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इंग्लैंड के राजा के स्वागत के लिए जयपुर के राजा ने बनवाई थी ये आलीशान ईमारत, वीडियो में देखें इसके अनकहे राज 

इस बात से तो आप भी सहमत होंगे कि पुरानी चीजें एक अलग ही महत्व रखती है। इतिहास और उसकी जानकारी हमेशा हमारे मन को आकर्षित करती है.......
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इस बात से तो आप भी सहमत होंगे कि पुरानी चीजें एक अलग ही महत्व रखती है। इतिहास और उसकी जानकारी हमेशा हमारे मन को आकर्षित करती है। गुलाबी नगरी जयपुर में विश्व इतिहास का एक ऐसा नायाब केंद्र मौजूद है जो हमारे लिए राजस्थान या भारत ही नहीं विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं के भी बहुत सारे राज खोलता है। 

जयपुर शहर के केंद्र में स्थित 150 साल पुराना अल्बर्ट हॉल, राजस्थान के इतिहास और अंग्रेजों की स्थापत्यकला से विश्व की प्राचीनतम सभ्यता, मिस्र के वो राज अपने अंदर समेटे हैं, जो आपको आश्चर्यचकित कर देंगें। यहां का मुख्य आकर्षण मिस्र से लाई गई तेईस सौ साल पुरानी ममी है, यह ममी मिस्र के राजघराने के पुजारी परिवार की महिला तुतु की है, जिसके आज भी कई सारे अवशेष सुरक्षित है। 

हम बात कर रहे हैं, जयपुर के सबसे बड़े और पुराने म्यूजियम अल्बर्ट हॉल की, जिसे महाराजा रामसिंह द्वारा बनवाया गया था। इंडो-सरैसेनिक वास्तुकला के आदर्श के रूप में खड़ी इस इमारत का नाम प्रिंस ऑफ व्हेल्स, अल्बर्ट एडवर्ड के नाम पर रखा गया था। हरे-भरे बागानों से सुसज्जित, अल्बर्ट हॉल की नींव 6 फरवरी अठारह सौ छिहत्तर को रखी गई थी, जब अल्बर्ट एडवर्ड भारत आए थे। संग्रहालय की दीर्घाओं में अतीत से प्राचीन वस्तुओं और कलाकृतियों का एक संग्रह है जो आपको हैरान कर देगा। यहां प्राचीन सिक्के, संगमरमर की कला, मिट्टी के बर्तनों, कालीनों और विशेष रूप से मिस्र की ममी रखी गई है, जो इतिहास के शौकीनों के साथ-साथ पर्यटकों के घूमने के लिए जयपुर की सबसे आकर्षक जगहों में से एक है, तो आईये आपको रूबरू कराते हैं अल्बर्ट हॉल संग्रहालय के इतिहास, वास्तुकला, संरचना, इसे कब और किसने बनाया और यहां घूमनेके सबसे सही समय से
 
जयपुर स्थित अल्बर्ट हॉल का इतिहास लगभग 150 साल पुराना है, जिसकी नींव 6 फरवरी अठारह सौ छिहत्तर को प्रिंस ऑफ वेल्स अल्बर्ट एडवर्ड की जयपुर यात्रा के दौरान रखी गई थी। और इन्हीं के नाम पर ही इस इमारत का नाम रखा गया है। महाराजा सवाई राम सिंह चाहते थे कि अल्बर्ट हॉल एक टाउन हॉल हो, वहीँ कुछ मंत्रियों ने इसे सांस्कृतिक या शैक्षिक उपयोग में लेने का सुझाव दिया। जिसके बाद अठारह सौ अस्सी में महाराजा सवाई माधोसिंह द्वितीय के सुझाव पर, स्थानीय कारीगरों की कला को प्रदर्शित करने के लिए, इसे अठारह सौ इक्यासी में एक अस्थायी संग्रहालय बनाया गया । अल्बर्ट हॉल का निर्माण अठारह सौ सत्तासी में जयपुर पीडब्ल्यूडी के निदेशक सैमुअल स्विंटन जैकब ने पूरा किया। सर एडवर्ड ब्रेडफोर्ड ने अठारह सौ सत्तासी में इसका विधिवत उद्घाटन किया था। इस शानदार इमारत को बनाने में लगभग 5,01,036 रुपए खर्च हुए थे। साल 2008 में इस संग्रहालय का अब तक का सबसे बड़ा पुनर्निर्माण किया गया।

अल्बर्ट हॉल इंडो सरैसेनिक वास्तुकला का एक शानदार उदाहरण है। जिसके गलियारों को विभिन्न प्रकार की शैलियों में भित्ति चित्रों के साथ सजाया गया है, यहां यूरोपीय, मिस्र, चीनी, ग्रीक और बेबीलोनियन सभ्यताओं को चित्रित किया गया है। यहां प्राचीन सिक्के, संगमरमर की कला, मिट्टी के बर्तनों, कालीनों और विशेष रूप से मिस्र से लाई गई ममी रखी गई है। अल्बर्ट हॉल में कई मनोरंजक गैलरी हैं, जो उन्नीसवीं शताब्दी से प्राचीन काल तक की वस्तुओं और खजाने का प्रदर्शन करती हैं। तो चलते हैं अल्बर्ट हॉल संग्रहालय के अंदर और इतिहास के पन्ने पलटना शुरू करते हैं जहां हमे सबसे ज्यादा आकर्षित करती है तुतु की ममी 

मिस्र की ममी, संग्रहालय में सबसे प्रतिष्ठित ऐतिहासिक संग्रहों में से एक मिस्र की ममी है, जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है। यह ममी हमें गीजा के पिरामिडों, नील नदी की सभ्यता और मिस्र के प्राचीन कालीन मृत शरीर को ममी के रूप में संरक्षित रखने की अद्भुत प्रक्रिया के बारे में बहुत अहम जानकारी देती है। यहां रखी तेईससौ साल पुरानी ममी मिस्र के राजघराने के पुजारी परिवार की महिला तुतु की है, जिसे 322 ईसा पूर्व के समय में ममी के रूप में  परिवर्तित किया गया था। इस ममी को 19वीं सदी में साल अठारह सौ अस्सी में ब्रिटिश सरकार मिस्र के काहिरा शहर से जयपुर लाई थी। तुतु की ममी के साथ मिस्र की सभ्यता से जुडी 399 ऐतिहासिक वस्तुएं भी जयपुर लाई गई थी। जो मिस्र के देवी-देवताओं, सभ्यता, खान-पान, वेशभूषा, रीति-रिवाज को प्रदर्शित करती हैं।

कालीन गैलरी: अल्बर्ट हॉल में स्थित कालीन गैलरी दुनिया के इस्लामिक देशों में बनने वाली विश्व की बेहतरीन कालीनों को अपने अंदर संजोय हुए है। ये कालीन सोलह सौ बत्तीस में मिर्जा राजा जय सिंह के समय पर खरीदे गए थे, जिनके कारपेट में फ़ारसी उद्यान के दृश्य को दिखाया गया है। इसे चार भागों में विभाजित किया गया है जो कई वर्गों में उप-विभाजित है। इस कालीन पर मौजूद अलग-अलग रंग कालीन की विभिन खूबियों को दर्शातें है, जिसमे मछलियों, पक्षियों, कछुओं और अन्य प्रकृति व जीव-जंतुओं की कला-कृतियां बनायीं गई है। यहाँ विश्व प्रसिद्ध गोलाकार कालीन भी देखे जा सकते हैं, जिन पर मुगल और पुष्प पैटर्न की छाप है।  

क्ले आर्ट गैलरी: क्ले आर्ट गैलरी में क्ले से बनी विभिन अंतर्राष्टीय सभ्यताओं को दर्शाती मूर्तियां रखी गयी है, जो 19 वीं शताब्दी की उत्कृष्ट मुद्राओं को दर्शाती है।  जिसमें योगिक मुद्राएं, समाजशास्त्रीय विषय, शिल्पकला आदि शामिल हैं।

सिक्का गैलरी: इस दिलचस्प गैलरी में आपको मुगलों और अंग्रेजों द्वारा उपयोग किए जाने वाले सिक्कों की एक विस्तृत श्रृंखला दिखाई देगी। सिक्कों के विश्व इतिहास में पंच-चिन्हित सिक्कों को सबसे प्राचीन माना जाता है, जो यहां पर रखे गए हैं। यहां अकबर, जहाँगीर, शाहजहाँ और औरंगज़ेब के शासनकाल से संबंधित कई मुगल काल के सिक्के रखें गए हैं, जिन्हें राजस्थान के विभिन्न हिस्सों से खोजा गया था। 

ज्वेलरी गैलरी: यह गैलरी अपने आप में अनूठी है, जहां राजा महाराजाओं नहीं बल्कि सामान्य जनता और किसानों द्वारा पहने जाने वाले सभी आभूषण रखे गए हैं। ये आभूषण चांदी और पीतल से बने हैं, जिसमे पायल, अंगूठी, हेयर पिन, कंगन और हार जैसे कुछ आभूषण प्रमुखता से प्रदर्शित हैं।

म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स गैलरी: इस गैलरी में आप प्राचीन भारतीय वाद्य यंत्र जैसे शहनाई, ढप, पुंगी रावण हत्था आदि देख सकते हैं।

इसके अलावा आप यहां यहाँ आप वस्त्र, वस्त्र, संगमरमर कला, मिट्टी के बर्तन, मूर्तियां, धातु कला, हथियार और कवच जैसी अन्य रोमांचित करने वाली ऐतिहासिक चीजें भी देख सकते हैं। 

अल्बर्ट हॉल संग्रहालय पर्यटकों के लिए प्रतिदिन सुबह 9.00 बजे से शाम 5.00 बजे तक और शाम 7.00 बजे से रात 10 बजे तक खुला रहता है। यहां घूमने के लिए भारतीय पर्यटकों को 40 रूपये, भारतीय स्टूडेंट्स को 20 रूपये, विदेशी स्टूडेंट्स को 150 रूपये और विदेशी पर्यटकों को 300 रूपये एंट्री फीस का भुगतान करना होता है। इसके साथ ही यहां सात साल से कम उम्र के बच्चों के लिए कोई प्रवेश शुल्क नहीं होने के अलावा सभी पर्यटकों के लिए राजस्थान दिवस, विश्व विरासत दिवस, विश्व संग्रहालय दिवस और विश्व पर्यटन दिवस पर प्रवेश निःशुल्क रहता है।

अगर आप जयपुर में अल्बर्ट हॉल घूमने का प्लान बना रहे है तो आपको बता दे कि अल्बर्ट हॉल रामनिवास बाग में अजमेरी गेट के पास स्थित है। आप जयपुर हवाई, ट्रेन या सड़क मार्ग से पहुंच सकते हैं। अगर आप फ्लाइट से यात्रा करके अल्बर्ट हॉल जयपुर जाने का प्लान बना रहे है तो आपको बता दे की यहां से सबसे निकटतम हवाई अड्डा सांगानेर हवाई अड्डा है जो अल्बर्ट हॉल म्यूज़ियम से 10 किलोमीटर की दूरी पर है। आप जयपुर हवाई अड्डा से टैक्सी ,केब या बस से यात्रा करके अल्बर्ट हॉल पहुंच सकते हैं। यहां तक पहुंचने के लिए आपको ऑटो से 150, कैब से 200 और बस से 30 रूपये खर्च करने पड़ सकते हैं।ट्रैन से यहां पहुंचने के लिए सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन जयपुर रेलवे स्टेशन है, जो अल्बर्ट हॉल से 5 किलोमीटर की दूरी पर है। रेलवे स्टेशन से अल्बर्ट हॉल तक पहुंचने के लिए आपको ऑटो से 80, कैब से 100 और बस से 20 रूपये खर्च करने पड़ सकते हैं। अगर आप अल्बर्ट हॉल जयपुर की सड़क मार्ग से यात्रा करने की योजना बना रहे है तो अल्बर्ट हॉल जयपुर बस अड्डे से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। बस अड्डे से यहां तक पहुंचने के लिए आपको ऑटो से 90, कैब से 150 और बस से 20 रूपये खर्च करने पड़ सकते हैं।

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