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भारत का इकलौता गणेश मंदिर, जहां बिना सूंड वाले बप्पा की होती है पूजा, बुधवार को लगता है भक्तों का जमावड़ा

भगवान गणेश का नाम लेते ही उनकी लंबी सूंड और बड़े कानों वाला दिव्य चेहरा आंखों के सामने आ जाता है। ऐसे में अगर कोई उनकी बिना सूंड वाली प्रतिमा या मूर्ति की बात करे तो आश्चर्य होना स्वाभाविक है। देश में बिना सूंड वाली मूर्ति वाला एकमात्र मंदिर गुलाबी नगरी जयपुर में...
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भगवान गणेश का नाम लेते ही उनकी लंबी सूंड और बड़े कानों वाला दिव्य चेहरा आंखों के सामने आ जाता है। ऐसे में अगर कोई उनकी बिना सूंड वाली प्रतिमा या मूर्ति की बात करे तो आश्चर्य होना स्वाभाविक है। देश में बिना सूंड वाली मूर्ति वाला एकमात्र मंदिर गुलाबी नगरी जयपुर में है। कहा जाता है कि यह मंदिर इस शहर की स्थापना से पहले से यहां मौजूद है। यह मंदिर गढ़ गणेश मंदिर के नाम से जाना जाता है, जो जयपुर शहर के उत्तरी दिशा में अरावली पर्वत पर स्थित है।


अरावली पर्वत पर स्थित यह मंदिर दूर से देखने पर जयपुर के मुकुट जैसा दिखता है। ऐसा कहा जाता है कि गढ़ गणेश मंदिर राजस्थान के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग 500 मीटर चढ़ाई करनी पड़ती है, जिसके लिए सीढ़ियों की संख्या 365 है। ऐसा माना जाता है कि ये सीढ़ियाँ वर्ष के 365 दिनों का प्रतिनिधित्व करने के लिए बनाई गई हैं।

अरावली पर्वत पर स्थित गढ़ गणेश की स्थापना महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने की थी, जो जयपुर के संस्थापक भी थे। इस मंदिर की स्थापना जयपुर शहर की नींव रखे जाने से पहले की गई थी। कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना तांत्रिक विधि से की गई थी। इससे जुड़ी एक महत्वपूर्ण बात यह है कि इस मंदिर में भगवान गणेश का मुख जयपुर शहर की ओर है। ऐसा इसलिए किया गया है ताकि प्रथम पूज्य गणपति की नजर पूरे शहर पर रहे। इतिहास के अनुसार जिस पहाड़ी पर यह मंदिर स्थित है, उसकी तलहटी में सवाई जयसिंह द्वितीय ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया था, जिसके बाद इस मंदिर की स्थापना की गई और उसके बाद ही जयपुर शहर की नींव रखी गई।

आपके मन में यह सवाल जरूर उठ रहा होगा कि आखिर यहां बिना सूंड वाले गणेश जी की मूर्ति क्यों स्थापित है? दरअसल, ऐसा इसलिए है क्योंकि यहां भगवान गणेश की जो मूर्ति है वह उनके बाल रूप की है, जिनका भगवान शिव से युद्ध अभी तक नहीं हुआ था। शिवाजी से युद्ध से पहले भगवान गणेश का रूप मानव रूप था।

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