इस दिवाली आप भी परिवार के साथ जरूर करें तमिलनाडु की सैर, मिलेगा अनोखा अनुभव, वीडियो देख फटी की फटी रह जाएगी आंखें

दिवाली का त्योहार पूरे भारत में मनाया जाता है, लेकिन हर प्रांत की परंपराओं और रीति-रिवाजों के अनुसार इस त्योहार के अलग-अलग रूप हैं। इस त्योहार की परंपरा तमिलनाडु में थोड़ी अलग है, जहां सभी लोग दिवाली के इस खूबसूरत त्योहार को एक साथ मनाते हैं। दिवाली का त्योहार तो सभी मनाते हैं, लेकिन इसे मनाने की अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग परंपराएं और रीति-रिवाज हैं। तमिलनाडु में दिवाली का त्यौहार अमावस्या से एक दिन पहले शुरू होता है। त्योहार से पहले, घर को साफ किया जाता है और कोलम, रंगोली, पान के पत्ते, फल-फूल और अन्य पत्तियों से सजाया जाता है।
उत्तर भारत में जहां 14 वर्ष के वनवास के बाद राम-सीता की वापसी की खुशी में दीये जलाकर दिवाली का त्योहार मनाया जाता है, वहीं तमिलनाडु में यह त्योहार श्री कृष्ण द्वारा नरकासुर के वध की खुशी में मनाया जाता है। उत्तर भारत में यह त्यौहार कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है, लेकिन दक्षिण भारत में दिवाली का त्यौहार कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी से शुरू होता है। उस दिन लोग सुबह-सुबह सूर्योदय से पहले तेल और उबटन लगाकर स्नान करते हैं, क्योंकि अगले दिन अमावस्या होती है और उस दिन सिर पर तेल लगाकर स्नान नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार, तमिल लोगों के लिए दिवाली का उत्सव सुबह-सुबह तेल स्नान से शुरू होता है।
भारत के ज्यादातर राज्यों में दिवाली पर नए कपड़े पहने जाते हैं, लेकिन तमिलनाडु में चाहे कोई व्यक्ति गरीब हो या अमीर, वह अपनी हैसियत के मुताबिक नए कपड़े खरीदता है। इस त्योहार के लिए स्नान करने के बाद खरीदे गए पारंपरिक नए कपड़ों को रात में भगवान के सामने रखा जाता है। अगली सुबह यानी त्योहार के दिन घर का मुखिया अपने हाथों से सभी को यह परिधान आशीर्वाद के रूप में देता है। परिवार के सभी सदस्य ख़ुशी-ख़ुशी इन कपड़ों को पहनते हैं और बड़ों को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लेते हैं। तमिलनाडु में अभी भी साष्टांग प्रणाम करने की परंपरा है और यदि कोई ब्राह्मण है तो गायत्री मंत्र का जाप करके साष्टांग प्रणाम करता है, जिसे उन्होंने अब तक कायम रखा है।
जो नवविवाहित जोड़े होते हैं और जिनकी पहली दिवाली मनाई जाती है उन्हें थलाई दिवाली (पहली दिवाली) कहा जाता है। इसके लिए पति एक दिन पहले ही अपनी पत्नी को लेकर ससुराल आता है और दोनों दिवाली मनाते हैं। कुछ समय पहले लड़के का पूरा परिवार उसकी ससुराल आकर इस उत्सव में शामिल होता था। लड़के का परिवार सभी के लिए नए कपड़े लाता है। आमतौर पर पहली दिवाली पर वे बहू के लिए साड़ी खरीदते हैं। इसके अलावा लड़की को अपने पति से एक साड़ी भी मिलती है। इसके बाद रात में पटाखे फोड़े जाते हैं और मिट्टी के दीपक जलाए जाते हैं।
रक चतुर्थी की पूर्व संध्या पर महिलाएं 'मरुंडु' नामक एक विशेष औषधि तैयार करती हैं। इसमें काली मिर्च, दालचीनी, काला जीरा, पिपली, मुलेठी और कई अन्य जड़ी-बूटियाँ शामिल होती हैं और इन्हें पीसने और छानने के बाद गुड़ की चाशनी में पकाया जाता है। इसमें बहुत सारा घी, तिल्ली का तेल आदि मिलाया जाता है।ऐसा माना जाता है कि त्योहार में तरह-तरह के व्यंजन खाने से तबीयत खराब न हो, इसलिए पहले से ही यह औषधि दी जाती है, जो पाचक होती है। इसके बाद पहले से तैयार मिठाइयां और पकवान भगवान के सामने रखे जाते हैं. इस दिन सभी लोग आस-पड़ोस में जाकर पूछते हैं 'गंगा स्नान हो गया क्या?' सुबह-सुबह वे रिश्तेदारों के घर जाते हैं और दोपहर में विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन जैसे चावल, सांबर, रसम, पायसम, तीन-चार प्रकार की सब्जियां, रायता, मेदु वड़ा आदि तैयार किए जाते हैं और पापड़ तले जाते हैं। इस प्रकार बिल्कुल पारंपरिक भोजन तैयार हो जाता है, जिसका आदान-प्रदान कई दिनों तक चलता रहता है।