आखिर क्यों राजस्थान के थार डेजर्ट के गायब होने की भविष्यवाणी की जा रही है? वीडियो में सामने आई ये बड़ी वजह
राजस्थान न्यूज डेस्क !!! थार मरुस्थल, राजस्थान का वो हिस्सा है जहां होश उड़ा देने वाले पचास डिग्री के तापमान में जानवरों और आग उगलती गर्मी में पानी के लिए Tarsti इंसानी जिंदगी की यात्रा आपका दिल दहला देगी. इस तपती गर्मी में मरते मवेशी, परेशान थार का पशुपालक और उसकी जिंदगी आपको झंझोर कर रख देगी। आज हम आपको बताएंगें कि यहाँ इस जला देने वाली धूप में भी कौन कौन से पेड़ जीवित रह पाते हैं.
इस वीडियो में हम देखेंगें कि कैसे यहां इतनी धूप और हड्डियां पिघलाने वाली गर्मी में भी कुछ जानवर आज भी अपना वर्चस्व कायम किये हुए हैं, साथ ही हम जानेंगें भयंकर गर्मी वाले थार मरुस्थल के निर्माण, विस्तार, इतिहास, भूगोल, पर्यावरण, संस्कृति, जलवायु और वनस्पति समेत हर पहलू की विस्तृत जानकारी
थार मरुस्थल की इस रहस्यमय यात्रा पर चलने से पहले, अगर आपने अब तक हमारे चैनल को SUBSCRIBE नहीं किया है तो अभी ही इस वीडियो को लाइक और चैनल को SUBSCRIBE कर लीजिये और हमे कमेंट कर जरूर बताएं की आपको वीडियो कैसा लगा, और अगर आप भी किसी विषय पर वीडियो देखना चाहते हैं, तो कमेंट करके जरूर बताएं की हमारा अगला वीडियो क्या होना चाहिए, तो चलिए शुरू करते हैं थार का रहस्यमयी सफर
थार मरुस्थल जिसे ग्रेट इंडियन Desert के नाम से भी जाना जाता है, भारत के उत्तर पश्चिम तथा पाकिस्तान के दक्षिण पूर्व में पूर्वी सिंध प्रांत से पंजाब तक फैला हुआ हैं। ऐसा कहा जाता है कि थार मरुस्थल का नाम पाकिस्तान में स्थित थारपारकर जगह के नाम पर है। हालाँकि थार शब्द की उत्पत्ति थल से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ रेत का टीला होता है। भारत का ये एक मात्र मरुस्थल लगभग दौ लाख वर्ग किलोमीटर के विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है. यह विश्व का 17वाँ सबसे बड़ा मरुस्थल है और 9वाँ सबसे बड़ा गरम उपोष्णकटिबन्धीय मरुस्थल है। थार का 85% भाग भारत और 15% भाग पाकिस्तान में है। भारत में इसका अधिकांश हिस्सा राजस्थान राज्य के हिस्से में आता है, जो लगभग राजस्थान के कुल क्षेत्रफल का 61% है। जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर और जोधपुर जिले थार मरुस्थल के मुख्य हिस्से हैं, लेकिन इस मरुस्थल का एक बड़ा हिस्सा नागौर, हनुमानगढ़, गंगानगर और चूरू जिलों में भी आता है. थार सिर्फ राजस्थान में ही नहीं बल्कि पाकिस्तान के मीरपुर खास हैदराबाद और सिंध जैसे प्रांतों के एक विशाल भूभाग में भी फैला हुआ है.
आज का थार लाखों वर्ष पहले एक विशाल समुद्र का अभिन्न हिस्सा था, जो समय के साथ धरती की प्लेटें हिलने के चलते समुद्र से अलग हो गया। भौगोलिक परिवर्तनों के चलते इस पुरे हिस्से का पानी पूरी तरह से सूख गया और यहां की जमीन रेतीली भूमि के रूप में उभर कर सामने आई. समय के साथ जलवायु परिवर्तन के चलते ये क्षेत्र धीरे-धीरे मरूस्थल में बदल गया। आज भले ही यह इलाका बंजर होने के साथ सैकड़ों चुनौतियों से भरा है, लेकिन यह प्रकृति की सुंदरता का एक ऐसा विस्तार है जो अपनी कहानी खुद बयान करता है. थार मरुस्थल में पाए जाने वाली रेत ढाई अरब से 57 लाख वर्ष पुरानी पूर्व कैंब्रियन युग की चट्टानों और अवसादी चट्टानों का परिवर्तित रूप है। इस रेगिस्तान की रेत की सबसे नई परत लगभग 16 लाख वर्ष पुरानी मानी जाती है, जो हवा द्वारा आधुनिक भौगर्भिक काल में यहां आकर जम गई थी।
इस रेगिस्तान की सतह अस मान और ऊंची-नीची है, जो रेत के छोटे बड़े टीलों, रेतीले मैदानों और छोटी बंजर पहाड़ियों से विभाजित है। इस पूरे क्षेत्र में खारे पानी की कुछ झीलें पाई जाती है जिन्हें स्थानीय भाषा में ढांढ़ कहते है। थार क्षेत्र में कुल सात श्रेणियों की मिट्टी पाई जाती है, जिसमे मरुस्थली मिट्टी, मरुस्थली लाल मिट्टी, भूरी व काली मिट्टी, तराई की लाल व पीली मिट्टी, खारी मिट्टी, मौसमी छिछली मिट्टी और पहाड़ी इलाकों में मिलने वाली मुलायम भुरभुरी मिट्टी शामिल है। यहां पाई जाने वाली सभी मिट्टियां मुख्य रूप से खुरदरी, चूनेदार, और पूरी तरह शुष्क है, जिसमे चूने का काफी ज्यादा जमाव मिलता है।
थार मरुस्थल राजपूताना और सिन्धु नदी की घाटी के निचले भाग के मध्य में फैला हुआ है। इस मरुस्थल में पानी की भयंकर कमी होने के चलते इसे सिर्फ समूहों में ही पार किया जा सकता है। यह मरुस्थल सिंध को दक्षिण और उत्तरी पश्चिमी भारत से अलग कर के भारत और पाकिस्तान के बीच की सीमा रेखा भी बनाता है। इसी के चलते जब सातसौदस ईस्वी में अरबों ने सिंध इलाके पर विजय की तो इस मरुस्थल के कारण वे भारत में अपने राज्य का विस्तार नहीं कर सके। दूसरी और थार मरुस्थल ने कुछ समय तक अंग्रेज़ों को भी सिंध पर अपना आधिपत्य जमाने से रोके रखा था। अफ़ग़ानिस्तान और पंजाब का प्रवेश द्वार होने के चलते अंग्रेज़ सिंध प्रान्त पर अपनी नजरें गड़ाये हुए थे। हालाँकि बाद में अंग्रेज़ों के द्वारा सिंध प्रान्त के अधिग्रहण के बाद यह मरुस्थल भारतीय ब्रिटिश साम्राज्य का अंग बन गया, जो आगे चलकर भारत और पाकिस्तान में बांट दिया गया।
गर्मी की तपिश में जब यहां की धरती धधक उठती है और तापमान पचास डिग्री सेल्सियस को छू लेता है तो यहां के जीव-जंतु और पेड़-पौधे इस चुनौती का सामना कैसे करते हैं? यह वाकई में किसी करिश्मे से कम नहीं, लेकिन हर कोई पशु इतना मजबूत नहीं होता. शुरुआती गर्मी में ही मवेशी दूर चारे की तलाश में चले जाते हैं और पानी ना मिल पाने की वजह से अपने शरीर को इस तपती गर्मी में जला देते हैं. इस इलाके में एक मात्र पशुपालन पर जीविका टिकी होने के चलते यहां पड़ने वाली भयंकर गर्मी, पानी की कमी और जटिल जलवायु मवेशी पालकों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।
थार रेगिस्तान का विविध पारिस्थितिकी तंत्र, शुष्क वनस्पति क्षेत्र, मानव संस्कृति और पशुओं का जीवन अन्य रेगिस्तानो की तुलना में काफी अलग है। थार मरुस्थल में लगभग 23 प्रजातियों की छिपकली और 25 प्रजातियों के सांप पाए जाते हैं। इसके अलावा इसके गुजरात के कच्छ से जुड़े क्षेत्र में कृष्णमृग और चिंकारा आदि भी देखने को मिलते हैं। पक्षियों की प्रजातियों में यहां मोर, ईगल, हैरियर, फाल्कन्स, बज़ार्ड, केस्टेल और गिद्ध पाए जाते हैं। साथ ही थार मरुस्थल में कुछ ऐसी वन्य प्रजातियाँ देखने को मिलती हैं जो विलुप्त होने की कगार पर हैं। द ग्रेट इंडियन डेजर्ट को मुख रूप से ब्लैकबक, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, भारतीय जंगली गधा, काराकल, गोल्डन फॉक्स आदि के लिए जाना जाता हैं। इसके साथ ही थार मरुस्थल के जैसलमेर में डेजर्ट नेशनल पार्क स्थित हैं, जहां लगभग 180 मिलियन वर्ष पुराने जीव-जंतु और पौधों के जीवाश्मों का संग्रह स्थल है। डेजर्ट नेशनल पार्क में आप 6 मिलियन वर्ष पुराने डायनासोर के जीवाश्मों को भी देख सकते हैं।
थार रेगिस्तान में जड़ी-बूटियों की बेशकीमती प्रजातियों सहित कई प्रकार की वनस्पति पाई जाती है, इनमे मुख्य रूप से बबूल जेकमोंटोनी, बालानाइट्स रोक्सबर्गी, कैलोट्रोपिस प्रोकेरा, लाय्सियम बर्बरम, लाइबेरन बर्बेरनिका, ज़िज़िफस, झरबेर, सुआडा फ्रेटिकोसा, क्रोटलारिया बुरहिया, ऐरवा लिप्टाडेनिया पाइरोटेक्निका, लिज़ैबर बार, लाइबेरन बर्बेरिनिया, छुई मुई हमता, ओक्टोचलोआ कोम्प्रेसा, जवनिका, भैंस मल्टीफ्लोरम, लसीसुरस सिंडीसस, डायकोन्थियम एनालाटस, डैक्टाइलोक्टेनियम स्काइंडिकम, सेनच्रस सेटिगरस, दूब घास, डेंटम टर्गिडम, कुटकी, सेन्क्रस बाइफ्लोरस, स्पोरोबोलस मार्जिनबुलस मार्जिन आदि शामिल हैं।
यहां के रीति-रिवाज, परंपरा और वेशभूषा में विविधता होने के बाद भी ये भारत की एकता का एक अद्भुत उदहारण है। थार में प्रमुख रूप से हिंदू और मुसलमान दोनों ही संप्रदायों के लोग रहते हैं, जो जनसंख्या, जटिल आर्थिक व सामाजिक आधारों पर बटें हुए है। थार के मरुस्थल में रहने वाले लोग वीर एवं साहसी होते हैं जिनमे देश प्रेम की भावना कूट-कूट कर भरी होती है। रोजगार के अधिक साधन नहीं होने के चलते पशुपालन यहां का मुख्य व्यवसाय है। यहां के लोग पशुओं में गाय, बैल, भैंस, बकरी, भेड़, घोड़े और गधे इत्यादि जानवरों को पालते हैं, लेकिन यहां सबसे मुख्य रूप से ऊंट को पाला जाता है। यहाँ का सबसे प्रमुख प्राकृतिक संसाधन घास है, जिससे पशुओं के लिए प्राकृतिक चारा तो मिलता ही है, साथ ही स्थानीय लोग इससे दवा भी बनाते हैं।
थार का रेगिस्तान जहां एक साँस लेना भी मुश्किल होता है वहां लगभग 40 लाख लोगों ने अपना घर बसाया हुआ है। ये वो लोग है जिनकी आजीविका पशुपालन और जीवन प्रकृति पर निर्भर है। यहां एक मटकी पानी के लिए लोगों को कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है, कई बार ये दूरी 30 से 40 किलोमीटर तक भी हो जाती है। यहां विभिन तरीकों से पानी का संचय किया जाता है, जिसमे सबसे अधिक टंका प्रणाली का उपयोग किया जाता है। इसमें लोग अपने घरों के आस-पास जमीन के अंदर एक पानी की टंकी बना देते हैं, इसके एक निचले हिस्से में से बारिश का पानी टंकी में चला जाता है, जिसे भविष्य में पानी की जरूरतों के अनुसार काम में लिया जा सकता है। इस इलाके में पानी की बेहद कमी होने के चलते मौसमी वर्षा के पानी को कुंडों और जलाशयों में इकठ्ठा कर, इसका इस्तेमाल पीने और अन्य घरेलू उपयोगों में होता है। यहां का पानी खारा होने और जलस्तर काफी निचे होने के चलते भूमिगत जल का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
कुओं और जलाशयों के अलावा नहरें भी थार में पानी का प्रमुख स्रोत हैं। इस इलाके में पानी उपलब्ध होने पर गेंहू और कपास जैसी फ़सलें उगाई जाती हैं। इस इलाके में पानी की कमी दूर करने के लिए 1932 में सिंधु नदी पर सुक्कर बांध बनाया गया था। इसके साथ ही पंजाब में सतलुज और व्यास नदियों के संगम पर बने हरि के बैराज से निकलने वाली गंग नहर से थार के उत्तरी हिस्से में सिंचाई का काम होता है। यह नहर भारत के दक्षिण-पश्चिम दिशा में करीब 470 किलोमीटर का सफर तय कर थार पहुंचती है।
थार के रेगिस्तान में यूँ तो यातायात के अधिक साधन मौजूद नहीं है, लेकिन पाकिस्तान से इसकी सीमा लगने के चलते इसके जैसलमेर को एयरपोर्ट और रेलवे से जोड़ा गया है। थार के दक्षिणी भाग में एक रेलवे लाइन है जो मेड़ता रोड से बीकानेर होकर सूरतगढ़ पहुंचती है, और उत्तरी हिस्से में एक दूसरी रेलवे लाइन है जो जोधपुर और जैसलमेर को जोड़ने का काम करती है। थार मरुस्थल हर साल आधा किलोमीटर की रफ्तार से उत्तर-पूर्व की ओर बढ़ रहा है, जिससे आने वाले वक़्त में यह भारत के भू-उपयोग का नक्शा पूरी तरह से बदल देगा। इसरो की एक रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान की पहचान कहे जाने वाला थार मरुस्थल अब हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश में भी अपने पाँव पसार रहा हैं। इससे कृषि और वानिकी पर आजीविका चला रहे इन राज्यों के साठ प्रतिशत लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा होने की आशंका पैदा हो गई है। लेकिन थार रेगिस्तान को आगे बढ़ने से रोकने के लिए भारत सरकार ने 649 किलोमीटर लंबी इंदिरा गाँधी नहर बनाई है। इस नहर से रेगिस्तानी इलाको में भी हरियाली लाने कि एक सफल कोशिश की जा रही है। अगर आप इंदिरा गाँधी नहर के बनने से इसके राजस्थान के लोगों के जीवन को बदलने तक की पूरी जानकारी जानना चाहते हैं तो आपको इसके वीडियो का लिंक डिस्क्रिप्शन में मिल जायेगा। इसके साथ ही दुनिया की सबसे पुरानी अरावली पर्वतमाला भी थार रेगिस्तान को देश के बाकि हिस्सों में बढ़ने से रोकती है। अरावली पर्वतमाला के बारे में विस्तार में जानने के लिए आपको वीडियो के डिस्क्रिप्शन में इसका लिंक मिल जायेगा।
तो दोस्तों ये था राजस्थान का मशहूर थार मरुस्थल, वीडियो देखने के लिए धन्यवाद, अगर आपको यह वीडियो पसंद आया तो प्लीज कमेंट कर अपनी राय दें, चैनल को subscribe करें, वीडियो को लाइक करें, और अपने फ्रेंड्स और फेमिली के साथ इसे जरूर शेयर करें, ऐसे ही ओर वीडियो देखने के लिए ऊपर दी गई प्लेलिस्ट पर क्लिक करें और जानें राजस्थान के प्रसिद्ध मंदिर, मस्जिद, किलों और पर्यटक स्थलों से जुडी हर जानकारी।