
इन दिनों देशभर में शादियों का मौसम जोरों पर है। शहरों से लेकर गांवों तक हर गली मोहल्ला बैंड-बाजे और बारातियों से गूंज रहा है। हर तरफ रौनक है, सजावट है, और खुशियों की चहचहाहट है। लेकिन इसी बीच एक ऐसी शादी की चर्चा हो रही है, जिसने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच लिया है। इस शादी में भी आम शादियों की तरह ढोल-नगाड़े बजे, महिलाएं गीतों पर थिरकीं, और पूरे इलाके में खुशी का माहौल छा गया, लेकिन इस शादी की खास बात था – इसका अनोखा दूल्हा-दुल्हन।
2. दूल्हा-दुल्हन नहीं थे इंसान
जी हां, यह शादी किसी इंसान की नहीं बल्कि एक मुर्गा और एक मुर्गी की थी। दूल्हा का नाम 'कालिया' और दुल्हन का नाम 'सुंदरी' रखा गया था। दोनों को पारंपरिक विवाह के रिवाजों के अनुसार सजाया गया और पूरे विधि-विधान के साथ विवाह संपन्न कराया गया। इस अनोखी शादी ने न केवल गांववालों को उत्साहित किया बल्कि पूरे इलाके में कौतूहल का माहौल बना दिया।
3. क्यों हुई मुर्गा-मुर्गी की शादी?
यह अनोखी शादी छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले के हीरानार गांव में हुई। लोगों ने इसे सामान्य मनोरंजन या मजाकिया आयोजन नहीं, बल्कि एक जागरूकता कार्यक्रम का रूप दिया। दरअसल, 'कालिया' और 'सुंदरी' कड़कनाथ प्रजाति के मुर्गा-मुर्गी हैं। यह प्रजाति देश में बेहद खास मानी जाती है।
कड़कनाथ मुर्गे की पहचान उसके काले रंग, उच्च प्रोटीन और कम फैट वाले मांस से होती है। इसके मांस की मांग देश ही नहीं, विदेशों तक है। साथ ही इसकी खेती आदिवासी इलाकों में आजीविका का बड़ा स्रोत भी बनती जा रही है। यही वजह रही कि इस शादी को एक अनूठे अंदाज में प्रस्तुत कर लोगों को इस प्रजाति के बारे में जानकारी दी गई।
4. पूरी रीति-रिवाज से हुई शादी
शादी के लिए बाकायदा कार्ड छपवाए गए और गांव के हर घर में निमंत्रण दिया गया। विवाह मंडप सजाया गया, जिसमें रंग-बिरंगे कपड़े, फूलों की सजावट और संगीत का खास इंतजाम किया गया। महिलाएं पारंपरिक गीतों पर थिरकीं और लोग बारात में नाचे।
'कालिया' और 'सुंदरी' को खास तौर पर लाल चुनरी और पारंपरिक वस्त्रों से सजाया गया। उन्हें वर-वधू के रूप में सम्मान दिया गया और सारे रस्मो-रिवाज पूरे कर शादी सम्पन्न कराई गई। यह आयोजन बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक के लिए एक अद्भुत अनुभव रहा।
5. ग्रामीणों की पहल बनी मिसाल
हीरानार के ग्रामीणों ने इस आयोजन के ज़रिए एक गहरा संदेश देने की कोशिश की। उनका मानना है कि कड़कनाथ प्रजाति का पालन न केवल आर्थिक रूप से फायदेमंद है, बल्कि यह स्वदेशी नस्लों को बढ़ावा देने का भी एक तरीका है।
इसके साथ ही यह आयोजन ग्रामीण समुदाय में खुशी और एकजुटता का प्रतीक भी बन गया। इसमें न केवल पशुपालन की जागरूकता फैलाई गई बल्कि स्थानीय संस्कृति और परंपराओं को भी जीवित किया गया।
6. सोशल मीडिया पर वायरल हुआ आयोजन
शादी की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर भी तेजी से वायरल हुए हैं। लोग इस अनूठे आयोजन की सराहना कर रहे हैं और कई अन्य गांवों में भी इस तरह की जागरूकता अभियान शुरू करने की बात की जा रही है।