकि इस शिवलिंग तक पूरे साल सूर्य की किरणें नहीं पहुंच पाती हैं। पूरे वर्ष में केवल मकरसंक्रांति के दिन जब सूर्य भगवान उत्तरायण होते हैं, सूर्य की किरणें केवल 5 से 8 मिनट के लिए गर्भगृह तक पहुंचती हैं और शिवलिंग का अभिषेक करती हैं। यह नजारा आमतौर पर सूर्यास्त के समय देखने को मिलता है। इस अद्भुत नजारे को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।

मंदिर की वास्तुकला बहुत अनोखी है

इस मंदिर की वास्तुकला बहुत अनोखी है। यह मंदिर दक्षिण-पश्चिम दिशा यानि दक्षिण-पश्चिम कोने की ओर मुख किये हुए है। इसे इस तरह से भी डिजाइन किया गया है कि सूर्य की किरणें साल में केवल एक बार ही शिवलिंग तक पहुंचती हैं। इससे पता चलता है कि इस मंदिर का नक्शा तैयार करने वाला वास्तुकार खगोल विज्ञान का विशेषज्ञ था।

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