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यहां पति खुद कराता है पत्नी से देह व्यापार, परंपरा के नाम पर होती है हैवानियत

हमारे देश में कुछ परंपराएं सदियों से चली आ रही हैं, जिन्हें देखकर लगता है कि समय की सुई वहीं की वहीं अटकी हुई है। कुछ परंपराएं तो इतनी क्रूर और अमानवीय होती हैं कि इन्हें देख या सुनकर किसी भी संवेदनशील व्यक्ति का दिल दुख सकता है। विशेष रूप से महिलाओं से संबंधित परंपराएं, जिनके तहत उनके अधिकारों का हनन किया जाता है और उन्हें समाज में अपनी इच्छाओं और स्वतंत्रता से वंचित कर दिया जाता है।  परना समुदाय की कुप्रथा  भारत के राजधानी दिल्ली में एक ऐसा समुदाय है, जिसे परना समुदाय के नाम से जाना जाता है। यह समुदाय दिल्ली के नजफगढ़, प्रेमनगर और धर्मशाला में बसता है और अपने विशेष तौर-तरीकों को बनाए रखता है। इस समुदाय में देह व्यापार की एक कुप्रथा सदियों से चली आ रही है। इन परंपराओं के तहत महिलाओं को समाज में अपनी पहचान बनाने का कोई अवसर नहीं मिलता, बल्कि उनका शोषण किया जाता है।  लड़कियों की स्थिति और देह व्यापार  जब इस समुदाय में किसी लड़की का जन्म होता है तो परिवार खुश होता है, लेकिन एक खास उम्र के बाद उस लड़की की स्थिति बेहद दुर्भाग्यपूर्ण हो जाती है। जैसे ही यह लड़कियां जवान होती हैं, इनकी पढ़ाई-लिखाई पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। बजाय इसके, परिवार इस लड़की को देह व्यापार के धंधे में धकेल देता है। और अगर कोई लड़की इस कुप्रथा का विरोध करती है तो उसे समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता है, और फिर उसे कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।  यहां की लड़कियों के लिए यह कोई आम बात नहीं है कि उन्हें देह व्यापार के लिए मजबूर किया जाए। ये लड़कियां शुरू में अपने परिवार की आजीविका का हिस्सा बनती हैं, लेकिन जब वे विवाह के बंधन में बंधती हैं तो उनके पति की कमाई पर उनका पूरा अधिकार होता है। कई बार तो पति खुद अपनी पत्नी के लिए ग्राहकों की तलाश करता है।  महिलाओं पर अत्याचार  परना समुदाय में महिलाओं की हालत बेहद दयनीय है। यहां की महिलाएं हर दिन कम से कम पांच अनजान लोगों के साथ शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर होती हैं। यदि इन महिलाओं को कोई बच निकलने का रास्ता नहीं मिलता है तो वे अपना जीवन देह व्यापार में ही बिता देती हैं। कई बार तो पुलिस भी इन महिलाओं को गिरफ्तार करती है, लेकिन वहां भी इन्हें अमानवीय तरीके से व्यवहार सहना पड़ता है। यह महिलाओं की अस्मिता और उनके अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है, जो पूरी तरह से अक्षम्य है।  पंचायत द्वारा तय होता है ‘रेट’  परना समुदाय में लड़कियों के विवाह से पहले एक पंचायत बुलाई जाती है। पंचायत में लड़की की सुंदरता और शारीरिक गठन के आधार पर उसकी कीमत तय की जाती है। इस क्रूर व्यवस्था में महिलाओं को सिर्फ एक वस्तु की तरह देखा जाता है, जिनका केवल उपयोग किया जाता है, न कि उन्हें सम्मान और अधिकार दिए जाते हैं।  यह परंपरा ना केवल महिलाओं के सम्मान को खत्म करती है, बल्कि यह समाज की गहरी नैतिक गिरावट को भी दर्शाती है। यह परंपरा सिर्फ एक समुदाय तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सोच और मानसिकता पूरे समाज में कहीं न कहीं मौजूद है, जो महिलाओं को निचला दर्जा देती है।  समाज की जिम्मेदारी  यहां यह सवाल उठता है कि इस तरह की परंपराओं और कुप्रथाओं को समाप्त करने के लिए समाज और सरकार ने अब तक क्या कदम उठाए हैं। एक ओर जहां हमारी प्रगति का ढिंढोरा पीटा जाता है, वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसे समुदाय हैं जहां महिलाएं आज भी बेहद कठिनाईयों और अत्याचारों का सामना कर रही हैं।  समाज की जिम्मेदारी बनती है कि ऐसे समुदायों में जागरूकता फैलाए, ताकि महिलाएं अपनी स्थिति को समझ सकें और अपने अधिकारों के लिए खड़ी हो सकें। इसके साथ ही सरकार को भी सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि इस तरह की परंपराओं को जड़ से समाप्त किया जा सके और महिलाओं को वह सम्मान और स्वतंत्रता मिल सके, जो हर इंसान को मिलनी चाहिए।  निष्कर्ष  देश में ऐसे कई समुदाय हैं, जहां महिलाओं की स्थिति आज भी बहुत ही दयनीय है। परना समुदाय जैसी कुप्रथाएं महिलाओं के अस्तित्व और उनके सम्मान को गंभीर रूप से खतरे में डालती हैं। इन परंपराओं को समाप्त करने के लिए समाज और सरकार दोनों को मिलकर कार्य करने की आवश्यकता है। महिलाओं को उनके अधिकार और सम्मान दिलाना हर एक नागरिक और समाज की जिम्मेदारी है। समानता और स्वतंत्रता के इन अधिकारों के लिए हमें एकजुट होकर आवाज उठानी होगी

हमारे देश में कुछ परंपराएं सदियों से चली आ रही हैं, जिन्हें देखकर लगता है कि समय की सुई वहीं की वहीं अटकी हुई है। कुछ परंपराएं तो इतनी क्रूर और अमानवीय होती हैं कि इन्हें देख या सुनकर किसी भी संवेदनशील व्यक्ति का दिल दुख सकता है। विशेष रूप से महिलाओं से संबंधित परंपराएं, जिनके तहत उनके अधिकारों का हनन किया जाता है और उन्हें समाज में अपनी इच्छाओं और स्वतंत्रता से वंचित कर दिया जाता है।

परना समुदाय की कुप्रथा

भारत के राजधानी दिल्ली में एक ऐसा समुदाय है, जिसे परना समुदाय के नाम से जाना जाता है। यह समुदाय दिल्ली के नजफगढ़, प्रेमनगर और धर्मशाला में बसता है और अपने विशेष तौर-तरीकों को बनाए रखता है। इस समुदाय में देह व्यापार की एक कुप्रथा सदियों से चली आ रही है। इन परंपराओं के तहत महिलाओं को समाज में अपनी पहचान बनाने का कोई अवसर नहीं मिलता, बल्कि उनका शोषण किया जाता है।

लड़कियों की स्थिति और देह व्यापार

जब इस समुदाय में किसी लड़की का जन्म होता है तो परिवार खुश होता है, लेकिन एक खास उम्र के बाद उस लड़की की स्थिति बेहद दुर्भाग्यपूर्ण हो जाती है। जैसे ही यह लड़कियां जवान होती हैं, इनकी पढ़ाई-लिखाई पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। बजाय इसके, परिवार इस लड़की को देह व्यापार के धंधे में धकेल देता है। और अगर कोई लड़की इस कुप्रथा का विरोध करती है तो उसे समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता है, और फिर उसे कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।

यहां की लड़कियों के लिए यह कोई आम बात नहीं है कि उन्हें देह व्यापार के लिए मजबूर किया जाए। ये लड़कियां शुरू में अपने परिवार की आजीविका का हिस्सा बनती हैं, लेकिन जब वे विवाह के बंधन में बंधती हैं तो उनके पति की कमाई पर उनका पूरा अधिकार होता है। कई बार तो पति खुद अपनी पत्नी के लिए ग्राहकों की तलाश करता है।

महिलाओं पर अत्याचार

परना समुदाय में महिलाओं की हालत बेहद दयनीय है। यहां की महिलाएं हर दिन कम से कम पांच अनजान लोगों के साथ शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर होती हैं। यदि इन महिलाओं को कोई बच निकलने का रास्ता नहीं मिलता है तो वे अपना जीवन देह व्यापार में ही बिता देती हैं। कई बार तो पुलिस भी इन महिलाओं को गिरफ्तार करती है, लेकिन वहां भी इन्हें अमानवीय तरीके से व्यवहार सहना पड़ता है। यह महिलाओं की अस्मिता और उनके अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है, जो पूरी तरह से अक्षम्य है।

पंचायत द्वारा तय होता है ‘रेट’

परना समुदाय में लड़कियों के विवाह से पहले एक पंचायत बुलाई जाती है। पंचायत में लड़की की सुंदरता और शारीरिक गठन के आधार पर उसकी कीमत तय की जाती है। इस क्रूर व्यवस्था में महिलाओं को सिर्फ एक वस्तु की तरह देखा जाता है, जिनका केवल उपयोग किया जाता है, न कि उन्हें सम्मान और अधिकार दिए जाते हैं।

यह परंपरा ना केवल महिलाओं के सम्मान को खत्म करती है, बल्कि यह समाज की गहरी नैतिक गिरावट को भी दर्शाती है। यह परंपरा सिर्फ एक समुदाय तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सोच और मानसिकता पूरे समाज में कहीं न कहीं मौजूद है, जो महिलाओं को निचला दर्जा देती है।

समाज की जिम्मेदारी

यहां यह सवाल उठता है कि इस तरह की परंपराओं और कुप्रथाओं को समाप्त करने के लिए समाज और सरकार ने अब तक क्या कदम उठाए हैं। एक ओर जहां हमारी प्रगति का ढिंढोरा पीटा जाता है, वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसे समुदाय हैं जहां महिलाएं आज भी बेहद कठिनाईयों और अत्याचारों का सामना कर रही हैं।

समाज की जिम्मेदारी बनती है कि ऐसे समुदायों में जागरूकता फैलाए, ताकि महिलाएं अपनी स्थिति को समझ सकें और अपने अधिकारों के लिए खड़ी हो सकें। इसके साथ ही सरकार को भी सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि इस तरह की परंपराओं को जड़ से समाप्त किया जा सके और महिलाओं को वह सम्मान और स्वतंत्रता मिल सके, जो हर इंसान को मिलनी चाहिए।

निष्कर्ष

देश में ऐसे कई समुदाय हैं, जहां महिलाओं की स्थिति आज भी बहुत ही दयनीय है। परना समुदाय जैसी कुप्रथाएं महिलाओं के अस्तित्व और उनके सम्मान को गंभीर रूप से खतरे में डालती हैं। इन परंपराओं को समाप्त करने के लिए समाज और सरकार दोनों को मिलकर कार्य करने की आवश्यकता है। महिलाओं को उनके अधिकार और सम्मान दिलाना हर एक नागरिक और समाज की जिम्मेदारी है। समानता और स्वतंत्रता के इन अधिकारों के लिए हमें एकजुट होकर आवाज उठानी होगी

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