एक अनूठा 'शक्ति पीठ' केंद्र, जहां नवरात्रि में सात दिन बंद रहते हैं पट... जानिए इसकी मान्यता

राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के जहाजपुर उपखंड क्षेत्र में स्थित घाटा रानी माताजी का मंदिर श्रद्धा, परंपरा और चमत्कारों का केंद्र है। यह मंदिर केवल एक आस्था का स्थल नहीं, बल्कि हजारों भक्तों की विश्वास की डोर है, जो वर्षों से यहां माता के दरबार में बिना कहे ही अपनी समस्याओं का समाधान पाते हैं। यह शक्ति पीठ नवरात्रि के दोनों पर्व—चैत्र और शारदीय नवरात्रों—में खास महत्व रखता है। जहां देशभर में नवरात्रि के दौरान मंदिरों में विशेष दर्शन की व्यवस्था होती है, वहीं घाटा रानी माताजी मंदिर में एक अनोखी परंपरा निभाई जाती है।
सात दिन बंद रहते हैं मंदिर के पट
नवरात्रि आरंभ होने से एक दिन पूर्व, अमावस्या की संध्या आरती के साथ ही मंदिर के पट बंद हो जाते हैं। इन सात दिनों तक केवल मंदिर के पुजारी गर्भगृह में प्रवेश कर माता की विधिवत पूजा करते हैं। आम भक्तगण इन दिनों मंदिर के बाहर से ही श्रद्धा भाव से पूजा अर्चना करते हैं, लेकिन माता के दर्शन संभव नहीं होते। यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है और माना जाता है कि माता स्वयं इस दौरान ध्यान अवस्था में होती हैं। जब अष्टमी के दिन मंगला आरती के साथ मंदिर के पट खुलते हैं, तो हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ माता के प्रथम दर्शन के लिए उमड़ पड़ती है।
माता करती हैं बिना मांगे कृपा
घाटा रानी माता के प्रति लोगों की आस्था इतनी गहरी है कि कहा जाता है—"यहां जो भी भक्त सच्चे मन से आता है, उसे बिना मांगे ही सब कुछ मिल जाता है।" चाहे संतान प्राप्ति की इच्छा हो, विवाह की कामना या रोग मुक्ति—माता सबका कल्याण करती हैं। पट खुलने के दिन, यानी अष्टमी के दिन, मंदिर परिसर में भव्य मेला आयोजित होता है, जिसमें आसपास के गांवों से हजारों की संख्या में पैदल यात्री जयकारे लगाते हुए घाटा रानी के दरबार में पहुंचते हैं। यह मेला स्थानीय संस्कृति, भक्ति और परंपरा का अद्भुत संगम बन जाता है।
मंदिर का प्राचीन इतिहास और कथा
यह मंदिर जहाजपुर उपखंड मुख्यालय से लगभग 12 किलोमीटर दूर घाटारानी गांव की ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। 'घाटा' का अर्थ होता है पहाड़ी, और इसी कारण मंदिर का नाम पड़ा — घाटा रानी माताजी मंदिर। मुख्य पुजारी शक्ति सिंह तंवर के अनुसार, यह परंपरा तब से चली आ रही है जब से देवी माता इस स्थान पर प्रकट हुई थीं। मंदिर का निर्माण भी 100 साल से अधिक पुराना बताया जाता है।
ग्वाले और देवी के प्रकट होने की दंतकथा
मंदिर से जुड़ी एक बेहद रोचक और पौराणिक कथा है, जो आज भी श्रद्धालुओं के बीच प्रचलित है। प्राचीन काल में एक ग्वाला जंगल में गायें चराया करता था। वह रोज एक नदी के किनारे अपनी गायों को ले जाता, जहां एक कन्या पहाड़ी से आकर गायों का दूध पी जाती थी। जब मालिकों ने ग्वाले को डांटा कि गायों का दूध तुम ही निकालते हो, तब ग्वाला एक दिन छिपकर बैठ गया। उसने देखा कि एक कन्या पहाड़ से उतरकर आ रही है और गायों का दूध पी रही है। जैसे ही ग्वाला दौड़ा, कन्या पहाड़ी की ओर भागी और धीरे-धीरे धरती में समाने लगी। ग्वाले ने उसका पीछा किया और उसके सिर की चोटी पकड़ ली, तभी वह कन्या एक पत्थर में परिवर्तित हो गई। तभी से यह स्थान "घाटा रानी" के रूप में पूजित हो गया।
नारी शक्ति और आस्था का अद्वितीय प्रतीक
घाटा रानी माताजी का मंदिर एक ओर जहां महिलाओं की शक्ति और आत्मबल का प्रतीक है, वहीं यह स्थान सामाजिक एकता, लोक मान्यता और आध्यात्मिक विश्वास का केंद्र भी है। यहाँ हर उम्र, हर जाति और हर वर्ग के लोग माता के चरणों में सिर नवाते हैं।
आस्था की जीवित परंपरा
आज भी हर वर्ष नवरात्रि के अवसर पर यह परंपरा जीवित रहती है। न केवल गांववासी बल्कि दूर-दराज के जिलों से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। यह मेला अब राजकीय मान्यता प्राप्त करने की ओर बढ़ रहा है।