दुनिया के इस अनोखे मंदिर में पत्थर बजाकर हाजिरी लगाते हैं भक्त, नविवाहित जोड़े लगाते हैं फेरे

भारत में आस्था और परंपराओं का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। यहां हर मंदिर की अपनी एक अनोखी मान्यता और परंपरा होती है। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसकी परंपरा सुनकर आप हैरान रह जाएंगे। इस मंदिर में न तो घंटा बजाया जाता है, न पुजारी दर्शन करवाता है — यहां भक्त 'पत्थर बजाकर' अपनी हाजिरी लगाते हैं, और यही उनकी श्रद्धा की अभिव्यक्ति मानी जाती है।
कहां है ये रहस्यमयी मंदिर?
यह अद्भुत मंदिर मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित है। इसे स्थानीय लोग 'पत्थरू वाले बाबा का मंदिर' या 'धरमगढ़ के बाबा' के नाम से जानते हैं। यह स्थान न केवल धार्मिक रूप से पवित्र माना जाता है, बल्कि अपनी अनोखी परंपराओं और मान्यताओं के कारण देशभर के श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।
पत्थर बजाकर क्यों लगाई जाती है हाजिरी?
मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां आने वाले श्रद्धालु पत्थर को एक विशेष चट्टान पर मारते हैं, जिससे एक अलग तरह की आवाज निकलती है। यह आवाज भगवान तक उनकी ‘हाजिरी’ के रूप में मानी जाती है। भक्तों का मानना है कि जब भी वे किसी मन्नत के साथ यहां आते हैं और पत्थर बजाते हैं, तो भगवान उनकी बात सुनते हैं। और जब मन्नत पूरी हो जाती है, तो दोबारा आकर पत्थर बजाकर धन्यवाद अर्पित करते हैं।
नवविवाहित जोड़ियों की आस्था
यह मंदिर नवविवाहित जोड़ों के लिए भी बेहद खास माना जाता है। विवाह के तुरंत बाद यहां आकर फेरे लेना एक परंपरा बन चुकी है। स्थानीय मान्यता है कि जो जोड़े इस मंदिर में फेरे लेते हैं, उनका वैवाहिक जीवन सुखमय और अखंड बना रहता है। विवाह की तिथि तय होते ही कई परिवार पहले इस मंदिर में दर्शन और पूजा कराते हैं। शादी के बाद वर-वधू मंदिर आकर 'पत्थर की हाजिरी' भी लगाते हैं, जिससे उनका रिश्ता भगवान की निगरानी में आ जाता है।
मंदिर से जुड़े चमत्कार
स्थानीय लोगों के अनुसार, इस मंदिर में की गई सच्चे मन की प्रार्थनाएं जरूर पूरी होती हैं। गांव वालों का कहना है कि यहां वर्षों से कोई बड़ा संकट नहीं आया, और इसका श्रेय बाबा के आशीर्वाद को दिया जाता है। कई श्रद्धालु यह भी बताते हैं कि उन्होंने अपने जीवन की बड़ी-बड़ी परेशानियों से इस मंदिर में मन्नत मांगकर मुक्ति पाई।
मंदिर में न घंटा, न मूर्ति
सबसे बड़ी अनोखी बात यह है कि मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है, और न ही कोई पारंपरिक घंटा। बस एक चट्टाननुमा ढांचा है, जिसे लोग बाबा का प्रतीक मानते हैं और उसी पर पत्थर मारते हैं। यही श्रद्धा की अभिव्यक्ति है।