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बिल्कुल जिंदा लगने वाली डॉल्स ने इस देश में मचाया बवाल! संसद तक पहुंचा मामला

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आजकल दुनियाभर में रिबॉर्न डॉल्स को लेकर एक नया ट्रेंड उभर कर सामने आया है। ये हाइपर-रियलिस्टिक डॉल्स सिर्फ खिलौने नहीं, बल्कि इमोशनल सपोर्ट का जरिया बन चुकी हैं। खासकर उन महिलाओं के लिए जो मां नहीं बन सकतीं या जिन्होंने अपने बच्चों को खो दिया है। लेकिन ब्राजील में अब यही डॉल्स एक बड़े सामाजिक और राजनीतिक विवाद का कारण बन गई हैं। इन डॉल्स को लेकर संसद तक बहस छिड़ चुकी है और अब इनके लिए विशेष कानून बनाने की मांग भी की जा रही है।

बिलकुल असली बच्चों जैसी होती हैं ये रिबॉर्न डॉल्स

रिबॉर्न डॉल्स देखने में इतने हद तक असली बच्चों जैसी होती हैं कि उन्हें पहली नजर में पहचानना मुश्किल हो जाता है। सिलिकॉन या विनाइल से बनी इन डॉल्स में नाखून, पलकें, नसें, बाल और यहां तक कि नकली आंसू तक होते हैं। कुछ डॉल्स रोती भी हैं और डमी चूसती हैं। इनका लुक इतना वास्तविक होता है कि लोग इन्हें गोद में लेकर अस्पताल, मॉल या पार्क तक ले जाते हैं और कई बार आम लोग भ्रम में पड़ जाते हैं कि यह असली बच्चा है या नहीं।

ब्राजील के साओ पाउलो शहर में हाल ही में रिबॉर्न डॉल प्रेमियों का वार्षिक मिलन समारोह आयोजित हुआ, जिसमें दर्जनों महिलाएं अपनी-अपनी डॉल्स को लेकर पहुंचीं। इस आयोजन में डॉल्स को बर्थडे केक कटवाना, मालिश कराना और घूमना-फिरना तक करवाया गया। कुछ सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर्स ने इन डॉल्स के साथ "बर्थ सिमुलेशन" और "पैरेंटिंग" जैसे वीडियो भी बनाए, जो तेजी से वायरल हो रहे हैं। लेकिन यह क्रेज हर किसी को नहीं भा रहा है।

अब संसद में उठे सवाल, बंटा नजरिया

रिबॉर्न डॉल्स की लोकप्रियता को देखते हुए अब यह विषय ब्राजील की संसद में बहस का मुद्दा बन गया है। रियो डी जनेरियो शहर परिषद ने इन डॉल्स को बनाने वाले कारीगरों को सम्मानित करने का प्रस्ताव पास किया है, जो अब मेयर की मंजूरी का इंतजार कर रहा है। दूसरी ओर, अमेजनस राज्य से सांसद जोआओ लुइज ने इन डॉल्स को मानसिक स्वास्थ्य के लिए खतरा बताया है और उन्होंने मांग की है कि इन डॉल्स को सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में किसी भी प्रकार की अनुमति न दी जाए।

जोआओ लुइज ने तो संसद में एक रिबॉर्न डॉल लाकर बाकायदा उसका प्रदर्शन किया और बताया कि कैसे कुछ लोग इन डॉल्स को अस्पताल ले जाकर इलाज की मांग कर रहे हैं। वहीं कांग्रेस सदस्य तालिरिया पेट्रोन ने इस बहस को "समय की बर्बादी" बताया और कहा कि संसद को असली समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए।

कीमत और मकसद दोनों विवादित

रिबॉर्न डॉल्स की कीमत भी काफी अधिक होती है। यह 700 ब्राजीलियाई रियास (करीब ₹10,000) से शुरू होकर 10,000 रियास (करीब ₹1.5 लाख) तक जाती हैं। जहां कुछ लोग इनका इस्तेमाल भावनात्मक रिकवरी या पेरेंटिंग की प्रैक्टिस के लिए करते हैं, वहीं कुछ घटनाएं इनका "गलत इस्तेमाल" दिखा रही हैं। सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें एक महिला अपनी डॉल को अस्पताल ले जाकर डॉक्टर से इलाज की मांग कर रही थी। इस तरह की घटनाएं अब सांसदों और नीति-निर्माताओं को परेशान कर रही हैं।

कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि जो लोग इन डॉल्स को हद से ज्यादा गंभीरता से लेते हैं, उन्हें मानसिक स्वास्थ्य की मदद की आवश्यकता हो सकती है। वहीं कुछ का कहना है कि यह महज एक शौक है और इसमें गलत कुछ नहीं है।

समाज में बढ़ती असली और नकली के बीच की उलझन

रिबॉर्न डॉल्स पर चल रही यह बहस सिर्फ खिलौनों या कानून तक सीमित नहीं है। यह सवाल उठाता है कि तकनीक और हाइपर-रियलिज़्म के इस दौर में इंसान कब असल और नकली के बीच की पहचान खो बैठता है। जब डॉल्स को अस्पताल ले जाया जाने लगे, तो यह केवल एक मानसिक स्थिति नहीं बल्कि सामाजिक चेतना का विषय भी बन जाता है।

ब्राजील की यह बहस अब केवल उस देश तक सीमित नहीं रहेगी। जिस तरह से सोशल मीडिया इन डॉल्स को ग्लोबल बना रहा है, आने वाले समय में दुनिया के दूसरे देशों में भी इस पर सवाल उठ सकते हैं। क्या यह भावनात्मक सहारा है या मनोरोग का संकेत — यह बहस अभी जारी है।

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