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जंगलीनाथ से लेकर घमंडीनाथ तक हिमालय की तराई में मौजूद हैं अजब गजब नाम वाले शिव मंदिर

उत्तर भारत के ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक नक्शे पर उत्तर प्रदेश की भूमिका सदियों से विशेष रही है। खासकर, हिमालय की तराई से लगे अवध और पूर्वांचल क्षेत्र की भूमि को अज्ञातवास की पृष्ठभूमि से लेकर धार्मिक स्थलों के रूप में महत्वपूर्ण दर्जा प्राप्त है। यही वह भूभाग है जहां पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दिनों में समय बिताया था, और कई स्थानों पर शिवलिंगों की स्थापना की थी।  समय के साथ बौद्ध, मुगल और ब्रिटिश शासनकाल में इन मंदिरों की उपेक्षा, तोड़फोड़ और संरक्षण के अभाव में अनेक प्राचीन शिवालय लुप्त हो गए। किंतु इनकी किंवदंतियां जीवित रहीं, और बाद के वर्षों में यही स्थल भव्य शिव मंदिरों में परिवर्तित हो गए। आज इन स्थानों पर ऐसे-ऐसे अनोखे नामों और कथाओं वाले शिव मंदिर मौजूद हैं, जिनका न केवल धार्मिक बल्कि पुरातात्त्विक महत्व भी अत्यधिक है।  शिव – सर्वहारा वर्ग के देवता शिव का स्वरूप ही उन्हें सबसे अलग और लोकप्रिय बनाता है। भस्म, नाग, मृगचर्म, रुद्राक्ष और मुंडमाला धारण करने वाले महादेव को सर्वहारा वर्ग का सबसे प्रिय देवता कहा गया है। यही कारण है कि उत्तर प्रदेश के गांव-कस्बों से लेकर गहरी पहाड़ियों और जंगलों तक असंख्य शिव मंदिर स्थापित हैं।  अनोखे नामों वाले शिव मंदिर और उनके पीछे की कथाएं 1. झारखंडेश्वरनाथ मंदिर, कादीपुर (सुलतानपुर) कस्बे की झाड़ियों में अचानक मिले एक शिवलिंग की स्थापना के बाद लोगों ने इसे झारखंडेश्वरनाथ नाम दिया। यह स्थान अब स्थानीय आस्था का केंद्र बन गया है।  2. भूतेश्वरनाथ मंदिर, नैमिषारण्य (सीतापुर) पौराणिक चक्रतीर्थ के तट पर स्थित यह मंदिर 33 कोटि देवी-देवताओं और 88 हजार ऋषि-मुनियों का रक्षक माना जाता है। कहा जाता है कि यहां असुरी शक्तियां प्रवेश नहीं कर सकतीं, क्योंकि भूतेश्वरनाथ स्वयं इस क्षेत्र के कोतवाल हैं।  3. सैनिकेश्वर महादेव, बाराबंकी पूर्व सैनिकों द्वारा स्थापित इस मंदिर का नाम सैनिकेश्वर इसलिए रखा गया क्योंकि इसे सेवानिवृत्त सैनिकों ने बनाया और शिवलिंग की स्थापना की।  4. गल्थरेश्वर मंदिर, डीह (रायबरेली) जब एक टीले की खुदाई में शिवलिंग एक पेड़ की गलथी (जड़ में फंसा स्थान) में पाया गया तो इस मंदिर का नाम गल्थरेश्वर रख दिया गया। यह शिवलिंग आज श्रद्धा का केंद्र है।  5. बाबा घमंडीनाथ मंदिर, नवाबगंज (गोंडा) स्थानीय मान्यता के अनुसार, इस क्षेत्र के सभी देवी-देवताओं के सामने किसी का घमंड नहीं टिक पाया, इसलिए इस शिव मंदिर को घमंडीनाथ कहा गया।  6. बाबा जंगलीनाथ मंदिर, राजापुर (बलरामपुर) जंगल में चरवाहों को शिवलिंग मिलने की खबर पर रानी ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। जंगली स्थान पर प्रकट होने के कारण इस शिव को जंगलीनाथ कहा गया।  7. पृथ्वीनाथ मंदिर, खरगूपुर (गोंडा) कहते हैं, महाभारत काल में भीम ने इस शिवलिंग की स्थापना की थी। शिवलिंग के धरती से स्वयं प्रकट होने के कारण इस मंदिर को पृथ्वीनाथ कहा गया।  8. बालेश्वरनाथ मंदिर, वजीरगंज (गोंडा) मुगल सम्राट औरंगजेब की सेना द्वारा बेल का पेड़ काटते समय निकला शिवलिंग स्थानीय आस्था का प्रतीक बन गया। बेल के पेड़ से शिवलिंग प्रकट होने के कारण इसका नाम पड़ा बालेश्वरनाथ।  9. मुंडा शिवाला, भिनगा (श्रावस्ती) पूर्व भिनगा स्टेट के कर्मचारी द्वारा बनाए गए इस मंदिर की छत आज तक अधूरी है क्योंकि निर्माणकर्ता की मौत निर्माण के दौरान हो गई थी। तभी से यह मुंडा (अधूरा) शिवाला कहलाता है।  निष्कर्ष: शिव की भूमि में रचे-बसे पौराणिक सत्य उत्तर प्रदेश की इन कथाओं और मंदिरों से स्पष्ट है कि यह भूमि केवल धार्मिक आस्था नहीं बल्कि इतिहास और संस्कृति का अद्भुत संगम है। यहां के शिवालय केवल मंदिर नहीं, बल्कि शिव की उपस्थिति के जीवंत प्रमाण हैं। हर मंदिर एक नई कहानी, एक नई श्रद्धा और एक अनोखे नाम के साथ जुड़ा है, जो उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत को और भी गौरवपूर्ण बनाता है।

उत्तर भारत के ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक नक्शे पर उत्तर प्रदेश की भूमिका सदियों से विशेष रही है। खासकर, हिमालय की तराई से लगे अवध और पूर्वांचल क्षेत्र की भूमि को अज्ञातवास की पृष्ठभूमि से लेकर धार्मिक स्थलों के रूप में महत्वपूर्ण दर्जा प्राप्त है। यही वह भूभाग है जहां पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दिनों में समय बिताया था, और कई स्थानों पर शिवलिंगों की स्थापना की थी।

समय के साथ बौद्ध, मुगल और ब्रिटिश शासनकाल में इन मंदिरों की उपेक्षा, तोड़फोड़ और संरक्षण के अभाव में अनेक प्राचीन शिवालय लुप्त हो गए। किंतु इनकी किंवदंतियां जीवित रहीं, और बाद के वर्षों में यही स्थल भव्य शिव मंदिरों में परिवर्तित हो गए। आज इन स्थानों पर ऐसे-ऐसे अनोखे नामों और कथाओं वाले शिव मंदिर मौजूद हैं, जिनका न केवल धार्मिक बल्कि पुरातात्त्विक महत्व भी अत्यधिक है।

शिव – सर्वहारा वर्ग के देवता

शिव का स्वरूप ही उन्हें सबसे अलग और लोकप्रिय बनाता है। भस्म, नाग, मृगचर्म, रुद्राक्ष और मुंडमाला धारण करने वाले महादेव को सर्वहारा वर्ग का सबसे प्रिय देवता कहा गया है। यही कारण है कि उत्तर प्रदेश के गांव-कस्बों से लेकर गहरी पहाड़ियों और जंगलों तक असंख्य शिव मंदिर स्थापित हैं।

अनोखे नामों वाले शिव मंदिर और उनके पीछे की कथाएं

1. झारखंडेश्वरनाथ मंदिर, कादीपुर (सुलतानपुर)

कस्बे की झाड़ियों में अचानक मिले एक शिवलिंग की स्थापना के बाद लोगों ने इसे झारखंडेश्वरनाथ नाम दिया। यह स्थान अब स्थानीय आस्था का केंद्र बन गया है।

2. भूतेश्वरनाथ मंदिर, नैमिषारण्य (सीतापुर)

पौराणिक चक्रतीर्थ के तट पर स्थित यह मंदिर 33 कोटि देवी-देवताओं और 88 हजार ऋषि-मुनियों का रक्षक माना जाता है। कहा जाता है कि यहां असुरी शक्तियां प्रवेश नहीं कर सकतीं, क्योंकि भूतेश्वरनाथ स्वयं इस क्षेत्र के कोतवाल हैं।

3. सैनिकेश्वर महादेव, बाराबंकी

पूर्व सैनिकों द्वारा स्थापित इस मंदिर का नाम सैनिकेश्वर इसलिए रखा गया क्योंकि इसे सेवानिवृत्त सैनिकों ने बनाया और शिवलिंग की स्थापना की।

4. गल्थरेश्वर मंदिर, डीह (रायबरेली)

जब एक टीले की खुदाई में शिवलिंग एक पेड़ की गलथी (जड़ में फंसा स्थान) में पाया गया तो इस मंदिर का नाम गल्थरेश्वर रख दिया गया। यह शिवलिंग आज श्रद्धा का केंद्र है।

5. बाबा घमंडीनाथ मंदिर, नवाबगंज (गोंडा)

स्थानीय मान्यता के अनुसार, इस क्षेत्र के सभी देवी-देवताओं के सामने किसी का घमंड नहीं टिक पाया, इसलिए इस शिव मंदिर को घमंडीनाथ कहा गया।

6. बाबा जंगलीनाथ मंदिर, राजापुर (बलरामपुर)

जंगल में चरवाहों को शिवलिंग मिलने की खबर पर रानी ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। जंगली स्थान पर प्रकट होने के कारण इस शिव को जंगलीनाथ कहा गया।

7. पृथ्वीनाथ मंदिर, खरगूपुर (गोंडा)

कहते हैं, महाभारत काल में भीम ने इस शिवलिंग की स्थापना की थी। शिवलिंग के धरती से स्वयं प्रकट होने के कारण इस मंदिर को पृथ्वीनाथ कहा गया।

8. बालेश्वरनाथ मंदिर, वजीरगंज (गोंडा)

मुगल सम्राट औरंगजेब की सेना द्वारा बेल का पेड़ काटते समय निकला शिवलिंग स्थानीय आस्था का प्रतीक बन गया। बेल के पेड़ से शिवलिंग प्रकट होने के कारण इसका नाम पड़ा बालेश्वरनाथ

9. मुंडा शिवाला, भिनगा (श्रावस्ती)

पूर्व भिनगा स्टेट के कर्मचारी द्वारा बनाए गए इस मंदिर की छत आज तक अधूरी है क्योंकि निर्माणकर्ता की मौत निर्माण के दौरान हो गई थी। तभी से यह मुंडा (अधूरा) शिवाला कहलाता है।

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