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सावन में संबंध नहीं बनाने का फायदा जानिए स्कंद पुराण से, और क्या नियम हैं यह भी जानें 

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सावन माह शिव आराधना के लिए सर्वोत्तम माह माना जाता है। इस माह में जब भगवान शिव शयन में चले जाते हैं, तब रुद्र सृष्टि के संचालन का कार्यभार संभालते हैं। इसलिए इस माह में संयम के नियमों का पालन करने का विशेष महत्व है। स्कंद पुराण के सावन महात्म्य में कहा गया है कि जो व्यक्ति सावन में ब्रह्मचर्य का पालन करता है और विशेष रूप से आहार-विहार तथा व्यायाम संबंधी नियमों का पालन करता है, उसे भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। सावन माह में, जो लोग परलोक में अपनी स्थिति में सुधार की इच्छा रखते हैं, उन्हें नियमित रूप से भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए। भगवान शिव और पार्वती जिन्हें प्रकृति और पुरुष स्वरूप माना जाता है। उन्होंने कहा है कि जो भी भक्त सावन में ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए शिव और शिवा की पूजा करता है, उसके लिए परलोक में कुछ भी अप्राप्य नहीं रहता। तो आइए जानते हैं सावन में ब्रह्मचर्य के लाभ और सावन में क्या करें और क्या न करें।

सावन में ब्रह्मचर्य के नियम और लाभ

स्कंद पुराण के सावन मास महात्म्य के अनुसार, सावन माह में ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए सभी को शिव की पूजा करनी चाहिए। इस माह में ब्रह्मचर्य का पालन करने से शरीर स्वस्थ और बलवान बनता है। ओज, तेज बढ़ता है। शरीर की दृढ़ता और धर्म के मामले में जो भी कल्याणकारी है - वह सब उसे प्राप्त होता है। निष्काम ब्रह्मचर्य व्रती को तुरंत ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है और परलोक में सभी सुख भी सहज ही प्राप्त हो जाते हैं।

सावन में मौन व्रत रखने के लाभ

जो व्यक्ति सावन माह में भूमि पर शयन करता है, दिन में एक बार भोजन करता है और मौन व्रत का पालन करता है, उसे भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। साथ ही, व्रती में एक अच्छे वक्ता के गुण भी विकसित होते हैं। मौन व्रत रखने वाला व्यक्ति शास्त्रों में पारंगत होता है और वेदों में पारंगत होता है। साथ ही, ऐसे व्यक्ति के घर-परिवार में कलह नहीं होती। इसीलिए सावन के महीने में मौन व्रत रखना बहुत अच्छा माना जाता है। सावन में धर्म का पालन करना ज़रूरी है, इसलिए कहा जाता है कि संयमित रहने के लिए तामसिक आहार का भी त्याग करना चाहिए।

सावन में कुछ व्रत अवश्य रखें

सावन के महीने में सत्य बोलना चाहिए। इस महीने में किसी न किसी प्रकार का व्रत अवश्य रखना चाहिए। इस महीने में फलाहार का सेवन करने का यही कारण नहीं है। जिस प्रकार भाद्रपद में दही, आश्विन में दूध और कार्तिक में दाल का त्याग करना चाहिए, उसी प्रकार सावन में सब्जियों का पूर्णतः त्याग करना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति इन सभी महीनों में इन चीजों का त्याग नहीं कर पाता है, तो उसे सावन में ही इन सभी चीजों का त्याग करने से वही फल प्राप्त हो सकता है। स्कंद पुराण के अनुसार, सावन के महीने में एकाग्रता से काम लेना चाहिए। भोलेनाथ की पूरे विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए। इसके साथ ही षडाक्षर मंत्र ॐ नमः शिवाय का जाप करने का भी बहुत महत्व है।

सावन में व्रत का महत्व और लाभ

रविवार को सूर्य व्रत और सोमवार को शिव व्रत रखें और सावन में नक्त भोजन करना चाहिए, अर्थात सात्विक और नमक रहित। सावन के पहले सोमवार से शुरू होकर अगले साढ़े तीन महीनों तक रोटक व्रत रखने का महत्व है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं। वहीं, सावन के मंगलवार को मंगला गौरी व्रत, बुधवार और गुरुवार को व्रत रखा जाता है। शुक्रवार को जीवनिका व्रत और शनिवार को हनुमान और नृसिंह व्रत रखने का विधान है।

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