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भारत के इस मंदिर को समुद्री यात्री कहते थे 'ब्लैक पगोडा', जाने क्या है इसके पीछे का रहस्य

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भारत प्राचीन सभ्यता, संस्कृति और अद्भुत वास्तुकला का धनी देश है। यहां कई ऐसे मंदिर और ऐतिहासिक स्थल हैं जो न सिर्फ धार्मिक आस्था का केंद्र हैं, बल्कि अपने निर्माण और संरचना के कारण वैज्ञानिकों और इतिहासकारों के लिए भी रहस्य बने हुए हैं। ऐसा ही एक आश्चर्यजनक उदाहरण है महाराष्ट्र के एलोरा की गुफाओं में स्थित कैलाश मंदिर, जिसे विश्व का सबसे अनोखा मंदिर माना जाता है।

एक चट्टान से तराशा गया चमत्कार

एलोरा की गुफाओं का समूह यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल है, और उनमें सबसे प्रमुख है गुफा संख्या 16 में स्थित कैलाश मंदिर। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसे उनके दिव्य निवास पर्वतराज कैलाश का प्रतीक माना जाता है।

कैलाश मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसे ऊपर से नीचे की ओर तराशा गया है। यह तकनीक आज भी दुनिया भर के वास्तु विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों को चकित करती है। सामान्यत: किसी भी इमारत का निर्माण नीचे से ऊपर की ओर किया जाता है, लेकिन कैलाश मंदिर को एक विशालकाय पहाड़ी चट्टान को काटकर ऊपर से नीचे तक आकार दिया गया है। यह कार्य अत्यंत सूक्ष्मता और गणनात्मक कौशल से किया गया, जिसमें किसी भी प्रकार की त्रुटि की कोई गुंजाइश नहीं थी।

निर्माण की रोचक कहानी

ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 8वीं सदी में राष्ट्रकूट वंश के राजा कृष्णा प्रथम के शासनकाल में हुआ था। इसे बनाने में लगभग 18 वर्षों का समय लगा और हजारों कारीगरों ने मिलकर इस मंदिर को आकार दिया। यह मंदिर करीब 200,000 टन चट्टान को काटकर बनाया गया है, जो एक असाधारण उपलब्धि है, खासकर उस समय जब न तो आधुनिक औज़ार थे और न ही कोई मशीनें।

अद्भुत शिल्पकला

कैलाश मंदिर न सिर्फ अपनी बनावट के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसकी नक्काशी और मूर्तिकला भी अद्भुत है। मंदिर की दीवारों और स्तंभों पर रामायण, महाभारत, और अन्य पुराणों से जुड़ी घटनाओं की चित्रणात्मक मूर्तियाँ उकेरी गई हैं। साथ ही, इसमें भगवान शिव, पार्वती, गणेश और अन्य देवी-देवताओं की भी मनोहारी प्रतिमाएं मौजूद हैं।

रहस्य और मान्यताएं

कैलाश मंदिर को लेकर अनेक रहस्य और जनश्रुतियाँ प्रचलित हैं। कुछ लोगों का मानना है कि यह मंदिर मानवीय शक्ति से परे है और इसे दिव्य शक्तियों या एलियंस की सहायता से बनाया गया होगा। हालांकि कोई ठोस प्रमाण नहीं है, फिर भी इसकी संरचना और निर्माण तकनीक को देखकर यह विश्वास करना कठिन नहीं है कि यह मानव इतिहास की सबसे बड़ी स्थापत्य उपलब्धियों में से एक है।

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