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यहां जुटते हैं दुनियाभर के आलसी लोग, सड़कों पर सोते हुए आते हैं नजर

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दुनियाभर में अलग-अलग त्योहार और उत्सव मनाए जाते हैं – कहीं नृत्य के लिए, कहीं वीरता के लिए, तो कहीं प्रेम के लिए। लेकिन अगर हम आपसे कहें कि एक ऐसा भी उत्सव है, जो आलसियों के लिए मनाया जाता है, तो शायद आप चौंक जाएंगे। जी हां, ये कोई मज़ाक नहीं, बल्कि हकीकत है। इस उत्सव का नाम है ‘वर्ल्ड लेज़ीनेस डे’, जो कोलंबिया के इतागुई नामक शहर में हर साल बड़े ही अनोखे अंदाज़ में मनाया जाता है।

क्या है 'वर्ल्ड लेज़ीनेस डे'?

'वर्ल्ड लेज़ीनेस डे' यानी ‘विश्व आलस दिवस’ – एक ऐसा दिन जब दुनिया के सबसे आलसी लोग सड़कों पर उतर आते हैं… लेकिन काम करने के लिए नहीं, बल्कि आराम करने के लिए!

हर साल अगस्त महीने के तीसरे रविवार को यह अनूठा उत्सव कोलंबिया के इतागुई शहर में मनाया जाता है। इस बार यह आयोजन 19 अगस्त को हुआ, और हमेशा की तरह इस बार भी लोगों ने गद्दे-बिस्तर लेकर सड़कों को अपने ‘बेडरूम’ में बदल दिया।

आलसियों का मेला

इस दिन सड़कों पर आपको कोई पेड़ के नीचे तकिया लेकर खर्राटे मारता दिखाई देगा, तो कोई बीच रास्ते में आराम से चादर ओढ़े पड़ा मिलेगा। कुछ लोग अपने बिस्तरों को रंगीन लाइट्स से सजाकर लाते हैं, तो कुछ अपनी पूरी फैमिली के साथ सड़कों पर बिस्तर लगाकर लेट जाते हैं।

यह नज़ारा बिल्कुल किसी आलसियों के कार्निवल जैसा लगता है – जहां काम या जिम्मेदारी नहीं, सिर्फ और सिर्फ आराम, नींद और मस्ती होती है।

क्यों मनाया जाता है ये अजीब सा त्योहार?

इस फेस्टिवल की शुरुआत 1985 में मारियो मोंटोया नामक स्थानीय नागरिक ने की थी। मोंटोया का मानना था कि कोलंबिया जैसे देश में जहां लोगों की ज़िंदगी तनाव, हिंसा और अस्थिरता से भरी होती है, वहां कम से कम साल में एक दिन ऐसा होना चाहिए जब लोग सिर्फ खुद के लिए जिएं – आराम करें, रिलैक्स करें।

धीरे-धीरे यह विचार पूरे शहर में लोकप्रिय हो गया और अब यह एक स्थानीय परंपरा बन चुका है। पिछले तीन दशकों से यह उत्सव हर साल मनाया जाता है और अब तो दुनियाभर के पर्यटक और 'आलसी' इसमें भाग लेने आने लगे हैं।

तनाव से राहत का तरीका

इस फेस्टिवल के पीछे एक गहरी सोच भी है – यह सिर्फ मस्ती या हंसी-मज़ाक तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक मानवाधिकार और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा संदेश भी देता है।

कोलंबिया जैसे देश में, जहां कई सालों तक नक्सली संघर्ष, मादक पदार्थों की तस्करी, और सामाजिक असमानताएं रहीं, वहां के आम नागरिकों के लिए यह ‘आलस का दिन’ तनाव और भागदौड़ से राहत का एक बेहतरीन माध्यम बन गया है।

क्या सिर्फ सोने के लिए है यह दिन?

हालांकि इसका नाम 'लेज़ीनेस डे' है, लेकिन यह आयोजन सिर्फ सोने या लेटने तक सीमित नहीं है। लोग इस दिन गाने गाते हैं, गिटार बजाते हैं, किताबें पढ़ते हैं, या अपने बच्चों के साथ खेलते हैं। यानी इस दिन का मकसद है – “कोई ज़रूरी काम मत करो, सिर्फ वो करो जो तुम्हें सुकून दे।”

यह दिन लोगों को यह याद दिलाता है कि जिंदगी सिर्फ भागने का नाम नहीं है, कभी-कभी ठहरना और सांस लेना भी जरूरी होता है।

निष्कर्ष

‘वर्ल्ड लेज़ीनेस डे’ भले ही नाम में आलस को बढ़ावा देता हो, लेकिन इसका असली उद्देश्य आधुनिक जीवनशैली की थकान से मुक्ति दिलाना है।

इतागुई शहर की सड़कों पर बिखरे गद्दे, बिस्तर और मुस्कुराते चेहरे हमें यह सिखाते हैं कि कभी-कभी आराम भी एक क्रांति हो सकता है – एक ऐसी क्रांति जो शरीर और मन दोनों को राहत देती है।

तो अगली बार जब कोई आपको ‘आलसी’ कहे, तो मुस्कुरा कर कहिए – “मैं तो बस अगली वर्ल्ड लेज़ीनेस डे की तैयारी कर रहा हूं।”

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