आखिर क्यों 56 भोग के बाद भगवान जगन्नाथ को लगाया जाता है नीम के चूर्ण का भोग? जानिए इसके धार्मिक और आयुर्वेदिक रहस्य

भारत में भगवान जगन्नाथ की पूजा एक अनूठी आस्था और परंपरा का प्रतीक है। हर रथ यात्रा, नबकल्प, स्नान यात्रा और महाभोग के समय उनके भोग में विशेष महत्व होता है। लेकिन एक बात जो श्रद्धालुओं को अक्सर हैरान करती है – भगवान जगन्नाथ को “कड़वे नीम के चूर्ण” (Neem Powder) का भोग क्यों लगाया जाता है? आखिर कोई कड़वी चीज भगवान को क्यों समर्पित की जाती है? इसके पीछे गहरे धार्मिक, आध्यात्मिक और आयुर्वेदिक कारण छिपे हैं।
धार्मिक मान्यता: नीम – मां हरिद्रा की कृपा
भगवान जगन्नाथ को विष्णु का रूप माना गया है और उनसे जुड़ी परंपराएं अक्सर श्रीमद्भागवत, स्कंद पुराण, और विशेष रूप से ब्रह्मपुराण से जुड़ी होती हैं। जब भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की देह परिवर्तन (नबकल्प) की प्रक्रिया होती है, तब उनकी शरीरसत्ता को विभिन्न औषधियों से पुनः जाग्रत किया जाता है। इस प्रक्रिया को कहा जाता है – "नव यौवनम्", यानी नए शरीर में प्रवेश। नीम का चूर्ण यहाँ पवित्र औषधि के रूप में कार्य करता है। यह भगवान को बाह्य रूप से भले कड़वा लगे, लेकिन आंतरिक रूप से विषहर, रोगनाशक और शुद्धिकारी होता है।
तांत्रिक और आध्यात्मिक कारण
तंत्र शास्त्रों में नीम को दोष नाशक और नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करने वाला माना गया है। जब भगवान जगन्नाथ को नीम का भोग लगाया जाता है, तो यह न केवल उन्हें शुद्धता प्रदान करता है, बल्कि संपूर्ण ब्रह्मांड से बुराई और रोग का नाश करने की प्रतीकात्मक क्रिया भी है।
नीम के चूर्ण को भोग के रूप में अर्पित करने की परंपरा विशेष रूप से तब देखी जाती है जब:
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भगवान बीमार पड़ते हैं (अनवसर अवधि)
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जब उनकी देह परिवर्तन की प्रक्रिया होती है
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या फिर जब कोई विशेष उपचारात्मक अनुष्ठान किया जाता है
आयुर्वेदिक रहस्य: नीम एक जीवित अमृत
नीम को आयुर्वेद में “सरव रोग निवारणी” कहा गया है। यह रक्त को शुद्ध करता है, पाचन सुधारता है, चर्म रोगों को मिटाता है और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। भगवान को नीम का भोग लगाने का आशय यह भी है कि –“जिस अन्न को, जिस तत्व को भगवान स्वीकार करते हैं, वही उनके भक्तों के लिए सबसे उत्तम और पवित्र बन जाता है।” इसलिए नीम का सेवन करना या नीम से युक्त प्रसाद लेना, भक्तों के लिए भी लाभकारी माना गया है – यह उन्हें रोगों से बचाने वाली दैवीय औषधि के रूप में कार्य करता है।
भगवान जगन्नाथ को कड़वे नीम का चूर्ण अर्पित करना सिर्फ एक भोग नहीं, बल्कि एक दिव्य चिकित्सा और आध्यात्मिक उपचार का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि ईश्वर का भोग केवल स्वाद का विषय नहीं, बल्कि भाव, शुद्धता और उपचार का माध्यम है। जैसे भगवान कड़वाहट को स्वीकार करके भी भक्तों को मधुर फल देते हैं, वैसे ही नीम का भोग हमें सिखाता है कि स्वास्थ्य और आध्यात्मिकता की राह कभी-कभी कड़वी लेकिन कल्याणकारी होती है।
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