Ajab-Gajab: भारत का अनोखा मंदिर जहां होती है महाभारत के खलनायक दुर्योधन की पूजा, जानिए इसके पीछे की चौंकाने वाली कहानी
दुर्योधन महाभारत के प्रमुख पात्रों में से एक था। वह कौरवों का ज्येष्ठ पुत्र और राजा धृतराष्ट्र व रानी गांधारी का पुत्र था। दुर्योधन को अक्सर महाभारत का खलनायक माना जाता है क्योंकि वह पांडवों से घृणा करता था और उन्हें अपमानित करने के कई प्रयास करता था। वह सत्ता का भूखा था और सिंहासन पर अपना अधिकार मानता था। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में एक ऐसा मंदिर भी है जो केवल दुर्योधन को समर्पित है? यह मंदिर केरल राज्य के कोल्लम जिले में एक पहाड़ी पर स्थित है और अपने आप में बिल्कुल अनोखा है। आइए जानते हैं इस मंदिर के बारे में।
मंदिर की कहानी
एक लोककथा के अनुसार, जब पांडव वनवास में थे, तब दुर्योधन उन्हें खोजते हुए केरल के जंगलों में आया। उस दौरान वह मलनाडा गाँव पहुँचा, जहाँ एक आदिवासी सरदार ने उसकी सेवा की, उसे भोजन और विश्राम दिया। इस प्रेम और सेवा से प्रसन्न होकर दुर्योधन ने उस गाँव को भूमि दान में दे दी। बाद में, उनकी स्मृति में एक मंदिर का निर्माण किया गया, जिसे आज पेरुविरुथी मालनाडा दुर्योधन मंदिर या दुर्योधन मालनाडा मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस गाँव के लोग दुर्योधन को एक दयालु और आदरणीय व्यक्ति मानते हैं। यहाँ के लोग उन्हें प्यार से "अप्पूपा" यानी "दादा" कहते हैं और उनकी पूजा करते हैं।
कोई मूर्ति नहीं, सिर्फ़ एक चबूतरा है
यह मंदिर इसलिए भी अनोखा है क्योंकि इसमें कोई मूर्ति नहीं है। यहाँ एक पत्थर का चबूतरा है, जिसे मंडपम या अलथारा कहा जाता है। जहाँ भक्त ध्यान और प्रार्थना करते हैं।
दुर्योधन ही नहीं, कौरवों की भी पूजा होती है
इस मंदिर के आसपास लगभग 50 किलोमीटर के दायरे में कई अन्य मंदिर भी हैं जहाँ दुर्योधन के 99 भाइयों, उनके प्रिय मित्र कर्ण, मामा शकुनि और बहन दुशाला की भी पूजा की जाती है। यहाँ के लोग, जिन्हें "कुरुव" कहा जाता है, खुद को कौरवों का वंशज मानते हैं और उन्हें अपने पूर्वजों की तरह सम्मान देते हैं।
यहाँ के लोगों का मानना है कि दुर्योधन शुक्रवार को गाँव से निकला था और कहा था कि वह अगले शुक्रवार को वापस आएगा। जब वह वापस नहीं लौटा, तो गाँव वालों ने मान लिया कि उसकी आत्मा लौट आई है और उसका अंतिम संस्कार कर दिया। इसलिए हर शुक्रवार को यहाँ एक विशेष पूजा होती है और लोग बड़ी संख्या में दुर्योधन को श्रद्धांजलि देने आते हैं। इस छोटे से गाँव में दुर्योधन को बुराई का नहीं, बल्कि सम्मान और गौरव का प्रतीक माना जाता है।

