आखिर इस मस्जिद का नाम क्यों पड़ा 'अढ़ाई दिन का झोंपड़ा'? 800 साल पुराना है इतिहास
राजस्थान के अजमेर शहर में स्थित ‘अढ़ाई दिन का झोंपड़ा’ सिर्फ एक पुरानी इमारत नहीं, बल्कि इतिहास, सत्ता संघर्ष और स्थापत्य कला का जीवंत उदाहरण है। लेकिन इसका नाम इतना अनोखा क्यों है? क्या वाकई यह सिर्फ ढाई दिन में बना था? या फिर इसके पीछे छिपा है कोई गहरा ऐतिहासिक रहस्य? इस मस्जिद की दीवारें 800 साल से ज्यादा पुरानी हैं, लेकिन जितना पुराना इसका वजूद है, उतना ही रहस्यमयी है इसका नाम।
एक मंदिर से मस्जिद तक का सफर
दरअसल, ‘अढ़ाई दिन का झोंपड़ा’ शुरुआत में एक संस्कृत स्कूल और फिर एक विशाल जैन-हिंदू मंदिर था। यह इमारत 12वीं सदी के आसपास बनी थी। लेकिन जब 1192 में मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को हराया, तो उसने अपने सेनापति और अजमेर के तत्कालीन शासक कुतुबुद्दीन ऐबक को इस स्थान पर एक मस्जिद बनाने का आदेश दिया।
कहते हैं कि कुतुबुद्दीन ऐबक ने मौजूदा मंदिर को तोड़कर उसी सामग्री से मस्जिद बनवाई, और सिर्फ ढाई दिन में इसे तैयार करवाया गया। यही कारण है कि इसे 'अढ़ाई दिन का झोंपड़ा' कहा जाने लगा। हालांकि, वास्तुशिल्प विशेषज्ञों और इतिहासकारों का मानना है कि निर्माण कार्य असल में कई महीनों तक चला होगा, लेकिन इसमें शुरुआती ढांचा केवल ढाई दिन में खड़ा किया गया — शायद एक प्रतीकात्मक शुरुआत के रूप में।
नाम सिर्फ समय नहीं, सत्ता का भी प्रतीक
‘अढ़ाई दिन’ का अर्थ केवल समय की मियाद नहीं है — यह विजेता के ‘प्रदर्शन’ की कहानी भी कहता है। मुगल काल में ऐसी कई घटनाएं दर्ज हैं, जहां विजेता यह दिखाना चाहते थे कि वे कितनी तेज़ी से परिवर्तन ला सकते हैं — चाहे वह धर्म हो, शासन हो या वास्तु। इसलिए ‘अढ़ाई दिन’ का जिक्र उस ‘रफ्तार’ और ‘दबदबे’ का प्रतीक बन गया।
वास्तुकला जो आज भी चौंका देती है
आज भी जब कोई इस मस्जिद को देखता है, तो उसे हिंदू और जैन मंदिरों की वास्तुकला की झलक साफ नजर आती है। स्तंभों पर खुदी मूर्तियां, मेहराबों की बनावट और पत्थरों की बारीक नक्काशी — यह सब उस दौर की स्थापत्य कला का बेहतरीन उदाहरण हैं।
हालांकि, मस्जिद में अब नमाज़ नहीं पढ़ी जाती, लेकिन यह स्मारक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संरक्षित है और अजमेर के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है।
तो आखिर नाम क्यों पड़ा ‘अढ़ाई दिन का झोंपड़ा’?
यह नाम उस तेज़ी से जुड़े गौरव, सत्ता के प्रदर्शन और प्रतीकात्मक निर्माण का हिस्सा बन चुका है। यह नाम आज भी इतिहास से सवाल करता है और आने-जाने वालों को 800 साल पुराने समय की कहानियाँ सुनाता है।
‘अढ़ाई दिन का झोंपड़ा’ एक इमारत नहीं, भारत की सांस्कृतिक परतों का वह पन्ना है, जहां धर्म, राजनीति और स्थापत्य एक साथ मिलते हैं।

