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जानिए 1000 साल पुराने उस मंदिर के बारे में, जहां आज भी मौजूद है कभी न समाप्त होने वाला ब्रह्मा जी के कमंडल का पवित्र जल

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भारत मंदिरों का देश है। यहां की सनातन परंपरा हजारों साल पुरानी है। भारत के हिंदू मंदिरों की वास्तुकला और मान्यताएं दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं। कई मंदिर तो हजारों साल पुराने हैं फिर भी जस के तस बने हुए हैं। ऐसा ही एक मंदिर कर्नाटक के चिकमगलूर जिले के कोप्पा में स्थित है। इस मंदिर को ‘कमंडल गणपति मंदिर’ के नाम से जाना जाता है।

कमंडल गणपति मंदिर का रहस्य

इस मंदिर में स्थापित गणेश प्रतिमा के ठीक सामने एक जल स्रोत का उद्गम स्थल है। यह उद्गम स्थल ब्राम्ही नदी का है। मान्यता है कि मंदिर में स्थित भगवान गणेश की प्रतिमा स्वयं माता पार्वती द्वारा स्थापित की गई थी। भगवान गणेश, जो एक हाथ में मोदक लिए और दूसरे हाथ में अभयहस्त की मुद्रा में विराजमान हैं, के दर्शन मात्र से ही श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

प्राकृतिक सौंदर्य और आध्यात्मिक महत्व

763 मीटर की ऊँचाई पर स्थित यह मंदिर सह्याद्री पर्वत श्रृंखलाओं से घिरा हुआ है। इसे ‘कर्नाटक का कश्मीर’ भी कहा जाता है। यह मंदिर न केवल अपने आध्यात्मिक महत्व के लिए बल्कि अपनी अद्भुत प्राकृतिक सुंदरता के लिए भी प्रसिद्ध है।

रहस्यमयी जल स्रोत

करीब एक हजार साल पुराने इस मंदिर में गणेश प्रतिमा के सामने स्थित जल स्रोत के विषय में कहा जाता है कि यह एक रहस्यमयी, अंतहीन और लगातार बहने वाला जलाशय है। इस पवित्र जल की वजह से ही इस मंदिर को ‘कमंडल गणपति मंदिर’ कहा जाता है। श्रद्धालुओं का मानना है कि इस जल में स्नान करने से न केवल शनि दोष दूर होता है बल्कि सभी प्रकार के दुखों से भी मुक्ति मिलती है।

माता पार्वती और ब्रह्मा जी की कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार शनि देव ने माता पार्वती को काफी परेशान कर दिया था। अन्य देवी-देवताओं की सलाह पर माता पार्वती भगवान शनि का ‘तपस’ (ध्यान) करने के लिए पृथ्वी पर आईं और एक उपयुक्त स्थान की तलाश करने लगीं। उन्होंने मंदिर से 18 किमी दूर स्थित ‘मृगवधे’ नामक स्थान को अपनी तपस्या के लिए चुना।

तपस्या में बाधा न आए, इसके लिए उन्होंने भगवान गणेश को मंदिर के बाहर बैठा दिया। भगवान गणेश की निष्ठा और माता पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी स्वयं धरती पर अवतरित हुए और माता को सम्मानित करने के लिए अपने कमंडल से जल निकालकर भूमि पर छिड़क दिया। जिस स्थान पर यह जल गिरा, वहीं ब्राम्ही नदी का उद्गम स्थल बन गया।

कमंडल के आकार का पवित्र जलाशय

ब्रह्मा जी के कमंडल से गिरा जल जिस स्थान पर एकत्र हुआ, उसका आकार भी कमंडल के समान हो गया। इसी कारण इस मंदिर को ‘कमंडल गणपति मंदिर’ कहा जाता है। यह स्थान धार्मिक आस्था का केंद्र है और यहाँ आने वाले भक्तों को भगवान गणेश और माता पार्वती का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। शनिदोष से मुक्ति पाने के लिए यह मंदिर अत्यंत पवित्र माना जाता है।

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