राजस्थान के इस मंदिर में चढ़े तेल को लगाने से दूर हो जाता है सालों पुराना चर्म रोग भी, 150 साल पुरानी है आस्था

राजस्थान अपने सुंदर मंदिरों, ऐतिहासिक इमारतों और आकर्षक पर्यटन स्थलों के लिए जाना जाता है। राजस्थान का हर मंदिर अपनी अलग विशेषता के साथ लोगों की आस्था से जुड़ा हुआ है। इसी कड़ी में मेवाड़ के प्रसिद्ध शनि महाराज आली मंदिर में भी श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है। लगभग 150 साल पुराने इस मंदिर के बारे में कई कहानियाँ प्रचलित हैं। चित्तौड़गढ़ जिले के कपासन क्षेत्र में स्थित शनि महाराज मंदिर मेवाड़, मारवाड़, मालवा आदि क्षेत्रों में प्रसिद्धि पाकर प्रमुख तीर्थ स्थल बन गया है। प्रत्येक शनिवार और अमावस्या को दूर-दूर से श्रद्धालु शनिदेव के दर्शन के लिए शनि महाराज आली पहुंचते हैं।
इस धार्मिक स्थल के बारे में किंवदंती है कि मेवाड़ के महाराणा उदय सिंह द्वितीय शनिदेव की मूर्ति को अपने हाथी की पीठ पर रखकर उदयपुर की ओर ले जा रहे थे। उक्त स्थान से हाथी की मूर्ति गायब हो गई थी तथा काफी देर तक खोजबीन के बाद भी नहीं मिली। कई वर्षों के बाद इस मूर्ति का कुछ भाग गांव उचनार खुर्द निवासी जोतमल जाट के खेत में बाहर दिखाई दिया, जहां उसकी पूजा, तेल सेवा, प्रसाद और बाल पूजन शुरू किया गया। उस समय यह स्थान काला भैरू के नाम से जाना जाता था। पिछली सदी में कुछ लोगों ने मूर्ति के जमीन में धंसे हिस्से को बाहर निकालने की कोशिश की थी, लेकिन वे असफल रहे। उसी समय अचानक वहां एक संत महात्मा आ पहुंचे, उनके साथ के लोगों ने मूर्ति को उठाकर ऊपर खींच लिया, उसका अधिकांश भाग बाहर आ गया तथा कुछ अंदर ही रह गया। इसके तुरंत बाद वह साधु महात्मा वहां से कुछ दूर जाकर अदृश्य हो गए। भक्तों ने इसे मूर्ति का चमत्कार माना। तब से यह स्थान शनि महाराज के नाम से पूरे विश्व में प्रसिद्ध हो गया।
कहा जाता है कि मंदिर निर्माण के दौरान जब नींव खोदी जा रही थी तो तेल नींव में चला गया। यहां तीन बड़ी तेल टंकियां बनाई गई हैं जिनमें भगवान शनि को चढ़ाया जाने वाला तेल संग्रहित किया जाता है। इस तेल का उपयोग त्वचा रोगों के लिए किया जाता है। मेवाड़ के प्रसिद्ध शनि महाराज आली मंदिर में बाल भोग से पहले प्रसाद पर चींटियां नहीं दिखतीं। हर साल यहां तीन दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें भाग लेने के लिए दूर-दूर से बड़ी संख्या में लोग यहां आते हैं। मुख्यमंत्री ने हाल ही में तेलंगाना दौरे के दौरान यह भी कहा था कि प्रवासी भाई-बहनों को तीर्थ स्थलों के दर्शन के लिए राजस्थान में प्रोटोकॉल मिलेगा। राजस्थान सरकार ने आस्था केन्द्रों को विकसित करने के लिए 300 करोड़ रुपए का बजट पारित किया है।