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इस कुएं में आज भी मौजूद है दुनिया की सबसे लंबी खुफिया सुरंग, इन दो देशों को जोड़ती है आपस में

पूरी दुनिया में ऐसे कई रहस्य हैं जिनका पता इंसान आज तक नहीं लगा पाया है। इनमें से कई रहस्य हमारे देश में भी मौजूद हैं जो आज भी लोगों को आश्चर्यचकित करते हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही रहस्य के बारे में बताने जा रहे हैं। आपको बता दें कि पुराने जमाने में राजा-महाराजा अक्सर अपने राज्य में कुएं खुदवाते थे। ताकि जनता को पानी की कमी न हो। उन दिनों हर जगह अनेक कुएँ पाए जाते थे। जिनके अवशेष आज भी मिलते हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही कुएं के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसमें एक गुप्त सुरंग बनाई गई थी।

इस कुएं को 'रानी की बावड़ी' के नाम से जाना जाता है। दरअसल बावड़ी का मतलब सीढ़ीनुमा कुआं होता है। 'रानी की बावड़ी' का इतिहास 900 साल से भी ज्यादा पुराना है। अब इस बावड़ी को देखने के लिए हर साल हजारों पर्यटक यहां पहुंचते हैं। वर्ष 2014 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया। यह बावड़ी गुजरात के पाटण में स्थित है और इसे रानी की वाव के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि रानी की वाव यानी बावड़ी का निर्माण 1063 ई. में सोलंकी वंश के राजा भीमदेव प्रथम की याद में उनकी पत्नी रानी उदयमती ने करवाया था। रानी उदयमती जूनागढ़ के चुडासमा शासक रा खेंगर की पुत्री थीं।

रानी की वाव 64 मीटर लंबी, 20 मीटर चौड़ी और 27 मीटर गहरी है। यह भारत में अपनी तरह की सबसे अनोखी वाव है। इसकी दीवारों और स्तंभों पर अनेक कलाकृतियाँ और मूर्तियां सुन्दर ढंग से उकेरी गई हैं। इनमें से अधिकांश नक्काशी भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों जैसे भगवान राम, वामन, नरसिंह, महिषासुरमर्दिनी, कल्कि आदि को समर्पित हैं। यह बावड़ी सात मंजिला है जो मारू-गुर्जर स्थापत्य शैली का प्रमाण है। सरस्वती नदी के लुप्त होने के बाद यह लगभग सात शताब्दियों तक गाद में दबा रहा।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा इसे पुनः खोजा गया और साफ किया गया। इसके बाद यहां पर्यटक आने लगे। कहा जाता है कि इस विश्व प्रसिद्ध सीढ़ीनुमा बावड़ी के नीचे एक छोटा सा द्वार है, जिसके अंदर करीब 30 किलोमीटर लंबी सुरंग है। यह सुरंग पाटन के सिद्धपुर में खुलती है। ऐसा माना जाता है कि पहले इस गुप्त सुरंग का इस्तेमाल राजा और उनके परिवार द्वारा युद्ध या किसी कठिन परिस्थिति के समय किया जाता था। लेकिन अब यह सुरंग पत्थरों और कीचड़ के कारण बंद कर दी गई है।

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