जानें कौन है भद्रा ? जिसका होलिका दहन पर रहेगा साया, क्यों माना जाता है अशुभ

हर साल फाल्गुन माह की पूर्णिमा को होलिका दहन किया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, राक्षसराज हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया था कि वह भगवान विष्णु के भक्त अपने पुत्र प्रह्लाद को मार डाले और अपने बेटे को लेकर अग्नि में बैठ जाए, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गया और होलिका जलकर भस्म हो गई। तब से हर साल फाल्गुन माह की पूर्णिमा को होलिका दहन मनाया जाता है।
होलिका दहन को बुराई पर अच्छाई की जीत माना जाता है। होलाष्टक का समापन होलिका दहन के दिन होता है। होलिका दहन के अगले दिन पूरा देश रंगों से होली खेलता है। इस वर्ष होलिका दहन के दिन भद्रा का साया रहने वाला है। भद्रा काल में होलिका दहन करना शुभ नहीं माना जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि भद्रा कौन है? अगर आपको नहीं पता तो चलिए हम आपको विस्तार से बताते हैं।
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस वर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा 13 मार्च को सुबह 10:35 बजे शुरू हो रही है। वहीं, यह तिथि अगले दिन यानी 14 मार्च को दोपहर 12 बजकर 23 मिनट पर समाप्त होगी। ऐसे में होलिका दहन 13 मार्च को किया जाएगा। होलिका दहन के अगले दिन पूरा देश होली का त्यौहार मनाएगा।
हालांकि, 13 मार्च को होलिका दहन के दिन भद्रा काल रहेगा। भद्रा पुंछ 13 मार्च को शाम 6:57 बजे शुरू होगी। इसका समय रात्रि 8 बजे से 2 बजे तक होगा। इसके बाद भद्रा मुख का समय शुरू हो जाएगा। जो रात्रि 10:22 बजे तक रहेगा। इसके बाद यानि रात 11:26 बजे होलिका दहन का शुभ मुहूर्त शुरू हो जाएगा, जो रात 12:30 बजे तक रहेगा। इसका मतलब यह है कि इस साल होलिका दहन के लिए आपको 1 घंटे 4 मिनट तक का समय मिलेगा।
भद्रा कौन है? हिंदू धार्मिक शास्त्रों में बताया गया है कि भद्रा भगवान सूर्य की पुत्री और भगवान शनि की बहन हैं। धर्म शास्त्रों में बताया गया है कि भद्रा क्रोधी स्वभाव की होती हैं। भद्रा के क्रोधित स्वभाव के कारण भद्रा काल में कोई भी शुभ एवं मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि भद्रा काल में किए गए शुभ व मांगलिक कार्यों का शुभ फल नहीं मिलता है। ज्योतिषी और पंडित भद्रा काल के दौरान कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य न करने की सलाह देते हैं।