भारत का अनोखा मंदिर जिसके आगे विज्ञान भी टेकता है घुटने, आजतक नहीं सुलझा हवा में झूलते 70 स्तंभों का रहस्य
हमारे देश में रहस्यों से भरे मंदिरों की कोई कमी नहीं है। दक्षिण भारत में एक ऐसा मंदिर है जिसका रहस्य अंग्रेज भी नहीं सुलझा पाए। यह मंदिर प्राचीन काल से लेकर आज तक लोगों के लिए कौतूहल का विषय रहा है। आपको बता दें कि यह मंदिर भगवान शिव, भगवान विष्णु और भगवान विभद्र को समर्पित है। आइए जानते हैं क्या है इस मंदिर का रहस्य?
इसलिए इसे कहते हैं झूलता हुआ मंदिर
आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में स्थित लेपाक्षी मंदिर 70 खंभों पर टिका है। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि मंदिर का एक खंभा ज़मीन को नहीं छूता। बल्कि हवा में झूलता रहता है। यही वजह है कि इस मंदिर को झूलता हुआ मंदिर भी कहा जाता है।
ब्रिटिश इंजीनियर हैमिल्टन का सिद्धांत
इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि 70 खंभों वाला यह मंदिर उस एक झूलते हुए खंभे को छोड़कर बाकी 69 खंभों पर टिका होगा। इसलिए, हवा में झूलते हुए खंभे से कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन कहा जाता है कि ब्रिटिश शासन के दौरान ब्रिटिश इंजीनियर हैमिल्टन ने भी यही सिद्धांत दिया था।
मंदिर को लेकर कई प्रयास हुए हैं
कहा जाता है कि वर्ष 1902 में उस अंग्रेज इंजीनियर ने मंदिर के रहस्य को सुलझाने के लिए कई प्रयास किए थे। यह जानने के लिए कि यह इमारत किस स्तंभ पर टिकी है, उस इंजीनियर ने हवा में झूलते स्तंभ पर हथौड़े से प्रहार भी किया। लगभग 25 फीट दूर स्थित स्तंभों में दरारें पड़ गईं। इससे पता चला कि मंदिर का पूरा भार इसी झूलते स्तंभ पर है। इसके बाद वह इंजीनियर भी मंदिर के झूलते स्तंभ के सिद्धांत के आगे हार मानकर वापस चला गया।
यह मंदिर 1583 में निर्मित हुआ था
मंदिर के निर्माण को लेकर अलग-अलग मत हैं। इस धाम में एक स्वयंभू शिवलिंग भी मौजूद है, जिसे शिव का रुद्र अवतार यानी वीरभद्र अवतार माना जाता है। जानकारी के अनुसार, यह शिवलिंग 15वीं शताब्दी तक खुले आसमान के नीचे स्थित था। लेकिन 1538 में विजयनगर के राजा के लिए काम करने वाले दो भाइयों विरुपन्ना और वीरन्ना ने इस मंदिर का निर्माण कराया। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, लेपाक्षी मंदिर परिसर में स्थित विभद्र मंदिर का निर्माण अगस्त्य ऋषि ने करवाया था।
मंदिर से जुड़ी एक और कथा
लेपाक्षी मंदिर के बारे में एक और कथा मिलती है। इसके अनुसार, एक बार वैष्णवों यानी विष्णु भक्तों और शैवों यानी शिव भक्तों के बीच इस बात को लेकर बहस छिड़ गई कि कौन श्रेष्ठ है। जो सदियों तक चलती रही। इसे रोकने के लिए अगस्त्य मुनि ने इसी स्थान पर तपस्या की और अपनी तपस्या के बल से उस बहस को समाप्त किया। उन्होंने भक्तों को यह भी बोध कराया कि विष्णु और शिव एक-दूसरे के पूरक हैं। मंदिर के पास ही विष्णु का एक अद्भुत रूप है जिसे रघुनाथेश्वर कहा जाता है। जहाँ विष्णु भगवान शंकर की पीठ पर विराजमान हैं। यहाँ विष्णुजी शिवजी के ऊपर रघुनाथ स्वामी के रूप में स्थापित हैं। इसलिए उन्हें रघुनाथेश्वर कहा जाता है।
झूलते स्तंभ के बारे में यह है मान्यता
लेपाक्षी मंदिर के झूलते स्तंभ के बारे में एक परंपरा है। कहा जाता है कि जो भी भक्त इस लटकते हुए स्तंभ के नीचे से कपड़ा निकालता है, उसे जीवन में कभी कोई दुःख या पीड़ा नहीं होती। परिवार में सुख, शांति और समृद्धि आती है। कहा जाता है कि पहले अन्य स्तंभों की तरह यह स्तंभ भी ज़मीन से जुड़ा हुआ था।

