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9 मंजिला विजय स्तम्भ की हर मंजिल में छिपे है खौफनाक राज़ ? वीडियो में जानकर कांप जाएगा रोम-रोम 

9 मंजिला विजय स्तम्भ की हर मंजिल में छिपे है खौफनाक राज़ ? वीडियो में जानकर कांप जाएगा रोम-रोम 

राजस्थान के चित्तौड़गढ़ किले में स्थित विजय स्तम्भ (Victory Tower) को देखना किसी रोमांच से कम नहीं। 37 मीटर ऊँचा यह विशाल स्मारक न सिर्फ स्थापत्य का अद्भुत नमूना है, बल्कि अपने अंदर छुपाए बैठा है ऐसे रहस्य और कहानियाँ, जिन्हें सुनकर कोई भी सिहर उठे। लोग कहते हैं, “हर मंजिल पर कोई न कोई ऐसा सच दबा है जो दिल दहला देता है।”तो आइए जानते हैं विजय स्तम्भ की कहानी, इसकी स्थापत्य कला, और उन राज़ों के बारे में जो सदियों से इसके पत्थरों में कैद हैं।


इतिहास की ऊँचाई से फूटा विजय का स्वर
विजय स्तम्भ का निर्माण 1442 से 1449 ई. के बीच मेवाड़ के राजा राणा कुम्भा ने करवाया था। यह स्तम्भ मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी पर जीत की याद में बनवाया गया था। यह केवल एक स्मारक नहीं, बल्कि एक संदेश था – “हिंदवी स्वाभिमान” का, जो आज भी भारत की धरोहरों में एक गौरवपूर्ण स्थान रखता है।

शिल्प की अद्भुत मिसाल
यह नौ मंज़िला स्तम्भ पूरी तरह से सैंडस्टोन और सफेद संगमरमर से बना है। इसकी हर मंजिल के अंदर छोटी-छोटी खिड़कियां, सुंदर मेहराबें और जटिल नक्काशियां हैं। स्तम्भ की दीवारों पर हिंदू देवी-देवताओं, रामायण-महाभारत के दृश्य, और ऐतिहासिक युद्धों की झलक मिलती है।करीब 157 संकरी सीढ़ियों से होकर इसकी सबसे ऊपरी मंजिल पर पहुँचा जा सकता है, जहाँ से चित्तौड़ का भव्य नज़ारा दिखाई देता है। लेकिन ये चढ़ाई जितनी रोमांचक है, उतनी ही डरावनी कहानियों से भी जुड़ी हुई है।

हर मंजिल से जुड़ी डरावनी कथाएँ और रहस्य
1. पहली मंज़िल – युद्ध का शोर अब भी गूंजता है?

स्थानीय लोग मानते हैं कि कभी-कभी इस मंजिल पर तलवारों की टंकार और युद्ध के शोर सुनाई देते हैं। कुछ लोग कहते हैं कि यह उस समय की आत्माएं हैं जो आज भी अपने वीरगति की कहानी दोहराती हैं।

2. दूसरी मंज़िल – छिपा है कोई खजाना?
मान्यता है कि यहां कभी राजघराने का एक रहस्यमयी खजाना रखा गया था। कहते हैं, जो भी खजाने की तलाश में आया, या तो रास्ता भटक गया या कभी लौटकर नहीं आया।

3. तीसरी और चौथी मंज़िल – आत्महत्या की कहानियाँ
ब्रिटिश काल में कुछ अधिकारियों ने इन मंजिलों पर अजीब घटनाओं की रिपोर्ट दी थी। कुछ तो यहां से कूदकर जान भी दे चुके हैं। कोई स्पष्ट कारण आज तक सामने नहीं आया।

4. पांचवीं मंज़िल – मंदिर की मूर्तियों की आंखें हिलती हैं?
यहां लगी देवी-देवताओं की मूर्तियों की आंखों के हिलने की कहानियाँ प्रसिद्ध हैं। कई श्रद्धालु बताते हैं कि उन्होंने मूर्तियों को उनकी ओर देखते महसूस किया।

5. छठी से आठवीं मंज़िल – समय का जाल
यहां कई बार लोग रास्ता भूल जाते हैं। गाइड्स बताते हैं कि GPS तक काम करना बंद कर देता है। एक तरह का चुम्बकीय प्रभाव महसूस किया जाता है।

6. नौवीं मंज़िल – आत्मिक कंपन और रहस्य का चरम
कई साधक कहते हैं कि यहां खड़े होते ही एक अजीब तरह की ऊर्जा शरीर में दौड़ जाती है। कुछ लोग डर के मारे ज्यादा देर वहां टिक नहीं पाते।

क्यों बने ये रहस्य? इतिहास या मान्यता?
कुछ इतिहासकार इन बातों को किवदंतियों और मनोवैज्ञानिक प्रभाव मानते हैं। उनका कहना है कि सैकड़ों साल पुराने बंद स्थानों में घुटन, एकांत और संकरी सीढ़ियों से बना डर लोगों के मन में भूतिया सोच पैदा करता है।वहीं कुछ विशेषज्ञ इसे स्थापत्य ऊर्जा का चमत्कार बताते हैं – जैसे मंदिरों में विशेष तरंगें होती हैं, वैसे ही यह जगह भी वास्तु और ध्वनि विज्ञान का अद्भुत उदाहरण हो सकती है।

विजय स्तम्भ आज के पर्यटकों के लिए क्या है?
आज विजय स्तम्भ राजस्थान की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान का प्रतीक है। दुनियाभर से पर्यटक इसे देखने आते हैं। यहां सूर्योदय और सूर्यास्त का दृश्य बेहद खूबसूरत होता है।परंतु प्रशासन ने सुरक्षा कारणों से इसकी ऊपरी मंजिलों पर जाने की अनुमति सीमित कर दी है। कई हिस्सों को आमजन के लिए बंद किया जा चुका है, क्योंकि रहस्य और डर के किस्सों ने लोगों को कई बार जोखिम में डाला है।

निष्कर्ष: राज़ और रचना का संगम
विजय स्तम्भ केवल एक मीनार नहीं, यह भारतीय इतिहास का ऐसा पन्ना है जिसमें वीरता, श्रद्धा, कला और रहस्य एक साथ समाहित हैं। हर मंजिल पर बसी कहानियाँ चाहे तथ्य हों या कल्पना, ये इस बात का संकेत जरूर देती हैं कि हमारे पुरखों ने सिर्फ पत्थर नहीं तराशे – उन्होंने जज़्बात, रीतियाँ और समय की गहराई को भी इनमें कैद कर दिया।

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