इस वीकेंड आप भी करना चाहते हैं दोस्तों के साथ मस्ती और धमाल तो ओडिशा हो सकती है बेस्ट जगह, मिलेगा अनोखा अनुभव

बंगाल की खाड़ी के पास स्थित ओडिशा देश का एक प्रमुख एवं खूबसूरत राज्य है। इसे देश का आठवां सबसे बड़ा राज्य माना जाता है। इसकी राजधानी भुवनेश्वर है।न केवल घरेलूबल्कि विदेशी पर्यटक भी ओडिशा में स्थित जगन्नाथ पुरी मंदिर, कोणार्क, पुरी बीच, भुवनेश्वर और चिल्का झील जैसी जगहों को देखने आते हैं। इसलिए इस राज्य को देश का प्रमुख पर्यटन केंद्र भी माना जाता है।यह सच है कि ओडिशा में स्थित चिल्का झील, कोणार्क या पुरी बीच अपनी खूबसूरती के लिए पूरी दुनिया में मशहूर हैं, लेकिन इस राज्य में कई अन्य अनोखी और अद्भुत जग भी हैं, जिनके बारे में बहुत कम लोग जानते होंगे।ओडिशा में स्थित महेंद्रगिरी भी एक ऐसी जगह है जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते होंगे। इस लेख में हम आपको महेंद्रगिरि की विशेषता और इसके आसपास स्थित कुछ अद्भुत स्थानों के बारे में बताने जा रहे हैं।
महेंद्रगिरि की विशेषता जानने से पहले आपको बता दें कि यह स्थान ओडिशा के गजपति जिले में स्थित है। महेंद्रगिरि भी ओडिशा का एक ऐतिहासिक और खूबसूरत पर्वत माना जाता है।आपकी जानकारी के लिए हम यह भी बता दें कि महेंद्रगिरी पर्वत राजधानी भुवनेश्वर से करीब 263 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस पर्वत से निकटतम बड़ा शहर ब्रह्मपुर है, जो लगभग 96 किमी दूर है। इसके अलावा यह आंध्र प्रदेश की सीमा के भी काफी करीब पड़ता है।
ओडिशा के पूर्वी घाट में स्थित महेंद्रगिरि पर्वत को राज्य का छिपा हुआ खजाना माना जाता है। इस पर्वत के बारे में कहा जाता है कि यह देवमाली पर्वत के बाद ओडिशा का दूसरा सबसे ऊंचा पर्वत है। इस पर्वत की ऊंचाई 1500 मीटर से अधिक है। इस पर्वत को जैवविविधता हॉटस्पॉट के रूप में भी जाना जाता है।बादलों से ढके ऊंचे पहाड़, घने जंगल और झीलें-झरने इस पर्वत की खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं। इसे हरियाली का खजाना भी माना जाता है। इस ऐतिहासिक पर्वत को देखने के लिए हर दिन एक र्जन से अधिक पर्यटक आते हैं।
महेंद्रगिरि पर्वत न केवल अपनी खूबसूरती के लिए बल्कि अपनी पौराणिक मान्यताओं के लिए भी जाना जाता है। जी हां, इस पर्वत के बारे में कहा जाता है कि इसका इतिहास रामायण से लेकर महाभारत काल तक जुड़ा हुआ है।महेंद्रगिरि पर्वत के बारे में लोगों का मानना है कि भगवान परशुराम ने इसी पर्वत पर तपस्या की थी। ऐसा माना जाता है कि आज भी परशुराम पर्वत की सबसे ऊंची चोटी पर विराजमान हैं। महाभारत के पात्रों से संबंधित कई मंदिर भी यहां स्थित हैं। इसीलिए यहां घुमक्कड़ों से लेकर परशुराम के भक्त भी दर्शन करने आते हैं।