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आखिर क्यों हनुमानजी ने अपना सीना चीरकर श्रीराम और सीता के कराए दर्शन, जानिए इसके पीछे की पौराणिक कथा

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हनुमानजी की भक्ति और समर्पण की कहानी हिंदू धर्म की सबसे प्रेरणादायक और प्रसिद्ध कथाओं में से एक है। उनकी शक्ति, साहस और भगवान श्रीराम तथा माता सीता के प्रति उनकी अटूट निष्ठा का एक अनोखा उदाहरण है — वह वह क्षण जब उन्होंने अपना सीना चीरकर अपने हृदय में बैठे श्रीराम और सीता के दर्शन कराए। आइए जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कथा।

पौराणिक कथा का आरंभ

हनुमानजी का जन्म भगवान शिव और माता अंजना के पुत्र के रूप में हुआ। बचपन से ही वे अतिप्रबल शक्ति और दिव्य गुणों से संपन्न थे। उनकी सबसे बड़ी विशेषता थी उनका अटूट भक्ति भाव भगवान श्रीराम के प्रति। जब श्रीराम ने माता सीता का अपहरण रावण से छुड़ाने के लिए युद्ध छेड़ा, तब हनुमानजी उनकी सेवा में तत्पर हुए। उन्हें सीता माता की खोज और उनका संदेश पहुँचाने का काम सौंपा गया।

हनुमानजी का संदेश लेकर सीता माता से मिलना

हनुमानजी ने लंका पहुँचकर माता सीता का पता लगाया। वे माता सीता से मिले और श्रीराम का संदेश पहुँचाया। इस दौरान उन्हें यह समझना था कि भगवान श्रीराम और माता सीता उनके हृदय में सदैव निवास करते हैं।

क्यों किया हनुमानजी ने अपना सीना चीरना?

जब हनुमानजी ने कई बार अपने हृदय के अंदर भगवान श्रीराम और माता सीता को दिखाने की बात कही, तब कुछ भक्तों ने उनसे संदेह किया कि वे अपने दिल में भगवान को नहीं दिखा सकते। ऐसे में हनुमानजी ने अपना सीना चीरकर दिखाया, जिसमें सचमुच उनके हृदय के बीच में भगवान श्रीराम और माता सीता विराजमान थे। यह दृश्य सभी के लिए अत्यंत चमत्कारिक और आध्यात्मिक था।

कथा का संदेश

हनुमानजी का सीना चीरना केवल एक शारीरिक क्रिया नहीं, बल्कि यह भक्ति और समर्पण की अमर कहानी का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि:

  • भगवान हमेशा अपने भक्तों के हृदय में निवास करते हैं।

  • सच्चे भक्त का हृदय भगवान के लिए सदैव खुला और समर्पित होता है।

  • भक्ति में अडिग रहकर किसी भी कठिनाई को पार किया जा सकता है।

हनुमानजी की भक्ति का संदेश आज भी प्रासंगिक

हनुमानजी का यह उदाहरण हमें यह सिखाता है कि भक्ति मात्र शब्दों में नहीं होती, बल्कि मन, वचन और कर्म से भी होती है। सच्ची भक्ति में भगवान की उपस्थिति महसूस होती है, जो दिल से कभी हटती नहीं। इसलिए आज भी हनुमानजी को सच्चे मन से पूजने वाले भक्तों को उनकी कृपा प्राप्त होती है, और वे संकटों से उबरते हैं।

निष्कर्ष

हनुमानजी ने अपना सीना चीरकर यह दिखाया कि उनकी भक्ति कितनी गहरी और मजबूत है। वे केवल शक्ति के प्रतीक नहीं, बल्कि सच्चे भक्त और भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण के उदाहरण हैं। यह कथा हमें सिखाती है कि भगवान हमारे हृदय में हमेशा रहते हैं, बस हमें उन्हें सच्चे मन से अपनाना होता है।

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