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आखिर क्यों तांत्रिकों को अति प्रिय है यह माता का मंदिर, ऐसी है यहां की मान्यता, वीडियो देख आंखों पर नहीं होगा यकीन

भारत के पूर्वोत्तर राज्य में स्थित मां त्रिपुर सुंदरी का मंदिर काफी प्रसिद्ध है और यह 51 शक्तिपीठों में से एक है। त्रिपुरा राज्य का नाम माँ त्रिपुर सुंदरी के नाम पर रखा गया है। माता को त्रिपुर सुन्दरी इसलिए कहा जाता है क्योंकि तीनों लोकों में उनसे अधिक सुन्दर कोई नहीं है। कामाख्या मंदिर के साथ-साथ त्रिपुर सुंदरी मंदिर भी तंत्र साधना के लिए प्रसिद्ध है। यहां त्रिपुर सुंदरी मंदिर को स्थानीय लोग माताबाड़ी भी कहते हैं। इस स्थान का महत्व और विशिष्टता मंदिर की पुरानी पांडुलिपियों में भी दर्ज है। नवरात्रि के अवसर पर यहां विशेष पूजा की जाती है। आइए अमिताभ भूषण से जानते हैं इस शक्तिपीठ के बारे में...

एक बार राजा दक्ष ने एक यज्ञ किया जिसमें उन्होंने अपने दामाद भगवान शिव और पुत्री सती को आमंत्रित नहीं किया। माता सती यज्ञ में जाना चाहती थीं लेकिन महादेव जाने से मना कर रहे थे। इसके बाद भी सती यज्ञ में गईं। सती के आने पर दक्ष ने अपनी माता का अनादर किया तथा उनके सामने महादेव के बारे में अपमानजनक बातें कहीं। सती अपने पति के बारे में कही गई बातें सहन नहीं कर सकीं और उन्होंने यज्ञ की अग्नि में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। यहीं से सती के शक्ति बनने की कहानी शुरू हुई। यह समाचार सुनकर महादेव ने वीरभद्र को भेजा, जिसने दक्ष का सिर काट दिया। यज्ञ विध्वंस के बाद महादेव सती के मृत शरीर को लेकर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाने लगे। तब भगवान विष्णु ने महादेव का भ्रम दूर करने के लिए सुदर्शन चक्र से सती के कई टुकड़े कर दिए। जिस स्थान पर सती के अंग गिरे वह स्थान शक्तिपीठ कहलाया और महादेव भी भैरव रूप में उनके साथ विराजमान हुए।

भगवती त्रिपुर सुंदरी को दस महाविद्याओं में से एक सौम्य कोटि की माता माना जाता है। माता का यह मंदिर त्रिपुरा राज्य के उदयपुर की पहाड़ी पर स्थित है। यह मंदिर भारत के 51 महापीठों में से एक है और यहां देवी का दाहिना पैर गिरा था। यहां मां भगवती को त्रिपुर सुंदरी तथा उनके साथ विराजमान भैरव को त्रिपुरेश के नाम से जाना जाता है। माता के इस पीठ को कुरबा पीठ भी कहा जाता है। यह मंदिर तंत्र साधना के लिए बहुत प्रसिद्ध है और मंदिर में तांत्रिकों का मेला लगा रहता है। यहां तंत्र मंत्र साधना करने वाले साधक अपनी साधना पूर्ण करने के लिए देवी की पूजा करने आते हैं।

माता के इस मंदिर का निर्माण महाराजा धन माणिक्य ने 15वीं शताब्दी में करवाया था। लोक मान्यताओं के अनुसार राजा ने भगवान विष्णु के लिए इस मंदिर का निर्माण करवाया था लेकिन महामाया ने राजा को स्वप्न में मंदिर निर्माण का आदेश दिया और राजा से कहा कि वे चटगांव से उनकी मूर्ति इस स्थान पर स्थापित करें, इसके बाद राजा ने माता त्रिपुर सुंदरी की प्राण प्रतिष्ठा की। यह मंदिर पूर्वोत्तर राज्य के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। प्रतिदिन हजारों भक्त देवी के दर्शन के लिए मंदिर में आते हैं और नवरात्रि के अवसर पर उनकी संख्या बढ़ जाती है। यहां जो भी भक्त सच्चे मन से मां से प्रार्थना करता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है।

माता त्रिपुरसुंदरी की मूर्ति ढलवां पत्थर से बनी है। मंदिर की पांडुलिपि में दर्ज जानकारी के अनुसार देवी की मूर्ति सिलहट (तत्कालीन जैंतिया राज और अब बांग्लादेश) में गढ़ी गई थी। जयन्तीय महाराज धन माणिक्य के राज्य क्षेत्र में मेघालय, त्रिपुरा और बांग्लादेश के सिलहट जयन्तीपुर आदि क्षेत्र शामिल थे। वर्ष 1501 में निर्मित इस मंदिर का निर्माण बंगाली स्थापत्य शैली एक रत्न में किया गया था। जिस पहाड़ी पर यह मंदिर स्थित है उसका आकार कछुए की पीठ जैसा है। इसी कारण इस स्थान को 'कूर्म पीठ' भी कहा जाता है। मंदिर के गर्भगृह में काले ग्रेनाइट पत्थर से बनी दो मूर्तियाँ स्थापित हैं। लगभग पांच फीट ऊंची मुख्य प्रतिमा माता त्रिपुर सुंदरी की है, जबकि दो फीट ऊंची एक अन्य प्रतिमा, जिसे 'छोटो मां' कहा जाता है, माता भुवनेश्वरी की है।

देवी ललिता को भगवती त्रिपुर सुन्दरी कहा जाता है। मां ललिता माहेश्वरी शक्ति की देवी हैं और उनकी तीन आंखें हैं। माँ के चार हाथ पाश, अंकुश, धनुष और बाण से सुशोभित हैं। भगवती त्रिपुर सुन्दरी सोलह (पोदश) कलाओं से परिपूर्ण हैं, इसलिए इन्हें षोडशी भी कहा जाता है। इसके साथ ही भगवती त्रिपुर सुंदरी को राजराजेश्वरी, ललिता गौरी, ललिताम्बिका, ललिता, लीलामती, लीलावती आदि नामों से भी जाना जाता है। यह देवी पार्वती का तांत्रिक रूप माना जाता है। देवी भागवत में बताया गया है कि मां भगवती सदैव वरदान देने के लिए तत्पर रहती हैं और मां भगवती की मूर्ति सौम्य है तथा उनका हृदय दया से भरा हुआ है। संसार के सभी तंत्र-मंत्र इनकी आराधना से ही सिद्ध होते हैं। प्रसन्न होने पर वह भक्तों को अमूल्य निधियां प्रदान करती हैं।

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