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भारत में इस जगह दीवाली पर खुशी की जगह मनाया जाता हैं मातम, कारण जान चौंक जाएंगे आप !

भारत में इस जगह दीवाली पर नहीं जलाए जाते हैं लोग खुशी की जगह मातम मनाते हैं, जानिए वजह

दीपावली के पावन पर्व में कुछ ही दिन शेष रह गए हैं। रोशनी का यह पर्व पूरे देश में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। हिंदू धर्म में इस पर्व का विशेष महत्व है। दिवाली की तैयारी लोग कई दिन पहले से ही शुरू कर देते हैं। लोग अपने घरों की साफ-सफाई और रंग-रोगन करते हैं। घर को सजाया जाता है। नए कपड़े, मिठाई और पटाखे खरीदे जाते हैं। छोटे बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक दीपावली के त्योहार का खासा उत्साह रहता है। दीपावली के दिन घरों में दीप जलाए जाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हमारे देश में एक जगह ऐसी भी है जहां दिवाली नहीं मनाई जाती है। यहां दिवाली पर लोग खुशी की जगह मातम मनाते हैं।

दीपावली पर शोक मनाते लोग
दीपावली के दिन जहां पूरा देश रोशनी के इस त्योहार में जगमगाता है, वहीं उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में एक ऐसा गांव है, जहां दिवाली शोक के दिन के रूप में मनाई जाती है. यहां इस दिन किसी भी घर में पूजा नहीं की जाती है, यहां तक ​​कि दूर के घर में दीया भी जलाया जाता है। हैरान करने वाली बात यह है कि यह परंपरा सालों से चली आ रही है।

सैकड़ों वर्षों से चली आ रही परंपरा
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, यूपी के मिर्जापुर की मडिहान तहसील के राजगढ़ इलाके के अटारी गांव में दीपावली को शोक दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस गांव के अलावा मटिहानी, लालपुर, मिशुनपुर, खोराडीह और इसके आसपास के करीब आधा दर्जन गांवों में दीपावली पर्व शोक दिवस के रूप में मनाया जाता है. सभी गांवों में रहने वाले चौहान समुदाय के करीब आठ हजार की आबादी सैकड़ों वर्षों से इस परंपरा का पालन कर रही है. सैकड़ों वर्षों से चली आ रही इस परंपरा को यहां के लोग आज भी निभा रहे हैं।

ये है दीपावली के दिन मातम का कारण
कहा जाता है कि इन गांवों में रहने वाले चौहान समुदाय के लोग खुद को अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान का जागीरदार कहते हैं। ऐसे में इन लोगों का मानना ​​है कि दीवाली के दिन ही मोहम्मद गौरी ने सम्राट पृथ्वीराज चौहान की हत्या कर दी थी. इतना ही नहीं गौरी ने शव को गांधार ले जाकर दफना दिया। इस वजह से लोग इस दिन अपने घरों में लाइट नहीं जलाते हैं. इसी वजह से समाज के लोग दिवाली के त्योहार पर मातम मनाते हैं। यहां दीवाली (एकादशी) के दिन लोग दिवाली की बजाय खुशी-खुशी अपने घरों में रोशनी करते हैं।

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