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गरुड़ पुराण के अनुसार मृत्यु के बाद आत्मा को यमदूत 24 घंटे के लिए ले जाते हैं ! जानिए किसे मिलता है स्वर्ग

मृत्यु के बाद आत्मा का क्या होता है? क्या वह सीधे स्वर्ग या नरक चली जाती है या किसी और योनि में जाती है? इन प्रश्नों के उत्तर भारतीय सनातन धर्म की धार्मिक और पुराणिक ग्रंथों में मिलते हैं। विशेष रूप से गरुड़ पुराण में मृत्यु के बाद आत्मा की यात्रा और "प्रेत...
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मृत्यु के बाद आत्मा का क्या होता है? क्या वह सीधे स्वर्ग या नरक चली जाती है या किसी और योनि में जाती है? इन प्रश्नों के उत्तर भारतीय सनातन धर्म की धार्मिक और पुराणिक ग्रंथों में मिलते हैं। विशेष रूप से गरुड़ पुराण में मृत्यु के बाद आत्मा की यात्रा और "प्रेत योनि" की अवधारणा का बहुत विस्तार से उल्लेख किया गया है। गरुड़ पुराण के अनुसार, जब मनुष्य की मृत्यु होती है, तो उसकी आत्मा शरीर को त्याग देती है। लेकिन यह आत्मा तुरंत अगले जन्म में प्रवेश नहीं करती। बल्कि, कुछ विशेष परिस्थितियों में आत्मा को प्रेत योनि में भेज दिया जाता है। यह एक अस्थायी स्थिति होती है जिसमें आत्मा भटकती रहती है और उसे मुक्ति नहीं मिलती।

प्रेत योनि क्या है?

प्रेत योनि एक ऐसी अवस्था होती है जिसमें आत्मा भटक रही होती है — न वह पूरी तरह मुक्त होती है और न ही किसी जीव योनि में प्रवेश करती है। यह स्थिति अत्यंत पीड़ादायक और कष्टदायक मानी जाती है। प्रेत आत्माएं अक्सर इसी वजह से अस्थिर रहती हैं, और उन्हें शांत करने के लिए पिंडदान, श्राद्ध कर्म और अन्य धार्मिक क्रियाएं की जाती हैं।

कब मिलती है आत्मा को प्रेत योनि?

गरुड़ पुराण में आत्मा को प्रेत योनि मिलने के कई कारण बताए गए हैं:

  1. अकाल मृत्यु – यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु असमय, अचानक दुर्घटना, आत्महत्या, हत्या या अनियमित परिस्थितियों में होती है तो आत्मा को प्रेत योनि मिल सकती है।

  2. अधर्मयुक्त जीवन – जो व्यक्ति अपने जीवन में अधार्मिक, पापमय, हिंसक या अमानवीय कार्य करता है, उसे मृत्यु के बाद प्रेत योनि का भोग करना पड़ता है।

  3. अंतिम संस्कार का अभाव – यदि मृत व्यक्ति के शव का ठीक से अंतिम संस्कार नहीं हुआ, विशेष रूप से यदि पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध न किए जाएं, तो आत्मा को शांति नहीं मिलती और वह प्रेत योनि में फंस जाती है।

  4. मोह और आसक्ति – जो आत्माएं संसारिक भोगों, संपत्ति, परिवार या शरीर के प्रति अत्यधिक मोह में होती हैं, वे मरने के बाद भी उसी मोह के कारण मुक्त नहीं हो पातीं।

गरुड़ पुराण में आत्मा की यात्रा

गरुड़ पुराण के अनुसार, जब मनुष्य मरता है तो यमदूत उसकी आत्मा को यमलोक की ओर ले जाते हैं। लेकिन यदि आत्मा में पाप अधिक है और अंतिम क्रियाएं अधूरी हैं, तो वह आत्मा 11 से 49 दिनों तक धरती पर प्रेत योनि में भटकती है। इस अवधि में आत्मा को अत्यंत कष्ट होता है — भूख, प्यास, ठंड, गर्मी और अकेलेपन की पीड़ा झेलनी पड़ती है। यही कारण है कि हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद 13 दिनों तक विशेष धार्मिक कर्म किए जाते हैं, जिससे आत्मा को शांति मिले और वह आगे की यात्रा कर सके।

प्रेत योनि से मुक्ति कैसे मिले?

गरुड़ पुराण और ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार, आत्मा को प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने के लिए परिजनों को कुछ विशेष धार्मिक क्रियाएं करनी चाहिए:

  1. पिंडदान – मृतात्मा को अन्न और जल की भावना के साथ समर्पण किया जाता है जिससे आत्मा को तृप्ति मिलती है।

  2. श्राद्ध कर्म – मृत्यु के बाद तिथि पर पंडितों और ब्राह्मणों को भोजन और दान दिया जाता है।

  3. तर्पण – जल में तिल और जल मिलाकर पितरों को अर्पित किया जाता है।

  4. राम नाम और गीता पाठ – गीता के श्लोकों और भगवान के नाम का जाप आत्मा को प्रकाश की ओर ले जाता है।

  5. गया या प्रयाग में पिंडदान – खासकर गया में पिंडदान को अत्यंत पुण्यदायी माना गया है, जिससे आत्मा को त्वरित मुक्ति मिलती है।

प्रेत योनि का भौगोलिक या भावनात्मक अस्तित्व

प्रेत योनि को केवल एक कल्पनात्मक स्थिति नहीं माना जाता। भारतीय संस्कृति में इसे एक सूक्ष्म लोक माना गया है, जो न तो पूरी तरह भौतिक है और न ही पूरी तरह आध्यात्मिक। इसे "भूत लोक" भी कहा गया है, जहां अधूरी इच्छाओं और पापों से ग्रस्त आत्माएं निवास करती हैं।

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