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अगर आप भी बना रहे हैं देहरादून घूमने की योजना, तो इन ऐतिहासिक स्थलों की जरूर करें सैर, हर जगह की है अपनी कहानी

आईएसबीटी से 4 किमी की दूरी पर एक सुंदर बुद्ध मंदिर स्थित है, जो देहरादून आने वाले पर्यटकों के लिए एक पसंदीदा स्थान है......
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ट्रेवल न्यूज़ डेस्क !!! आईएसबीटी से 4 किमी की दूरी पर एक सुंदर बुद्ध मंदिर स्थित है, जो देहरादून आने वाले पर्यटकों के लिए एक पसंदीदा स्थान है। इसे माइंड्रोलिंग मठ के नाम से भी जाना जाता है। इसे जापानी वास्तुकला शैली में 1965 में कोचेन रिनपोछे ने तिब्बती, चीनी, जापानी और लद्दाखी कलाकारों के साथ मिलकर बनाया था। आज इसमें लगभग 500 लामा रहते हैं। भगवान बुद्ध की 103 फीट ऊंची प्रतिमा पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केंद्र है।

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31 अक्टूबर, 1814 को देहरादून के रायपुर क्षेत्र की खलंगा पहाड़ी पर ब्रिटिश सैनिकों और अधिकारियों ने हमला कर दिया। केवल 600 गोरखा सैनिकों ने खलंगा पर चढ़ाई की, जिनमें 100 महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे। वीर बलभद्र थापा की वीर सेना का सामना उस समय के नवीनतम हथियारों से सुसज्जित 3500 ब्रिटिश सेना से हुआ। जबकि, गोरखा सैनिकों के पास केवल उनके पारंपरिक हथियार थे जिनमें खुकुरी, तलवार और धनुष-बाण शामिल थे। इसके बावजूद वीर बलभद्र थापा के नेतृत्व में वीर गोरखाओं ने अंग्रेजों को हरा दिया। उनकी वीरता को देखकर अंग्रेजों ने स्वयं खलंगा में एक स्मारक बनवाया।

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मौर्य वंश के सम्राट अशोक ने उत्तर भारत में केवल एक विशाल शिलालेख स्थापित किया था जो देहरादून के कालसी में स्थित है, इसलिए इसे कालसी शिलालेख भी कहा जाता है। इसमें सम्राट अशोक की नीतियों और व्यवहार के बारे में लिखा गया है। यह शिलालेख प्राकृत भाषा और ब्राह्मी लिपि में लिखा गया है। अगर आप यहां जाना चाहते हैं तो देहरादून शहर से करीब 50 किमी दूर चकराता मार्ग पर यमुना नदी के किनारे कालसी ब्लॉक में अशोक के शिलालेख के रूप में एक ऐतिहासिक धरोहर है, जिसे अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद कालसी में बनवाया था। 273 ई.पू. स्थापित किया गया था। इसका उल्लेख चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने यात्रा वृतांत में किया था।

विशाल हिमालय की ऊंचाइयों से लेकर गहरी खाइयों तक ब्रिटिश काल के भूविज्ञानी सर जॉर्ज एवरेस्ट ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। मसूरी के हाथीपांव स्थित जॉर्ज एवरेस्ट हाउस में रहकर उन्होंने एवरेस्ट चोटियों का सर्वेक्षण किया। 1832 में इस घर और प्रयोगशाला का निर्माण किया गया था, जिसे अब सर जॉर्ज एवरेस्ट हाउस और प्रयोगशाला या पार्क हाउस के नाम से जाना जाता है। इसे पर्यटन विभाग द्वारा एक संग्रहालय के रूप में विकसित किया गया है, जहां पुरानी मशीनें और विभिन्न उपकरण रखे गए हैं। यहां का नजारा देखकर लोग यहां आते हैं।

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