आखिर भगवान शिव की किस बात से नाराज हुईं थी माता पार्वती? वीडियो में सामने आया रावण और मां गंगा से कनेक्शन

सदियों के इंतजार और कठोर तपस्या के बाद देवी पार्वती ने फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिव को पति के रूप में पाया। भगवान शिव सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के स्वामी हैं। माता पार्वती को शिव के बाद कभी कुछ और नहीं चाहिए था, लेकिन एक प्रसंग ऐसा भी है जब भोलेनाथ को माता पार्वती के क्रोध का शिकार होना पड़ा था। इतना ही नहीं, क्रोध की अग्नि में देवी पार्वती ने भोलेनाथ को श्राप दे दिया। आइये जानते हैं कि देवी पार्वती ने शिव को श्राप क्यों दिया था।
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार देवी पार्वती ने महादेव के सामने चौसर खेलने की इच्छा व्यक्त की। भोलेनाथ ने देवी का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। चौसर का खेल शुरू हुआ। देवी पार्वती हर चाल में भगवान भोलेनाथ को पराजित कर रही थीं। खेल में भगवान शिव पार्वतीजी के हाथों सबकुछ हारकर पत्तों का वस्त्र धारण कर गंगा तट पर जाते हैं।
भोलेनाथ चौसर के खेल में अपना सबकुछ हार चुके थे।
यह देखकर पार्वती जी चिंतित हो जाती हैं। जब कार्तिकेय को इन बातों का पता चला तो वे देवी पार्वती से सारी चीजें वापस लेने गए, लेकिन देवी ने खेल के नियम के अनुसार चीजें देने से मना कर दिया। तब देवी पार्वती और कार्तिकेय जी के बीच खेल शुरू हुआ, जिसमें माता हार गईं। कार्तिकेय शंकरजी का सारा सामान लेकर वापस चले गए। देवी अपने पति के वियोग में व्याकुल थीं, तब माता की व्यथा सुनकर गणेशजी स्वयं खेल खेलने भोलेनाथ के पास पहुंच गए।
गणपति जी ने अपने पिता शिव को भी चौसर के खेल में हराया था। जब गणपति ने अपनी जीत का खुशखबरी अपनी मां को सुनाई तो उन्होंने कहा कि वह अपने पिता को पुनः कैलाश लेकर आएंगी। गणपति जी ने पुनः प्रयास किया लेकिन शिव जी नहीं माने और इस बार भोलेनाथ के भक्त रावण ने बिल्ली का रूप धारण कर गणेश जी के वाहन मूषक को डराकर भगा दिया। शिव ने कहा कि यदि पार्वती जी पुनः खेल खेलने के लिए राजी हो जाएं तो वे वापस आ जाएंगे।
शिव ने चौसर के पासे बदल दिये।
पार्वती जी ने महादेव का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। चूंकि शंकर जी अब सब कुछ हार चुके थे, इसलिए पार्वती ने उनसे पूछा कि अब खेल में उन्हें क्या खोना है। इस पर नारदजी ने अपनी वीणा भगवान शिव को सौंप दी। खास बात यह है कि इस खेल में भगवान विष्णु ने भोलेशंकर की इच्छा से पासे का रूप धारण किया था। अब भोलेनाथ खेल में हर बार जीतने लगे।
गणपति जी को महादेव और विष्णु जी की चाल समझ में आ गई, उन्होंने माता को सारी कहानी बताई तो माता बहुत क्रोधित हुईं। वहीं रावण ने भी माता को समझाने की कोशिश की। लेकिन उनका क्रोध शांत नहीं हुआ और क्रोध में उन्होंने भोलेनाथ को श्राप दे दिया कि गंगा की धारा का बोझ सदैव उनके सिर पर रहेगा। साथ ही इस खेल में शिव का साथ देने के कारण रावण को भी श्राप मिला कि एक दिन भगवान विष्णु उसका अंत कर देंगे।