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आखिर कैसे इस मंदिर में हर दिन बदल रहा है श्रीगणेश का रूप, उल्टे स्वास्तिक से होती है मन्नतें पूरी

राजधानी भोपाल के निकट सीहोर जिला मुख्यालय से करीब तीन किलोमीटर दूर स्थित चिंतामन गणेश मंदिर अपनी प्रसिद्धि और भक्तों की अटूट आस्था के लिए पूरे देश में जाना जाता है। देश में भगवान गणेश की चार स्वनिर्मित प्रतिमाएं हैं। इनमें से एक रणथंभौर सवाई माधोपुर राजस्थान....
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राजधानी भोपाल के निकट सीहोर जिला मुख्यालय से करीब तीन किलोमीटर दूर स्थित चिंतामन गणेश मंदिर अपनी प्रसिद्धि और भक्तों की अटूट आस्था के लिए पूरे देश में जाना जाता है। देश में भगवान गणेश की चार स्वनिर्मित प्रतिमाएं हैं। इनमें से एक रणथंभौर सवाई माधोपुर राजस्थान में स्थित है, दूसरा उज्जैन स्थित अवंतिका में, तीसरा गुजरात के सिद्धार्थपुर में और चौथा सीहोर के चिंतामन गणेश मंदिर में स्थित है। भगवान गणेश के दर्शन के लिए पूरे वर्ष लाखों भक्त यहां आते हैं।

इतिहासकारों के अनुसार मंदिर का जीर्णोद्धार और सभा भवन का निर्माण बाजीराव पेशवा प्रथम ने करवाया था। मंदिर की व्यवस्था में शालिवाहन शक, राजा भोज, कृष्ण राय और गौड़ राजा नवल शाह आदि ने मदद की थी। नानाजी पेशवा विठुर के समय में मंदिर की प्रसिद्धि और प्रतिष्ठा बढ़ गई। ऐसा माना जाता है कि भक्तगण भगवान गणेश के सामने अपनी मन्नत मांगने के लिए मंदिर की दीवार पर उल्टा स्वस्तिक बनाते हैं और मन्नत पूरी होने पर सीधा स्वस्तिक बनाते हैं।

प्राचीन चिंतामन सिद्ध गणेश के बारे में एक पौराणिक इतिहास है। इस मंदिर का इतिहास लगभग दो हजार वर्ष पुराना है। ऐसा माना जाता है कि सम्राट विक्रमादित्य पार्वती नदी से कमल के फूल के रूप में प्रकट हुए भगवान गणेश को रथ पर ले जा रहे थे। सुबह होते-होते रथ ज़मीन में धंस गया। रथ में रखा कमल का फूल गणेश प्रतिमा में परिवर्तित होने लगा और प्रतिमा जमीन में धंसने लगी। बाद में इस स्थान पर मंदिर का निर्माण किया गया। आज भी यह मूर्ति आधी जमीन में धंसी हुई है।

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