फ्लाइंग सिखदेश ही नहीं दुनिया में दबदबा कायम करने वाले मिल्खा सिंह को 'फ्लाइंग सिख'कहा जाता था।
पाक में जन्में मिल्खा भारत-पाकिस्तान बंटवारे से पहले मुजफ्फरगढ़ से दस मील दूर गोविंदपुरा गांव में जन्में मिल्खा सिंह ने छोटी उम्र में बड़ी-बड़ी तकलीफें झेलीं।
पाक से आए दिल्ली बंटवारे के समय उनकी दो बहनों और एक भाई समेत माता-पिता की हत्या हो गई। इसके बाद मिल्खा सिंह किसी तरह दिल्ली पहुंचे, जहां वे कुछ दिनों तक अपनी बहन ईश्वर कौर के घर में रहे।
मिल्खा की अंतिम इच्छा लेकिन क्या आप जानते हैं इतने बड़े धावक की मरने से पहले अंतिम इच्छा क्या थी।
दरअसल, मिल्खा सिंह जब इंडियन आर्मी में भर्ती हुए तो उन्हें दूध और अंडे के लालच में एथलीट बनने का जुनून सवार हुआ
1956 में उन्होंने 200 मीटर और 400 मीटर रेस में ओलंपिक में भाग लिया। 1962 में एशियन गेम्स में 400 मीटर और 400 मीटर रिले दौड़ में गोल्ड मेडल जीतकर देश का सुनहरे अक्षरो में लिखवाया।
1964 के कॉमनवेल्थ गेम्स में वह सिल्वर मेडल जीतने में सफल रहे। 40 सालों तक कॉमनवेल्थ मेम्स में मिल्खा सिंह गोल्ड मेडल जीतने वाले एकमात्र भारतीय एथलीट थे।
उनकी अंतिम इच्छा थी की देश का कोई होनहार एथलीट उनके जीवित रहते उनका रिकॉर्ड तोड़े।
हालांकि, 2014 में विकास गौड़ ने कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल जीतकर मिल्खा सिंह की बराबरी की। फिर, 18 जून 2021 मिल्खा सिंह ने भी दुनिया अलविदा कह दिया।