
बिहार के सहरसा जिले से एक चौंकाने वाली और दिल छू लेने वाली कहानी सामने आई है। यहां रहने वाली 21 वर्षीय युवती गीता को एक ऐसी बीमारी है, जिसे देखकर कोई भी हैरान रह जाए। गीता जब रोती है, तो उसकी आंखों से आंसू नहीं, बल्कि खून बहता है। इस रहस्यमयी स्थिति से परेशान होकर उसके पति ने उसे 'चुड़ैल' करार दे दिया और साथ छोड़ दिया।
खून के आंसू बहाना बना अभिशाप
गीता की कहानी मीडिया और सोशल मीडिया पर वायरल हो चुकी है। डेली मेल में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, गीता को एक दुर्लभ मेडिकल कंडीशन है जिसका नाम है हीमैटोहाइड्रोसिस (Hematohidrosis)। इस बीमारी में इंसान के पसीने या आंसुओं के साथ रक्त भी बाहर आने लगता है। यह स्थिति इतनी दुर्लभ है कि एक करोड़ में से एक व्यक्ति को ही होती है।
गीता बताती हैं कि जब उनके पति ने पहली बार खून के आंसू देखे, तो वह डर गया और उसे "अलौकिक" या "भूतिया" मान लिया। उसने बिना मेडिकल जांच के गीता को छोड़ दिया, जिससे गीता पर मानसिक और सामाजिक दबाव और बढ़ गया।
हीमैटोहाइड्रोसिस क्या है?
इंडियन जर्नल ऑफ हीमैटोलॉजी में प्रकाशित एक शोध के मुताबिक, हीमैटोहाइड्रोसिस एक ऐसी स्थिति है जिसमें मरीज के तनाव या भावनात्मक दबाव के कारण उसके पसीने की ग्रंथियों के पास की रक्त वाहिकाएं (ब्लड वेसल्स) पतली हो जाती हैं या फट जाती हैं। इस स्थिति में रक्त पसीने की ग्रंथियों में प्रवेश कर जाता है और फिर पसीने के साथ त्वचा की सतह पर खून के रूप में रिसने लगता है।
इस प्रक्रिया में आमतौर पर दर्द नहीं होता, लेकिन मानसिक रूप से यह स्थिति व्यक्ति को अत्यधिक तनाव और अकेलेपन की ओर ले जाती है, जैसा कि गीता के मामले में हुआ।
चिकित्सा रिपोर्ट्स और विशेषज्ञों की राय
सहरसा के सरदार हॉस्पिटल के डॉ. विनायक सिंह ने गीता की जांच की और पाया कि उसके खून के थक्के जमने की प्रक्रिया (Coagulation Profile) सामान्य है। खून के रिसाव के बावजूद गीता को दर्द नहीं होता, लेकिन यह अनियमित रक्तस्राव आंखों, त्वचा और शरीर के अन्य हिस्सों से भी होने लगा है।
हालांकि, गीता की इस दुर्लभ बीमारी से अधिकतर डॉक्टर अनभिज्ञ हैं, क्योंकि भारत में अब तक ऐसे बहुत कम मामले ही दर्ज हुए हैं। इलाज के लिए विशेषज्ञों की आवश्यकता है, लेकिन गीता का परिवार आर्थिक रूप से बेहद कमजोर है।
आर्थिक और सामाजिक संघर्ष
गीता के पिता मजदूरी करते हैं और किसी तरह परिवार का गुजारा करते हैं। उन्होंने बताया कि गीता की हालत दिन-प्रतिदिन बिगड़ती जा रही है और इलाज के लिए उनके पास पैसे नहीं हैं। इस बीच, गांव और समाज में लोग गीता को अंधविश्वास और डर की नजर से देखने लगे हैं, जिससे उसका सामाजिक बहिष्कार भी हो रहा है।
इससे पहले भी सामने आ चुके हैं ऐसे मामले
गीता का मामला भारत में अपनी तरह का पहला नहीं है। इससे पहले 2009 में दिल्ली की प्रीति गुप्ता नाम की लड़की को भी इसी तरह की समस्या हुई थी, जिसमें उसकी त्वचा से खून रिसता था। यह मामला भी मेडिकल साइंस के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया था।
निष्कर्ष: चिकित्सा, जागरूकता और सहानुभूति की जरूरत
गीता की कहानी एक तरफ जहां दुर्लभ मेडिकल कंडीशन की ओर ध्यान आकर्षित करती है, वहीं यह समाज में व्याप्त अंधविश्वास और असंवेदनशीलता को भी उजागर करती है। ऐसी बीमारियों के प्रति आम जनता को जागरूक करने और भावनात्मक समर्थन देने की जरूरत है।
सरकार और चिकित्सा संस्थानों को चाहिए कि वे ऐसे दुर्लभ रोगों के इलाज के लिए विशेष योजनाएं और आर्थिक सहायता उपलब्ध कराएं। वहीं समाज को भी समझना होगा कि हर अजीब स्थिति किसी चमत्कार या भय की नहीं, बल्कि इलाज और सहानुभूति की मांग करती है।
गीता आज मदद और समझ की हकदार है, न कि तिरस्कार की।