सड़क पर पति-पत्नी में मारपीट, महिला बोली – पुलिस ने मेरी नहीं, उल्टा पति की सुन ली

आगरा के सदर क्षेत्र में एक महिला के साथ हुए विवाद और मारपीट का मामला अब पुलिस कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़ा कर रहा है। घटना 20 जून की है, जब पति-पत्नी के बीच सरेआम सड़क पर झगड़ा हो गया। मामला मारपीट तक पहुंच गया। महिला का आरोप है कि उसके पति और ससुराल पक्ष के लोगों ने न केवल उसकी पिटाई की, बल्कि मोबाइल फोन और चेन भी छीन ली।
पीड़िता के अनुसार, वह उस समय अपने मालिक के घर काम पर जा रही थी। रास्ते में उसके पति ने उसे रोका और बहस के बाद मारपीट शुरू कर दी। महिला ने आरोप लगाया कि आसपास के लोगों ने हस्तक्षेप कर बीच-बचाव किया, लेकिन तब तक उसे गंभीर चोटें आ चुकी थीं।
पुलिस पर भी लगाया लापरवाही का आरोप
घटना के बाद पीड़िता ने तत्काल थाने पहुंचकर शिकायत दर्ज करानी चाही, लेकिन आरोप है कि पुलिस ने उसकी कोई सुनवाई नहीं की। उल्टा, उसके पति की तहरीर पर उसी के खिलाफ केस दर्ज कर लिया गया। अब स्थिति यह है कि पीड़िता खुद ही थानों और चौकियों के चक्कर काट रही है, लेकिन उसे कहीं से न्याय नहीं मिल रहा।
पीड़िता का यह भी कहना है कि पुलिस की तरफ से उसे दबाव में समझौता करने के लिए भी कहा जा रहा है। इस बीच, उसने वरिष्ठ अधिकारियों से भी गुहार लगाई है।
डीसीपी ने दिया जांच का आश्वासन
मामला सोशल मीडिया और स्थानीय स्तर पर सुर्खियों में आने के बाद डीसीपी सिटी विकास कुमार ने इस पर संज्ञान लिया है। उन्होंने बताया कि पूरे प्रकरण की निष्पक्ष जांच कराई जा रही है। संबंधित पुलिसकर्मियों से भी रिपोर्ट मांगी गई है। डीसीपी ने कहा, “अगर किसी भी स्तर पर पुलिस की लापरवाही पाई गई, तो उसके खिलाफ कार्रवाई होगी। महिला की शिकायत को गंभीरता से लिया जा रहा है।”
मानवाधिकार संगठन भी हुए सक्रिय
मामले के सामने आने के बाद स्थानीय महिला संगठनों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने भी पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि जब कोई पीड़िता थाने जाती है और उसकी जगह उस पर ही मुकदमा दर्ज हो जाए, तो यह कानून व्यवस्था की गंभीर विफलता है। उन्होंने मामले की सीबीसीआईडी या स्वतंत्र जांच एजेंसी से जांच की मांग की है।
न्याय की आस में पीड़िता
फिलहाल महिला का कहना है कि वह केवल इंसाफ चाहती है। उसने कहा, "मैंने कोई अपराध नहीं किया, फिर भी मुझ पर केस दर्ज कर दिया गया। क्या महिला होना ही गुनाह है?"
घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि घरेलू विवादों में पुलिस की निष्पक्षता कहाँ तक है और क्या वाकई पीड़ित को बिना भेदभाव के न्याय मिल पाता है या नहीं।