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इस वीकेंड आप भी जरूर करें जयपुर के इस किले की सैर, इतिहास की चीजों से हो जाएगा प्यार

भारत के राजस्थान राज्य की राजधानी जयपुर के आमेर क्षेत्र में एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित एक पर्वतीय दुर्ग है। यह जयपुर नगर का प्रधान पर्यटक आकर्षण है..........
अगर आप  आसपास किसी घूमने वाली जगह की तलाश कर रहे हैं, जो जयपुर जाने का आइडिया रहेगा बेस्ट। वैसे तो यहां घूमने वाली जगहों की कमी नहीं, लेकिन एक ऐसी जगह है, जिसे देखे बगैर यहां की यात्रा अधूरी मानी जाती है

भारत के राजस्थान राज्य की राजधानी जयपुर के आमेर क्षेत्र में एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित एक पर्वतीय दुर्ग है। यह जयपुर नगर का प्रधान पर्यटक आकर्षण है। आमेर के बसने से पहले इस जगह मीणा जनजाति के लोग रहते थे , जिन्हे कच्छवाह राजपूतो ने अपने अधीन कर लिया।[3] यह दुर्ग व महल अपने कलात्मक विशुद्ध हिन्दू वास्तु शैली के घटकों के लिये भी जाना जाता है। दुर्ग की विशाल प्राचीरों, द्वारों की शृंखलाओं एवं पत्थर के बने रास्तों से भरा ये दुर्ग पहाड़ी के ठीक नीचे बने मावठा सरोवर को देखता हुआ प्रतीत होता है।

लाल बलुआ पत्थर एवं संगमर्मर से निर्मित यह आकर्षक एवं भव्य दुर्ग पहाड़ी के चार स्तरों पर बना हुआ है, जिसमें से प्रत्येक में विशाल प्रांगण हैं। इसमें दीवान-ए-आम अर्थात् जन साधारण का प्रांगण, दीवान-ए-खास अर्थात् विशिष्ट प्रांगण, शीश महल या जय मन्दिर एवं सुख निवास आदि भाग हैं। सुख निवास भाग में जल धाराओं से कृत्रिम रूप से बना शीतल वातावरण यहां की भीषण ग्रीष्म-ऋतु में अत्यानन्ददायक होता था। यह महल कछवाहा राजपूत महाराजाओं एवं उनके परिवारों का निवास स्थान हुआ करता था। दुर्ग के भीतर महल के मुख्य प्रवेश द्वार के निकट ही इनकी आराध्या चैतन्य पंथ की देवी शिला को समर्पित एक मन्दिर बना है। आमेर एवं जयगढ़ दुर्ग अरावली पर्वतमाला के एक पर्वत के ऊपर ही बने हुए हैं व एक गुप्त पहाड़ी सुरंग के मार्ग से जुड़े हुए हैं।

फ्नोम पेन्ह, कम्बोडिया में वर्ष २०१३ में आयोजित हुए विश्व धरोहर समिति के ३७वें सत्र में राजस्थान के पांच अन्य दुर्गों सहित आमेर दुर्ग को राजस्थान के पर्वतीय दुर्गों के भाग के रूप में युनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है।

आंबेर या आमेर को यह नाम यहां निकटस्थ चील के टीले नामक पहाड़ी पर स्थित अम्बिकेश्वर मन्दिर से मिला। अम्बिकेश्वर नाम भगवान शिव के उस रूप का है जो इस मन्दिर में स्थित हैं, अर्थात् अम्बिका के ईश्वर। यहां के कुछ स्थानीय लोगों एवं किंवदन्तियों के अनुसार दुर्ग को यह नाम माता दुर्गा के पर्यायवाची अम्बा से मिला है।[4] इसके अलावा इसे अम्बावती, अमरपुरा, अम्बर, आम्रदाद्री एवं अमरगढ़ नाम से भी जाना जाता रहा है। इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार यहां के राजपूत स्वयं को अयोध्यापति राजा रामचन्द्र के पुत्र कुश के वंशज मानते हैं, जिससे उन्हें कुशवाहा नाम मिला जो कालांतर में कछवाहा हो गया। [5] आमेर स्थित संघी जूथाराम मन्दिर से मिले मिर्जा राजा जयसिंह काल के वि॰सं॰ १७१४ तदनुसार १६५७ ई॰ के शिलालेख के अनुसार इसे अम्बावती नाम से ढूंढाड़ क्षेत्र की राजधानी बताया गया है। यह शिलालेख राजस्थान सरकार के पुरातत्त्व एवं इतिहास विभाग के संग्रहालय में सुरक्षित है।

यहाँ के अधिकांश लोग इसका मूल अयोध्या के इक्ष्वाकु वंश के राजा विष्णुभक्त भक्त अम्बरीष के नाम से जोड़ते हैं। इनकी मान्यता अनुसार अम्बरीष ने दीन-दुखियों की सहायता हेतु अपने राज्य के भण्डार खोल रखे थे। इससे राज्य में सब तरफ़ सुख और शांति तो थी परन्तु राज्य के भण्डार दिन पर दिन खाली होते गए। उनके पिता राजा नाभाग के पूछने पर अम्बरीश ने उत्तर दिया कि ये गोदाम भगवान के भक्तों के है और उनके लिए सदैव खुले रहने चाहिए। तब अम्बरीश को राज्य के हितों के विरुद्ध कार्य के आरोप लगाकर दोषी घोषित किया गया, किन्तु जब गोदामों में आई माल की कमी का ब्यौरा लिया जाने लगा तो कर्मचारी यह देखकर विस्मित रह गए कि जो गोदाम खाली पड़े थे, वे रात रात में पुनः कैसे भर गये। अम्बरीश ने इसे ईश्वर की कृपा बताया जो उनकी भक्ति के फलस्वरूप हुआ था। इस पर उनके पिता राजा नतमस्तक हो गये। तब ईश्वर की कृपा के लिये धन्यवादस्वरूप अम्बरीश ने अपनी भक्ति और आराधना के लिए अरावली पहाड़ी पर इस स्थान को चुना। उन्हीं के नाम से कालांतर में अपभ्रंश होता हुआ अम्बरीश से "आम्बेर" बन गया।

वैसे टॉड एवं कन्निंघम, दोनों ने ही अम्बिकेश्वर नामक शिव स्वरूप से इसका नाम व्युत्पन्न माना है। यह अम्बिकेश्वर शिव मूर्ति पुरानी नगरी के मध्य स्थित एक कुण्ड के समीप स्थित है। राजपूताना इतिहास में इसे कभी पुरातनकाल में बहुत से आम के वृक्ष होने के कारण आम्रदाद्री नाम भी मिल था। जगदीश सिंह गहलौत के अनुसार[उद्धरण चाहिए] कछवाहों के इतिहास में महाराणा कुम्भा केे समय के अभिलेख आमेर को आम्रदाद्रि नाम से ही सम्बोधित करते हैं।

ख्यातों में प्राप्त विवरण के अनुसार दूल्हाराय कछवाहा की सं॰ १०९३ ई॰ में मृत्योपरांत राजा बने के पुत्र अम्बा भक्त राजा कांकिल ने इसे आमेर नाम से सम्बोधित किया है

आमेर राजधानी जयपुर से ११ कि.मी. (६.८३५ मील) उत्तर में स्थित एक कस्बा है जिसका विस्तार ४ वर्ग किलोमीटर (४,३०,००,००० वर्ग फुट) [8] कस्बा है। दुर्ग यहां की एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है और इसकी प्राचीरों, द्वारों की शृंखलाओं एवं पत्थर के बने रास्तों से भरा ये दुर्ग पहाड़ी के ठीक नीचे बने मावठा सरोवर को देखता हुआ प्रतीत होता है।,[9][10][11][12][13][14] यही सरोवर आमेर के महलों की जल आपूर्ति का मुख्य स्रोत भी है। यह क्षेत्र बहुत पहले ढूंढाड़ नाम से जाना जाता था। राजस्थान के पूर्वी भाग में ढूंढ नदी बहती थी, जिस पर उससे लगे क्षेत्र का नाम ढूंढाड़ पड़ गया था। इस क्षेत्र में वर्तमान जयपुर, दौसा, सवाई माधोपुर, टोंक जिले एवं करौली का उत्तरी भाग आता था।

 

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