इस मंदिर के साथ रखी गई थी टोंक की जामा मस्जिद की नींव,वीडियो में जाने इसका संक्षिप्त इतिहास

ट्रेवल न्यूज़ डेस्क,,जहां लोग मजहब के नाम पर लड़ते-झगड़ते देखे जाते हैं वहीं टोंक शहर में पास-पास में बने रघुनाथजी का मंदिर व शाही जामा मस्जिद लोगों को एक-दूसरे से जोड़ रहे हैं। इसी कारण आज यह मंदिर-मस्जिद एकता, सांप्रदायिक सौहार्द्र व भाईचारे का प्रतीक बने गए हैं। इनकी बनावट के कारण इन्हें देखने के लिए न सिर्फ देश के कोने-कोने से लोग आते हैं, बल्कि विदेशी सैलानी भी इन्हें निहारने आते हैं। जिसके कारण ये मंदिर-मस्जिद अपनी खास पहचान बन चुके हैं। जहां मंदिर में अष्टधातु की प्रतिमा विराजित है, वहीं मस्जिद पर 150 फीट ऊंची चारमीनार बनी है।
बेमिसाल कारीगरी का नमूना
मंदिर में प्राचीन कलात्मक सोने के बैल-बूटों की कारीगरी व चित्रकारी बेमिसाल है। मंदिर के गुम्बद व छतरियां सोने की बनी हुई है। वहीं दूसरी ओर मस्जिद में भी काफी खूबसूरत नक्काशी व अराइश का कार्य किया गया है। अरबी भाषा में आयतें लिखी हुई हैं। 150 फीट ऊंची चारमीनार हैं। इन्हें देखन के लिए देश-विदेश से बड़ी तादाद में सैलानी आते हैं।
एक ही दिन रखी थी नींव
करीब 200 वर्ष पूर्व टोंक के पहले नवाब अमीर खां ने खेतड़ी दरबार के पंडित अजीतमल की भविष्यवाणी से प्रभावित होकर उन्हें टोंक में बसने की इच्छा जाहिर की थी। इस पर पंडित ने नवाब के सामने रघुनाथजी मंदिर बनवाने की शर्त रखी थी। पंडित ने मंदिर के साथ मस्जिद के निर्माण भी बात कही। दोनों की नींव एक ही दिन रखी गई थी।
यह है मान्यता
ऐसा माना जाता है कि रघुनाथजी के क्षेत्र में रहने वाला प्रत्येक परिवार सुखी व संपन्न हैं। मंदिर के द्वार के बगल में ही भैंरूजी विराजमान हैं। शहर के बीच बड़ा कुआं क्षेत्र में अगल-बगल में बने यह मंदिर-मस्जिद हिन्दू-मुस्लिम एकता के साक्षी माने जाते हैं। मंदिर में अष्टधातु की प्रतिमा स्थापित होने के साथ ही पंडितजी भी सपरिवार यहीं रहने लगे। आज उनकी चौथी पीढ़ी के पंडित अनिल कुमार शर्मा सेवा कर रहे हैं।