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क्या सच में अजमेर शरीफ दरगाह के नीचे दबा है शिव मंदिर ? वीडियो में जानिए जितने रहस्यमयी उतने ही पेचीदा सवाल की सच्चाई 

क्या सच में अजमेर शरीफ दरगाह के नीचे दबा है शिव मंदिर ? वीडियो में जानिए जितने रहस्यमयी उतने ही पेचीदा सवाल की सच्चाई 

राजस्थान के अजमेर शहर में स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में सूफी संतों और श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है। हर साल लाखों हिंदू और मुस्लिम श्रद्धालु यहां मन्नतें मांगने आते हैं। लेकिन पिछले कुछ समय से सोशल मीडिया और खास चर्चाओं में एक सवाल जोर पकड़ रहा है- क्या वाकई अजमेर शरीफ दरगाह के नीचे प्राचीन शिव मंदिर के अवशेष हैं? यह सवाल जितना संवेदनशील है, उतना ही ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से भी गहराई से जांचने लायक है।


इतिहास के झरोखे से झांकते सवाल

अजमेर शरीफ की दरगाह 12वीं सदी के प्रसिद्ध सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की मजार है, जिन्हें गरीब नवाज के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि वे अफगानिस्तान से भारत आए और अजमेर को अपनी कर्मभूमि बनाया। उन्होंने अपना आध्यात्मिक जीवन यहीं बिताया और अंत में 1236 में यहीं उनकी मृत्यु हुई। उनके अनुयायियों ने इस स्थान पर उनकी दरगाह बनवाई, जो आज एक विशाल धार्मिक स्थल बन गया है। लेकिन कुछ लोगों का दावा है कि दरगाह के स्थान पर एक प्राचीन शिव मंदिर हुआ करता था, जिसे बाद में सूफी संत की समाधि में बदल दिया गया। यह दावा नया नहीं है, लेकिन इस विषय पर समय-समय पर विभिन्न मंचों पर बहस होती रही है।

स्थानीय और पुरातात्विक तथ्य क्या कहते हैं?
अभी तक किसी भी सरकारी दस्तावेज, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) या ऐतिहासिक अभिलेखों ने स्पष्ट रूप से साबित नहीं किया है कि अजमेर शरीफ दरगाह को एक हिंदू मंदिर को तोड़कर बनाया गया था। दरगाह की संरचना, स्थापत्य शैली और उस काल के अन्य ऐतिहासिक स्थलों से तुलना एक इस्लामी वास्तुकला का प्रतिनिधित्व करती है। अजमेर शहर अपने आप में एक ऐतिहासिक शहर है, जिसकी स्थापना 7वीं शताब्दी में चौहान वंश के राजा अजयपाल ने की थी। यहां तारागढ़ किला, ब्रह्मा मंदिर और पुष्कर झील जैसे हिंदू धार्मिक स्थल भी मौजूद हैं, जो बताते हैं कि यह क्षेत्र सांस्कृतिक रूप से कितना विविध रहा है।

अफवाह या साजिश?
सोशल मीडिया के दौर में अफवाह फैलाना आसान हो गया है। हाल ही में कुछ वीडियो और पोस्ट वायरल हुए थे, जिसमें दावा किया गया था कि अजमेर दरगाह के नीचे शिवलिंग छिपा हुआ है। ऐसी बातें सांप्रदायिक तनाव भड़काने का कारण भी बन सकती हैं। कुछ हिंदू संगठन भी समय-समय पर इस मुद्दे को उठाते रहे हैं, जबकि मुस्लिम समुदाय इससे पूरी तरह इनकार करता है। दोनों पक्षों के बीच विवाद से बचने के लिए प्रशासन और पुलिस विभाग हमेशा सक्रिय रहता है।

धार्मिक सहिष्णुता की मिसाल है अजमेर
गौरतलब है कि अजमेर शरीफ दरगाह एक ऐसी जगह है, जहां हिंदू और मुस्लिम दोनों ही तरह के श्रद्धालु बड़ी संख्या में आते हैं। यहां हर साल उर्स मेला लगता है, जिसमें हर धर्म और वर्ग के लोग हिस्सा लेते हैं। यहां तक ​​कि कई बॉलीवुड सेलेब्स, नेता और विदेशी नागरिक भी अपनी मन्नतें मांगने यहां आते हैं। ऐसे में इस जगह को किसी विवाद में घसीटना धार्मिक एकता और सद्भावना को ठेस पहुंचा सकता है। हजारों सालों से भारत में कई धर्म और संस्कृतियां एक साथ मिलकर एक नई पहचान बनाती आई हैं, जिसे नष्ट करना न केवल दुर्भाग्यपूर्ण होगा, बल्कि ऐतिहासिक रूप से भी अनुचित होगा।

निष्कर्ष: सवाल अभी भी खुला है, लेकिन विवेक की जरूरत है
आज तक ऐसा कोई वैज्ञानिक या ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिला है जो यह साबित करे कि अजमेर शरीफ दरगाह को शिव मंदिर को तोड़कर बनाया गया था। हां, यह जरूर संभव है कि प्राचीन काल में उस क्षेत्र में कोई हिंदू धार्मिक स्थल रहा हो, क्योंकि भारत में ऐसे कई स्थान हैं जो समय के साथ विभिन्न धार्मिक प्रयोगों का हिस्सा रहे हैं। लेकिन जब तक कोई ठोस पुरातात्विक साक्ष्य नहीं मिलते, तब तक ऐसे विषयों को अफवाह या धार्मिक विवाद का कारण बनाना सामाजिक तनाव को ही बढ़ावा देगा। जरूरी है कि हम उनके धार्मिक महत्व से ऊपर उठकर ऐतिहासिक स्थलों को भारत की समृद्ध विरासत के रूप में देखें।

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